रविवार, दिसंबर 30, 2012

एक पिता कि चिन्ता .....





कूद कर मेरी बेटी का 
गोद में बैठ जाना 
गलें  में बाहें डाल कर ,
कुछ माँगना
और हँसकर,मेरा उसकी ,
 मांग को पूरी करना |
मगर आज, माँगा है उसने ,
सलवार और कुर्ता,
फ्राक के बदले |
क्योंकि वह हो गयी है बड़ी|
अचानक मेरा ,
गहरी सोंच में डूब जाना   
डर कर सहम जाना |
उसे इस वहशी समाज ,
 से कैसे है बचाना ?


(पुन: प्रकाशित) 

शुक्रवार, दिसंबर 07, 2012

आह्बान ...



चलो उठो
उठाओं फावड़े
खोदो कब्र
कुछ जिन्दा लाशों को
दफनाना हैं ।
धरती का बोझ
कुछ कम करना हैं ।




मंगलवार, नवंबर 20, 2012

यही सत्य हैं.....

आज बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर आया हूँ ।अपनी एक पुरानी  रचना ले कर , जो मेरी पसंद की हैं ।
आशा करता हूँ आपको भी पसंद आएगी ।

 यही सत्य हैं....

झाँक कर देखा खिड़की से
उमड़ते हुए बादलों को
दौड़ कर आँगन में आया | 
और आकाश में बादलों का एक झुंड पाया | 
और शुरू हो गया तलाश का,
एक अंतहीन सिलसिला
अचानक खिल उठा चेहरा |
और प्रसन्न हुआ अंतर्मन
क्योंकि मिल गयी थी मुझे ,
मुन्नी की गुड़िया और पत्नी का कंगन
फिर अचानक कुछ सोंच कर डर गया ।
यथार्थ के धरातल पर गिर गया |
दौड़ कर अन्दर आया
बंद कर ली खिड़की और दरवाजे
कहीं भिगो न दे यह,
मेरे तन का एकमात्र कपड़ा |


बुधवार, अक्तूबर 03, 2012

सन्यासी का धर्म ....

एक बार एक नदी के किनारे दो सन्यासी अपनी पूजा पाठ में लगे हुए थे । उन सन्यासी में 
से एक ने गृहस्थ जीवन के बाद सन्यास ग्रहण किया था जबकि दूसरा बाल्य अवस्था से ही
सन्यासी था। उन्होंने देखा की एक स्त्री नदी में स्नान कर रही हैं और नदी का स्तर लगातार 
बढ़ रहा हैं । उनमें से एक सन्यासी बोला अगर यह स्त्री डूबने लगेगी तो हम इसे बचा भी 
नहीं पाएंगे क्योंकि स्त्री का स्पर्श भी हमारे लिए वर्जित हैं। अचानक उन्हें बचाओ बचाओ की 
आवाज आई तब  वह सन्यासी जिसने गृहस्थ जीवन के बाद सन्यास ग्रहण किया था ।
उठ कर गया और उस स्त्री को निकाल कर किनारे ले आया और फिर अपनी पूजा पाठ में लग गया ।इस पर दूसरा सन्यासी बोला यह तुमनें अच्छा नहीं किया । स्त्री का स्पर्श भी 
हमारे लिए अपराध है । तुमने सन्यासी धर्म का उल्लंघन किया तुम्हें इसकी सजा मिलनी 
चाहिए ।तब दुसरे  संय्यासी ने  संयत  स्वर में पूछा तुम किस औरत की बात कर रहे हो ।
उसने क्रोधित हो कर कहा जिस स्त्री को तुमने अभी अभी पानी से निकाला  हैं ।इस पर पहले वाले ने उत्तर दिया उस घटना को तो बहुत समय बीत गया लेकिन तुम्हारे दिमाग में वह 
स्त्री अभी तक नही निकली मै तो उस घटना को भूल ही गया था ।यह कह कर वह फिर अपनी पूजा पाठ में लग गया .........
        

सोमवार, सितंबर 24, 2012

श्रद्धांजलि ......





                                                               श्रद्धांजलि   

नाम  : चन्द्र मौलेश्वर प्रसाद 
जन्म : 07 अप्रैल 1942
मृत्यू : 12 सितम्बर 2012 
ब्लोगिंग  सितम्बर 2007 
ब्लॉग : कलम मेरी दीवानगी पर होशवाले बहस फ़रमायें’
      हिंदी ब्लोगर फोरम इंटर नेशनल 
स्थान :    हैदराबाद 

अंतिम पोस्ट 

आदरणीय ब्लागर मित्रो,
अस्वस्थ होने के कारण शायद अंतरजाल पर  न आ  पाऊँ  ।  इसलिए कुछ समय के लिए शायद आप से भेंट न हो। स्वास्थ लाभ करके पुनः आपसे सम्पर्क स्थापित करूंगा। तब तक के लिए विदा:)



बड़े शौक से सुन रहा था ज़माना ।
 तुम ही सो गए दास्ताँ   कहते कहते ।  

  

शनिवार, सितंबर 08, 2012

असहाय भगवान् ............

एक  बार जब भगवान् शंकर धरती भ्रमण करके लौटे तो उनका मन बहुत अशांत था ।
पार्वती  ने कहा जब आप धरती लोक से बापस आते थे तो बहुत प्रसन्न होते थे मगर इस 
बार ऐसा क्या हुआ कि आपका मन अशांत हैं । भगवान् शंकर ने कहा तुम तो जानती हो 
की मैं धरती पर लोगों को सुखी देखना चाहता हूँ लोगों का दुःख पूछता हूँ उनका निवारण 
करता हूँ । और उनको सुखी करके बापस आ जाता हूँ । मगर इस बार मैं अपने को बहुत 
असहाय अनुभव कर रहा हूँ । इस बार  एक व्यक्ति के दुःख को मैं दूर नहीं कर सका । 
क्योंकि उसका दुःख था कि  मेरा पड़ोसी सुखी क्यों हैं .............

मंगलवार, सितंबर 04, 2012

कैसे कैसे लोग........

टैक्सी ड्राईवर ने स्टेशन के सामने जाकर गाड़ी पार्क कर दी । साहब ने गाड़ी का मीटर देखा 
और ड्राईवर पर चिल्लाने लगे तुम लोग हेरा फेरी करे बिना नहीं मानते इतना मीटर कैसे 
आ सकता हैं । ड्राईवर ने मुस्करा कर कहा सर आप मीटर की जाँच करवा सकते हैं हम गरीब जरुर हैं मगर चोर नहीं । चलिए आप दस रुपये कम दे दीजिये । साहब ने जल्दी से 
अपना सामान निकाला और प्लेटफ़ॉर्म की तरफ चल दिए|थोड़ी देर बाद ड्राईवर ने देखा कि 
मेमसाहब का पर्स पीछे की सीट पर पड़ा हैं वह तुरंत उसे लेकर उनके पीछे भागा मगर तब 
तक वह लोग बहुत आगे निकल चुके थे । वह चिंता में था कैसे उनका पर्स उन तक पहुंचे। 
रास्ते  की बातों से उसे इतना तो मालूम पड़ गया था वह लोग मुंबई जा रहे हैं ।मगर कौन 
सी ट्रेन कौन सा कोच यह कुछ भी नहीं पता था ।  प्लेटफोर्म पर पहुँच  कर वह एक एक डिब्बे में झांक झांक कर उन्हें खोजने लगा । आखिर उसने उनको एक एसी कोच में ढूंढ़    
लिया ।पास जाकर बोला " आपका पर्स गाड़ी में रह गया था"। साहब ने खुश हो कर अंग्रेजों 
से उधार लिए दो शब्द उसकी तरफ उछाल दिए" थैंक्स थैंक्स" ।जब वह बहां से जाने लगा 
तो मेमसाब बोली  उसको  रोको पहले देख तो लें कुछ गायब तो नहीं हैं ?  

  

बुधवार, अगस्त 29, 2012

आधा कम्बल.......


किसी गाँव में एक व्यक्ति अपने पत्नी और  अपने इकलौते  बेटे के साथ रहा करता था ।
अचानक एक दुर्घटना में उसकी पत्नी की मृत्यू  हो गयी । कुछ दिन गुजरने के पश्चात् उसने 
सोंचा घर सँभालने के लिए एक  स्त्री  की आवश्यकता होती हैं क्यों ना अपने बेटे की शादी
करदी जाये ।अत: उसने अच्छा सा रिश्ता देख कर उसका विवाह कर दिया । इस बीच उसके घर एक बेटे का जन्म भी हो गया ।अब वह दिन भर अपने पोते के साथ खेलता रहता और 
घर बाहर  का काम  भी कर दिया करता इस तरह उसके दिन अच्छे गुजरने लगे ।
एक दिन अचानक उसके बेटे ने  कहा देखिये पिता जी आप तो जानते ही हैं कि घर का 
खर्चा कितना बढ़ गया हैं और आप के लगातार बीमार रहने से इलाज भी कराना  पड़ता हैं ।
आप दिन भर खांसते रहते हैं अगर यह छुआछूत का रोग मेरे बेटे को लग गया तो हम एक 
बड़ी मुश्किल में पड़ जायेंगे क्यों ना आप घर छोड़ कर किसी बृद्ध  आश्रम में चले जाएँ तो 
यह हम सब के लिए अच्छा होगा । पिता ने उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और जाते समय बोला मुझे ओढ़ने के कुछ दे दो बाहर बहुत ठण्ड हैं ।बेटे ने पुराना कम्बल निकाल कर 
दे दिया। उसने उस कम्बल के दो हिस्से करे और अपने बेटे से बोला इसे संभाल कर रखना 
यह आधा कम्बल कुछ समय बाद तुम्हारे काम आएगा ....... 

   

शुक्रवार, अगस्त 17, 2012

हिंग्लिश बाल कविता

बरसात के दिनों में एक अध्यापक ने विद्यार्थी से स्कूल  ना आने का कारण पूछा तब उसने कुछ इस तरह से बताया ....





इट वाज रैनिंग झमाझम । 
रोड पर आते थे जब हम ।  
लेग माई फिसलिंग गिर पड़े हम ।
इसी वजह से कुड  नॉट कम । 


सोमवार, अगस्त 13, 2012

यह भी एक बेटी है ......






बेटी बचाओ 

बेटे और बेटी में ,
भेद मत कीजिये |
बेटियों को जीने का
अधिकार आप दीजिये |
इंदिरा और कल्पना की,
उड़ान तुमने देखी है |
अब अपनी सायना की
शान अब देखिये |
एक दिन नाम यह
तुम्हारा कर जाएँगी
बस एक बेटी घर में
पाल के तो देखिये

(आज एक पूर्व प्रकाशित रचना) 

रविवार, अगस्त 05, 2012

मित्र की एक परिभाषा.........


मित्रता दिवस पर मित्र की एक  परिभाषा 

F     FELLOW ( WHO)
R    READY 
I      IN 
E    EVERY 
N    NEED (AND) 
D    DEED


मित्रता दिवस की हार्दिक बधाई 


शुक्रवार, अगस्त 03, 2012

मतला और एक शेर,.......



जब दवा बेअसर हो जाती है तब दुआओं का असर होता हैं |
सताना गरीब को छोड़ो , बददुआओं  का भी असर होता हैं| 

और ग़र आ रही हो, ज़िल्लत की महक किसी रोटी से ,
मत भूलो मेरे दोस्त उसका एक निबाला भी ज़हर होता हैं ।

रविवार, जुलाई 22, 2012

किसकी चली ?


ना हिन्दू की चली ना मुस्लिम की चली ,
तभी तो रमजान में राम और दीवाली में अली ।
किसकी चली ?

 मजहबी दंगे में मेरे  शहर में दो  लाशें   मिली,
 एक लाश  दफ़न हुई और दूसरी जली।
 किसकी चली ?

बना तो दीं  एक सी, मगर तासीर अलग अलग ,
एक नमक का गर्रा तो दूसरी मिश्री की डली ।
किसकी चली ?    

रविवार, जुलाई 15, 2012

चंद शेर आपके लिए.......

मेरे शहर में एक गली हो ऐसी ,
जहाँ मुहब्बत ही पल रही हो ।
जहाँ फ़ज़र की नमाज भी हो .
और लौ आरती की भी जल रही हो ।

क से काशी और  क से काबा ,
म से मंदिर मस्जिद हैं ।
मुझे दिखा दो किताब ऐसी ,
जो मायने इनके बदल रही हो ।

चलो उखाड़ कर हम फेंकें ,
दहशत के उन पेंड़ों को ।
इधर साख हो  जिनकी फैली,
मगर उधर जड़ निकल रही हो ।


रविवार, जून 17, 2012

फादर्स डे पर एक बाप की मज़बूरी



एक दिन एक रोजगार बाप ,
अपने बेरोजगार बेटे की
किसी बात पर खुश हो गया |
और अनजाने में अपनी उम्र
उसको लग जाने का ,
आशीर्वाद दे गया |
जब उसे कुछ ध्यान आया
तब वह कुछ
सोच कर पछताया
अगर वह अपनी ,
उम्र से पहले मर जायेगा |
तब उसका बेटा ,
भूख से मर जायेगा |


(पूर्व प्रकाशित रचना )


मंगलवार, मई 08, 2012

आख़िर ऐसा क्यों हुआ ...............

उसका नाम था अनुपमा , देखने में आकर्षक व्यक्तिव और उम्र लगभग चालीस साल परिवार 
के नाम पर दो बच्चे और पति ।वह एक निजी कंपनी में स्टेनो के पद पर कार्य करती थी ।
उसके पति एक कंपनी में इंजिनियर थे ।अच्छा वेतन, कोठी, कार,या यूँ कहें की खुश रहने    के मापदंडों के काफी करीब था वह परिवार .......अनुपमा के परिवार में दो छोटी 
बहिनें मां  और पिता जी मान एक स्कुल में अध्यपिका थीं और पिता जी आर्मी के 
रिटायर कैप्टन जो पेंशन  के साथ साथ शराब की आदत भी अपने साथ लाये थे । रोज़ 
किसी ना किसी बहाने से मां  के साथ लड़ाई गाली  गलौज होना निश्चित था ।या यूँ कहें 
यह  भी दिनचर्या का एक हिस्सा था ।यह देख कर अनु को बहुत कोफ़्त होती थी क्या दो 
चुटकी सिंदूर मांग में भर देने से पुरुष को अत्याचार करने का अधिकार यह समाज क्यों 
दे देता हैं। उसे सबसे ज्यादा गुस्सा अपनी माँ पर आता जो रात की पिटाई को सुबह भूलने 
की आदी हो चुकी थी उस पर निर्जल व्रत रख कर सज धज कर करवाचौथ के दिन उसकी 
आरती उतारती .....मैं अनुपमा की पति को जानता  था एक हंसमुख इंसान जो हर बात 
पर जोक सुनाता हो और शेर ओ शायरी में अच्छी दखलंदाजी रखता हो ।अनुपमा की सारी 
बातें उसी ने मुझें बताई थीं ।
एक दिन अनुपमा मुझे मिली वह थोड़ी उदास लग रही थी मैंने पूछा "क्या बात हैं कुछ 
झगडा हुआ क्या ? वह बोली क्या  बताऊँ भाई साहेब मुझे ऐसा लगता हैं कि आजकल 
वह मुझे इग्नोर कर रहें  हैं।यह मैं किसी कीमत पर सहन नहीं कर सकती और वह गुस्से 
में कापने लगी । मैंने किसी तरह समझा बुझा कर घर भेजा और अगले दिन उसके पति 
से बात करने का मन बना लिया ।ऑफिस में इधर उधर की बात करने के बाद मैंने उससे 
अनुपमा की बात की वह अचानक ही संजीदा हो गया और कहने लगा तुमको तो मालूम ही 
हैं आजकल मंदी चल रही हैं और मेरी नौकरी गए हुए एक महिना हो गया यह बात मैंने 
अनु को नहीं बताई ।कल ही उसको बताया की मेरी नौकरी चली गयी उसने हंस कर कहा 
यह तुम्हारी समस्या है जिसका हल तुम्हें निकालना  हैं। मैं कुछ नहीं जानती ।
          कुछ दिनों बाद मेरे दोस्त से फिर मुलाकात हुई मैंने हालचाल पूछा उसने 
कहा सब ठीक हैं  पर अनु मुझे छोड़ कर चली गयी । मै सन्न रह गया ।
उसने हंस कर कहा यार एक शेर नहीं सुनोगे 
बागबां  ने जब लगायी मेरे नशेमन में आग़ 
जिनपे तकिया था वही  पत्ते हवा देने लगे ।
एक बार फिर वह हंस कर बोला दाद नहीं दोगे मै  स्तब्ध था और निशब्द .......

       
 ( पुन: सम्पादित रचना ) 
                 
      

मंगलवार, मई 01, 2012

शुक्र है कि टौमी बच गया ....(लघुकथा)

चमचमाती कार बंगले  के अन्दर तेज़ गति से घुसी और अचानक ही ड्राइवर ने  ब्रेक लगा 
कर कार रोक दी क्योंकि कार के आगे साहेब का विदेशी कुत्ता टौमी आ गया था ।
ड्राइवर ने किसी तरह टौमी को बचा दिया ।मगर इस हादसे में घर में काम करने वाली 
आया का चार साल के  बच्चे  को चोट आ गयी ।साहेब ने जल्दी से कार से उतर कर  
आये और आया  को सौ रुपये दिए और कहा जाओ इसकी मलहम पट्टी करवा लो ।
थोड़ी देर बाद घर कें अंदर सबके चेहरे  खिले हुए थे और जुवान पर एक बात थी ।
भगवान का शुक्र है कि टौमी बच गया ...... 


गुरुवार, अप्रैल 26, 2012

यूँही नहीं कविता जन्म लेती ......



ठेस जब भी कोई 
मैंने दिल पे खाई हैं ।
दर्द के बदले मेरी ,
कविता निकल कर आयी हैं ।

इस टूटे हुए दिल से 
आवाज़ जब भी कोई आती हैं 
आज बह ही मेरी ,
कविता कहलाती हैं ।



शुक्रवार, अप्रैल 20, 2012

आपकी फ़रमाइश पर ....(.चंद शेर)

मेरी पिछली पोस्ट  आदत .. (मतला और एक शेर पर )पर आदरणीय रविकर फैजाबादी ने
टिपण्णी में कहा था दो शेर और जोड़िये तो आज उनके आदेश का पालन कर रहा हूँ ।
यह पोस्ट उन्ही के नाम ........

हर शख्स को मैं इंसान कहूँ, 
यह तो मुमकिन ही नहीं ।
लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
मुझे आदत जो पड़  गयी हैं।

रात होते ही मैं कब्रगाहों में, 
हर रोज़ निकल पड़ता हूँ ।
क्योंकि मुर्दों से दिल लगाने की, 
मुझे आदत जो पड़ गयी हैं ।

सारे जहाँ का रंज ओ ग़म, 
आप मुझको ही दे दीजिये ।
मुझको तो ग़म उठाने की, 
अब आदत जो पड़ गयी हैं। 
     

सोमवार, अप्रैल 16, 2012

मैन इज सोशल ए एनीमल.....

मैन इज सोशल ए एनीमल यह पंक्तियाँ आजकल मुझे अक्सर याद आतीं हैं और किसी  
हद तक बहुत सार्थक प्रतीत होती हैं इसकी एक छोटी से बानगी यहाँ देखिये ।


पहले हम कुत्ते की तरह भौंकतें हैं ।
जब कोई शेर की तरह दहाड़ता है 
हम भींगी बिल्ली बन जाते हैं ।
और चूहे की तरह अपने बिल में घुस जातें हैं ।
शायद इसीलिए हम सामाजिक प्राणी कहलाते हैं ।


दूसरों के धन पर गिद्ध द्रष्टि डालते हैं 
अपने धन पर साँप की तरह कुंडली मार कर बैठते हैं
लोमड़ी की तरह चालाकी करके दूसरों के धन को 
मौका पाते ही हम अजगर की तरह निगल जाते हैं
शायद इसीलिए हम सामाजिक प्राणी कहलाते हैं ।



मंगलवार, अप्रैल 10, 2012

आदत........(मतला और एक शेर)


 किसी की मौत पर बहाने के लिए,
 दो आंसू कहाँ से लाऊं मैं। 
 मुझको तो आंसूओं को पीने की ,
 आदत जो पड़ गयी हैं ।


 आजकल मेरी मुस्कराहटें भी,
 मुझसे नाराज़ होने लग गयीं ।
 मुझे तो ग़म में भी मुस्कराने की,
 आदत जो पड़ गयी हैं । 



गुरुवार, अप्रैल 05, 2012

ब्लोगजगत में मेरी दूसरी वर्षगांठ ....


जी हाँ आज मैंने ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे  कर लिए ,यह दो वर्ष कैसे बीते इसका पता ही नहीं चला । लिखना, पढ़ना और टिपियाना यही क्रम चलता रहा । कभी कभी अच्छी पंक्तियाँ, सुंदर अभिव्यक्ति ,बहुत खूब, मजेदार जैसी टिपण्णी करते करते ऊब जाता था मगर ब्लोगिंग की यह आवश्यकता हैं । 
 इसी बीच बहुत से ब्लोगर से बातचीत भी हुई जैसे जाकिर अली रजनीश ,कुंवर कुसुमेश ,
विजय कुमार सपत्ति , चंद्रमौलेश्वर प्रशाद, शिखा  दीपक  सुमन लता पाटिल , रश्मि प्रभा 
और  देवेन्द्र पाण्डेय   इन दो वर्षों में मेरी प्रोग्रेस कैसी रही यह आप रिपोर्ट कार्ड देख कर बताएं ।


कुल पोस्ट            १५१   ( एक सौ इक्यावन)   ( किसी तरह लिख दीं)
कुल अनुसरण कर्ता      २३४  ( दो सौ चौंतीस )     ( पता नहीं कैसे आये )
कुल टिप्पणी          ५०००        ( पाँच  हजार )                       ( यकीन नहीं होता )
न्यूनतम टिप्पणी                    २                दो                                     ( चलो कुछ तो मिली )
अधिकतम टिप्पणी                 ७६             छेहत्तर                               ( पता नहीं कैसे मिली )


अंत में आप सभी का आभार व्यक्त करता  हूँ । मगर यह जरुर बताएं पास या फेल ।

शुक्रवार, मार्च 30, 2012

गर्मी की छुट्टी ....(.बाल कविता)

लो हुई छुटियाँ बंद स्कुल 
चिंटू अब  है बिलकुल कूल

दिन भर मस्ती करता रहता ।
सुबह देर से सो कर उठता  ।

पापा कहते कुछ तो  पढ़ लो
मम्मी कहतीं होम वर्क कर लो ।

चिंटू भगवान् से करता प्रार्थना ।
अगला महीना कभी ना आना।


मंगलवार, मार्च 27, 2012

शेर के साथ शरारत . ...

आज मै   आपके  सामने कुछ शेर ऐसे पेश कर रहा हूँ जिनके साथ शरारत की गयी है ।


जिनके हांथों मैंने दिया था फूल कभी ।
उन्हीं के हाँथ का पत्थर आज मेरी तलाश में हैं ।


बरसती हुई बरसातों में और टपकती हुई रातों में ।
अक्सर हम यह सोंचते हैं खटिया  कहाँ पे डाली जाये ।


देख हम तेरी जुल्फ़ के कितने चाहने वाले हैं ।
तभी तो तेरे  दो चार गेसू , हर निवाले में हैं ।





बुधवार, मार्च 21, 2012

असफल प्रयास.......





आँखों से छलका ।
एक आंसू ,
पलकों ने किया 
असफल प्रयास
गिरने से, रोकने का ।
बचाने का , 
उसके अस्तिव को  ।
अंतत  ,
वह गिर गया  ।
संवेदनहीनता की ,
रेतीली ज़मीन पर।  

गुरुवार, मार्च 15, 2012

एक लघुकथा

किसी कहानी के लिए  ,कथानक ,संवाद  भाषाशैली , पात्र चरित्रचित्रण ,देशकाल एवं वातावरण तत्वों का होना आवश्यक है । शायद यह सबसे छोटी कहानी होगी ।

एक रेल में दो आदमी यात्रा कर रहे थे । एक ने दुसरे से पूछा क्या आप भूतों पर विश्वास करते हैं ? दुसरे ने उत्तर दिया  मैं तो करता हूँ । यह कह कर दोनों गायब हो गए । 








  

शनिवार, मार्च 10, 2012

पेट की तपिश

ठंडे चूल्हे ने ,
मुस्कराते हुए
ख़ाली पतीली से पूछा ?
आज कब आओगी ।
और  क्या पकाओगी ?
और सूखी लकड़ियों ने
ख़ुशी मनाई ।
आज वह जलने से ,
बच गयीं  ।
पतीली ने मेरी तरफ,
शरमाते हुए देखा ।
और आ  लगी
मेरे जलते हुए पेट से ।

मंगलवार, फ़रवरी 28, 2012

चाँदनी रात में.......

अब मेरा दिल तो कुछ पल का मेहमान है ।
आ रहें हैं वह मिलने,आज चाँदनी रात में  ।
अब अंधेरों की किससे मैं शिकायत करूँ ,
लुट रहें हैं यहाँ अब तो चाँदनी रात में ।


रूबरू उनसे मिलना तो मुमकिन नहीं 
अब मिलेंगे मुझे वह ख्वाब ही खवाब में ।
अब तो नींदों से मैं यह गुज़ारिश करूँ ,
जो दिखाए वह हँसी खवाब चाँदनी रात में ।


दो कदम साथ चल कर वह रूठे हैं क्यों 
क्या हुई भूल हमसे बात ही बात में ।
उनकी यादों से मैं यह गुज़ारिश करूँ ,
जो ना अब सतायें मुझे  चाँदनी रात में ।

गुरुवार, फ़रवरी 23, 2012

चालाक कौन ?.

आज मैं बचपन में पढ़ी हुई एक बाल कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ ।अक्सर हम यह सुनते हैं की लोमड़ी चालाक    होती है  मगर यह कहानी कुछ और ही कहती  हैं ।
किसी जंगल में एक शेर और बहुत से जानवर रहते थे । एक दिन शेर ने बोला कि मैं बुढ़ा
हो गया हूँ इसलिए मैं शिकार नहीं कर सकता क्योंकि मैं जंगल का राजा हूँ और आप लोग 
मेरी प्रजा अब यह आपका कर्तव्य बन जाता हैं कि मेरे भोजन का प्रबंध आप लोग करें ।
सभी ने उसकी बात मान ली और एक एक करके रोज उसके पास जाते और शेर उनको खा 
जाता ।सब जानवर लोमड़ी के पास गये और बोले हम सब में तुम ही एक चालाक हो ।अत: 
तुम ही इस समस्या का हल निकालो ।लोमड़ी अपनी तारीफ सुन कर खुश हो गयी । और  
उसने घोषणा कर दी कि कल बह शेर के पास जाएगी । अगले दिन जब लोमड़ी शेर के पास 
देर से पहुंची तो शेर ने गरजना शुरू कर दिया कहाँ थीं तुम? मैं सुबह से भूखा हूँ ।
लोमड़ी ने दयनीय स्वर में कहा मैं तो आपके पास ही रही थी लेकिन रास्ते में मुझे एक 
और शेर मिल गया बस किसी तरह से पीछा छुड़ा कर आपके पास आयी हूँ ।शेर ने कहा  
जंगल का राजा  तो मैं हूँ, दूसरा कहाँ से आया चलो मुझे दिखाओ ।लोमड़ी शेर को लेकर  
कुँए के पास गयी और बोली वह इसमें रहता हैं । शेर ने कुँए में झांक कर देखा और बोला 
इसमें तो कोई नहीं । लोमड़ी से बोला तुम दिखाओ वह कहाँ हैं । जब लोमड़ी और शेर ने 
एक साथ देखा तो दोनों कि परछाईं कुँए के पानी में दिखाई दी ।शेर बोला वह उसको खा 
लेगा और मैं तुमको । शेर ने लोमड़ी को खा लिया ।
अब बताएं चालाक कौन ?..........  
  

रविवार, फ़रवरी 19, 2012

मानव और नदी ............




एक नदी 
पहाड़ों से निकली 
पत्थरों से टकराकर 
राह बदल कर 
नए नए नाम  पाकर 
हंसती कूदती ,
जा मिली 
प्यार के सागर में ।
और एक मानव ,
पाषाण युग से 
निकल कर ।
कंक्रीट के जंगल में रह कर 
बन गया पत्थर , 
खो गया ,
पुन: पथरीली अँधेरी गुफाओं में ।


बुधवार, फ़रवरी 15, 2012

पापा! मुझे क्या बनना है .....(.लघुकथा)

पिता जी प्लेटफार्म पर उदास बैठे थे मैं और बुआ जाती हुई ट्रेन को देख रहे थे। जिसमें   अंजली मुझे हमेशा के लिए छोड़  कर जा रही थी ।मेरे बहुत समझाने बुझाने का उसका पर   कोई असर नहीं हुआ आखिर जीत उसकी ही हुई जाने का निर्णय अंतिम सिद्ध हुआ ।
कुछ देर बाद मै  पिता जी और बुआ को लेकर घर आ गया और अपने कमरें में लेट कर   सोंचने लगा आखिर क्या बदला, कुछ भी तो नहीं मात्र पात्र बदले, उस घटना के जो आज से  पच्चीस साल मेरे पिता जी के साथ हुई थी कारण था पिता की कम आमदनी और घर का  बढ़ता हुआ खर्चा, माँ इस बात को लेकर पिता जी से  अक्सर लड़ती थी। जब पैसा नहीं
पूरे घर का बोझ क्यों उठा रहे हो, अपने भाई और बुआ को से अलग रहो} यह उनको     अच्छा नहीं लगता था । घर जिम्मेदारी को बह अपना कर्तव्य समझते थे । जिसे छोड़ना 
उनके लिए असंभव था ।पिता जी की एक ही रट थी  मुझे बड़ा आदमी बनना है बस बड़ा 
आदमी.....मैंने भी उनकी इस इच्छा को सम्मान दिया और पूरा ध्यान पढाई में लगा 
कर बन गया एक बड़ा आदमी जिस के पास नौकर, चाकर, कोठी, कार और सब कुछ 
था बड़ा आदमी कहलाने के लिए ।कुछ दिन बाद पिता जी इच्छानुसार मेरी शादी हो गयी
मेरे साथ विधवा बुआ का परिवार और पिता जी थे ।कुछ दिन तक सब कुछ सामान्य रहा 
इस बीच  मेरे घर एक पुत्र का आगमन भी हुआ । कुछ दिन बाद अचानक अंजलि ने अलग 
रहने की बात कह कर सबको सकते में ला दिया।फिर शुरू हुआ समझाने बुझाने का चक्र 
लेकिन वह तो अपनी बात से टस से मस नहीं हुई ।उसके इस व्यहार से घर में भूचाल 
ला दिया था । आखिर आज वह हम सबको छोड़ कर चली गयी ।परिवार के सब लोग एक 
दुसरे की और  देख रहे थे कौन है वास्तविक अपराधी ? मै ,पिता जी, बुआ जी या मेरे संस्कार या एक  संयुक्त परिवार की इच्छा .......मेरा  तीन  वर्ष का बेटा मेरी तरफ देख रहा था जिसकी आँखों में एक प्रश्न था पापा मुझे क्या बनना है ...........     
   
  

गुरुवार, फ़रवरी 09, 2012

एक कुत्ते की व्यथा (व्यंग्य)........

एक दिन हमनें ,
अपने शहर की सोती हुई पुलिस जगा दी ।
सौ रुपये देकर ,
थाने में एक हजार की रिपोर्ट लिखवा  दी ।
शाम को पुलिस हमारे घर आई 
साथ में एक  कुत्ता भी लायी ।
कुत्ते ने हमें सूंघा, और हमारे घर को देखा ।
कुत्ता बोला आप हमारे, 
बेईमान होने का फायदा उठाते हो।
अपने शान बढ़ाने के लिए 
चोरी की झूठी रिपोर्ट लिखाते हो । 
तभी उस कुत्ते के अन्दर का कुत्ता जागा।
सीधा थाने की तरफ भागा।
जिसे देख कर हमारा आत्मविश्वास भी जागा ।
यह क्या ! वह लौट कर बापस आया और बोला 
आप क्या सोंचते हैं ?
मै क्या, थानेदार की गिरफ्तारी करूँगा ।
मैंने तो पुलिस का नमक खाया हैं ।
मै क्या? नमकहरामी करूँगा ।
आज मै अपने ओहदे का इस्तेमाल करूँगा ।
इन सडक पर बैठे हुए,
भिखारी को जेल के अंदर करूँगा।
वर्षों से यह हमारे हक मार जाते हैं 
कचरे में पड़ी हुई रोटी
हमसे पहले मार जाते हैं ।
बात रोटी तक तो, हम सहन करते हैं ।
पर अब तो यह हमारा और हमारी नस्ल का
यह अपमान करते हैं ।
अपने को इंसान कहते हैं ।
पर हमारी तरह जीते और हमारी तरह मरते हैं । 

  

शनिवार, फ़रवरी 04, 2012

मतला और एक शेर

वक्त के साथ में कभी कभी,
रिश्ते भी बदल जाते हैं ।
शोहरतें साथ हों अगर तो 
इन्सान भी बदल जाते हैं

यह बदलने का भी ना जाने
यह अजब दस्तूर है कैसा ,
मुसीबतों में देख कर मुझको ,  
अपने भी राह बदल जाते हैं ।


गुरुवार, जनवरी 19, 2012

यह कैसा पथ ........

एक पथ पर 
एक पग आगे बढ़ा कर ,
एक द्रष्टि 
जब मैं पीछे डालता हूँ ।
क्यों पाता हूँ ?
अपने को नितांत अकेला ।
क्यों नहीं सुनाई देता 
ध्वनि का मधुर कोलाहल ,
क्यों नहीं दिखाई देते 
वह अपने लोग ,
क्यों फैला है दूर तक ,
नीरवता का अंतहीन साम्राज्य ।
ढेर सारे उत्तरविहीन,
प्रश्नों का अम्बार।
एक बार पुन: 
सोंचने पर लाचार।
क्यों चुना मैंने यह पथ !
जो कहाँ जाता हैं ?
जिस पर एक पग चल 
व्यक्ति अपनों से 
कितना दूर हो जाता हैं ।



गुरुवार, जनवरी 12, 2012

ग़ज़ल

चलो उस शख्स का एहतिराम कर लें ,
जो आंधियों में चिराग़ जलाने चला है |


ना कोई लावलश्कर ना कोई कारवां ,
बस अकेले ही ज़माने से लड़ने चला है |


मालूम है उसको शिकस्त ही मिलेगी ,
फिर भी वह किस्मत  आजमाने चला है |


समुन्दर भी उसकी हिम्मत पर हैरान हैं ,
जो रेत में अपना आशियाना बनाने चला हैं |
   

सोमवार, जनवरी 09, 2012

हास्य कवि और उनकी कविता (दूसरी कड़ी )


अक्सर हास्य कवियों पर यह आरोप लगते है कि वह लतीफों को पंक्तिबद्ध करके रचनाएँ लिखते है | मगर मेरा मानना है कि हास्य कवि दोहरी भूमिका निभाता है | इस व्यथित समाज को हँसाने के साथ  साथ सन्देश भी देता है |
चलिए एक आरोप और लगा दीजिये |


चौराहे पर एक बुढ़िया,
भागी चली जा रही थी |
उसके ठीक पीछे ट्रेफ़िक पुलिस,
सीटी बजा रही थी |
पुलिस वाला चिल्लाया ,
अंधी है क्या ,जो देखती नहीं
बहरी है क्या ,जो सीटी की आवाज  नहीं आती
बुढ़िया बोली ना अंधी हूँ ना बहरी
बस हो गयीं बूढ़ी|
यही सीटी की आवाज,
अगर चालीस साल पहले आती |
तो एक ही बार में पलट कर आती |

बुधवार, जनवरी 04, 2012

"टिनटिन एक्प्रेस " (लघुकथा)

एक महानगर की सोसाइटी, पाँच अपार्टमेन्ट वह भी तीन मंजिल के   कुल मिला कर एक सामान्य सी
सोसाइटी थी  | उसका वाचमैन जगदीश उसकी पत्नी और उनका बेटा , यह  स्टाफ था सुरक्षा के लिए |
जगदीश जब रात  की ड्यूटी करके सोता तो उसका आठ साल का  बेटा  टिनटिन गेट पर तैनात हो जाता |
बीच बीच में किसी मेमसाब की आवाज सुन कर जाता और उनका कोई छोटा मोटा काम जैसे बाज़ार से
ब्रेड लाना या कोई सब्जी खरीद कर लाना और बदले में उसे मिलता था उनके बच्चों के नाश्ते में बची हुई
ब्रेड या कोई फल |दिन भर एक  बिल्डिंग से दूसरी बिल्डिंग भागता रहता था| इस लिए उसका नाम पड़ गया
"टिनटिन एक्प्रेस " यह सब उसकी एक सामान्य दिनचर्या  बन चुकी थी |
एक दिन अचानक टिनटिन दिखाई नहीं दिया| सोसाइटी की सभी औरतों की परेशानी बढ़ती जा रही थी |             आखिर टिनटिन कहाँ चला गया घर का बहुत  सा काम रुका हुआ था |शाम को कुछ औरतें वाचमैन के
घर पहुंची और टिनटिन के बारे में मालूम किया, क्या हुआ उसको ? वह ठीक तो है ना !
टिनटिन की माँ ने बताया की एक साहेब आये थे उन्होंने टिनटिन का नाम एक स्कूल में लिखा दिया है |
वही उसके खाने पीने और फीस का इंतजाम करंगे | और टिनटिन भी खुश है |
सभी औरतें जब घर से बाहर निकलीं तो उनके चेहरे पर खीझ और दिल में गालियाँ थी  उस अनजान
आदमी के लिए ................