ज़िन्दगी की कश्ती में हिम्मत की पतवार होना चाहिए ।
मोड़ सकते हैं हम तूफानों का रुख, दिल में यह एतवार होना चाहिए।
मेरी कश्ती तो टूटी थी जो मौजों में फंस कर डूब गयी ।
मेरे डूबने पर तूफानो को नहीं नाज़ होना चाहिए ।
मेरी कश्ती दो चार हिचकोले खा गयी तो क्या हुआ ।
कश्तियों को भी अपने कमज़ोरी का, अहसास होना चाहिए ।
वह कश्तियाँ जो हवाओं के सहारे ही किनारों से जा लगी ।
उनको अपनी किस्मत का एहसानमन्द होना चाहिए ।
कागज की कश्तियों से वह समुन्दर भी पार करले ।
बस उस नाख़ुदा को, ख़ुदा पर एतवार हों चाहिए ।