सोमवार, जनवरी 31, 2011

एक रूप यह भी नारी का



यह घटना लगभग सात वर्ष पूर्व नागपुर में हुई थी | जिसमें एक बलात्कार के
आरोपी के साथ  कोर्ट परिसर में,शीघ्र न्याय ना मिलने के कारण  कुछ महिलाओं
ने उसके साथ हाथापाई की जिससे की उसकी मृत्यु हो गयी |
इस घटना की प्रशासन ने बहुत निंदा की और कहा  की इस तरह की घटनाओं 
से समाज में क्या सन्देश जायेगा और लोगों का न्याय व्यबस्था से विश्वाश   हट 
जायेगा | मग़र किसी ने उस आरोपी के  कृत्य की निंदा नहीं की,और ना ही किसी 
ने यह सोचा उसके इस कृत्य से समाज में क्या सन्देश जायेगा |
मै यहाँ आपको बताना चाहता हूँ की भारत की न्याय व्यबस्था  का मैं सम्मान 
करता हूँ और इस पर मुझे पूरा भरोसा है | 
 उस घटना से आहात होकर मैंने अपनी राय रचना के माध्यम से समाज के सामने 
रखी थी |  अब  आप की क्या राय है इस घटना पर  ? 




मेहँदी वाले हाँथों में अब  तलवारें  आयेंगी  , 
चूड़ियों की खन खन, झन झन में बदल जाएँगी |
अब कोई नारी नहीं अवला कहलाएगी ,
न्याय नहीं मिला तो वह काली  बन जायगी |
अब कोई द्रोपदी नहीं कृष्ण को पुकारेगी ,
अब  तो दुश्शासन  को द्रोपदी ही मारेगी |






मंगलवार, जनवरी 25, 2011

यह कैसा गणतन्त्र दिवस


एक और गणतंत्र दिवस
कल फिर हम मनाएंगे |
अपनी आजादी पर हम
संविधान की मुहर लगायेंगे |


कुछ लोग तिरंगा लेकर ,
गलियों सड़कों में घूमेंगें | 
भारत महान और जय हिंद ,
के नारे भी आकाश में गूंजेंगे |
मग़र उसी गली के भूखे बच्चे ,
उन्हीं सड़कों पर नंगे ही सो जायेंगे |


जय जवान और जय किसान के 
नारे भी दोहराय जायेंगे |
नई योजना औए नये वादों से ,
हम फिर बहलाए जायेंगे |
मग़र क़र्ज़ से दबे किसान 
बस यूँही मरते जायेंगे |


जय जवान की ज्योति पर ,
फिर फूल चढ़ाये  जायेंगे  |
कुछ बंदूकें भी गरजेंगी ,
कुछ गोले भी दागे जायेंगे |
मग़र उन्हीं शहीदों के भूखे  बच्चे ,
सड़कों पर दर दर ठोकर खायेंगे |



एक और गणतंत्र दिवस
कल फिर हम मनाएंगे |
अपनी आजादी पर हम
संविधान की मुहर लगायेंगे |

शनिवार, जनवरी 22, 2011

मंच की कविता




मंचीय कवितायेँ हमेशा ,
पुलिस ,पोलिटिशियन     और पाकिस्तान की आभारी हैं |
यह भी एक इत्तफ़ाक है ,
यही तीनों हमारे देश पर भारी है |


मैं इन तीनों को रचना के माध्यम से नमन करता हूँ  |



 एक नये शहर में हम पहली बार आये
सोचा क्यों ना पुलिस की सहायता ली जाये |
हमने पूछा १६ नंबर की बस कहाँ से जाएगी ?
वह बोला क्या यह  भी आपको पुलिस बताएगी |



 टीवी में लोकसभा की कार्यवाही को देख कर  
एक दिन हमारी बच्ची ने पूछा
श्वेत वर्ण तो शांति का प्रतीक है |
फिर  यह क्यों इतना हल्ला मचा रहे है | 
फिर यह सफ़ेद कपड़े पहन कर  ,
क्या किसी मातम में जा रहे है  | 
मैंने  कहा  हाँ , यह संसद  में  जायेगे | 
वहां  लोकतंत्र  की अर्थी  को कन्धा  लगायेगे |



देख रहे थे  सुबह का अख़बार
सामने था   एक इश्तहार ,
चूहे दवाई खाकर ,
मरते है घर से बाहर जा कर ,
हमने सोचा काश !
ऐसी दवा आतंकवादियों की बना पाते |
तो सारी की सारी लाशें ,
हम पड़ोसी   मुल्क में पा जाते  |  



मंगलवार, जनवरी 18, 2011

हास्य कविता एक समस्या और उसका हल



जब  हम अंधे, बहरे,  लंगड़े या लूले हो जाते है |
तो  हम इस  समाज की सहानुभूति पाते है |
मग़र जब हम ऊँचा या कम  सुनते है ,
तो उसी समाज में  हास्य का कारण बन  जाते है |
जब आप आपने को इस अवस्था में पाइये |
तो थोड़ा सा सृजन कार्य करके कवि बन जाइये |
मग़र तब  एक समस्या आपके सामने  आएगी |
मगर वह भी आपको थोड़ा  आनंद दे जाएगी  | 
क्योंकि जब जनता बोर बोर चिल्लाएगी | 
 तब आपके कानों में वंस  मोर की आवाज आयेगी | 

बुधवार, जनवरी 12, 2011

जीने की शर्त


क्यों लगा दिए ?
दुनिया ने अपनी शर्तों के पहिये ,
मेरी जीवन की गाड़ी में I
शर्तों का मानना भी जरुरी है
क्योंकि ज़िन्दा रहना मज़बूरी है I
काश ! यह दुनिया मैंने बनायी होती,
तो जीने की कोई नहीं ,
शर्त लगायी होती I
मैं इसे एक कश्ती का नाम देता
और समय के सागर में उतार देता I
उन निश्छल हवाओं के सहारे
जो इसे लगा देती किनारे I

रविवार, जनवरी 02, 2011

नये साल का कैलंडर


नये साल पर एक मित्र हमारे घर आये | 
दीवार पे टंगे सभी धर्मों के देवी , देवताओं के,
 कैलंडर  को  देख कर मुस्कराए |
समझ नहीं आता कि क्यों कुछ  लोग
मंदिर मस्जिद का मुद्दा उठाते है |
एक आप है जो कौमी एकता की
जीती  जागती मिसाल नज़र आते है |
हमने कहा , हम नहीं जानते की
यह अपने धर्म में कितनी श्रद्धा  से पूजे जाते है |
मग़र यह मेरी दीवार के टूटे प्लास्टर को ,
बहुत  अच्छी तरह छिपाते है |