शनिवार, सितंबर 24, 2011

जीने का यह अंदाज़.........


जो अपने उसूलों पर, 
अपनी जिन्दगी जी रहा होगा |
जरुर उसका दोस्ताना भी, 
मुफ़लिसी से रहा  होगा |

जब वह इन्सान बनने की,
कोशिश कर रहा होगा| 
जरुर कोई इसको उसका,
पागलपन कह रहा होगा |


मंगलवार, सितंबर 20, 2011

बेटियों पर यह कैसा अत्याचार .......

बेटियों पर हो रहा, 
यह कैसा अत्याचार है |
एक आँख  रो रही है, 
और एक शर्मसार  है |

सृष्टि की रचना तो, 
देवों का उपकार है|
फिर क्यों उस मानव का, 
यह दानव सा व्यवहार है |

लक्ष्मी और दुर्गा का, 
नाम यहाँ पाती हैं|
जो कोख में तो बच गयीं 
फिर यहाँ मारी जाती है|

बेटी चाहे निर्धन की हो 
या हो वह धनवान की|
बेटी चाहे हिन्दू को 
या हो मुसलमान की  
बाज़ारों में बिकती है 
तो बेटी बस इन्सान की| 
और विदेशों में बिकती है जब, 
तो बस इज्ज़त हिंदुस्तान की|  


शनिवार, सितंबर 17, 2011

यह शख्स ......




मत कहो कि यह शख्स ,
सड़क पर नंगा पड़ा है |
धरती बिछौना है इसका ,
 इसने तो आसमान ओढ़ा है|

यह शख्स जो प्यास से,
बेहोश हो कर गिर पड़ा है|
उसने तो अपने आँखों में,
समुन्दर छिपा के रखा है|

गुरुवार, सितंबर 15, 2011

मेरा ख़त .........चंद शेर


इस ख़त में कुछ लफ्ज़   ,
खून ए ज़िगर से भी लिखे हैं |
नुक्ते की जगह मैंने , 
आँख का मोती लगा के रखा है

वह लफ्ज़ जिन्हें तेरे ख़त में 
मैं शामिल ना कर सका 
  उनको मैंने बस तेरी , 
ग़ज़ल के लिए बचा कर रखा हैं |

  

सोमवार, सितंबर 12, 2011

सीनियर सिटिजन स्पेशल....(.लघुकथा)


बस स्टेंड के पास एक चाय की छोटी सी दुकान जिसमें केवल चाय और बिस्कुट के 
सिवा कुछ भी नहीं इसके अतिरिक्त दो बेंच और अलग अलग भाषाओँ के तीन अख़बार
इन सब का मालिक है शंकर हँसमुख| नाम तो केवल शंकर था हँसमुख तो उसके व्यवहार 
को देख कर इस महानगर के लोगो ने लगा दिया था | शंकर की इंट्री बीस साल पहले  इस 
शहर में छोटू यानि होटल में काम  करने वाले बच्चों  के रूप में हुई थी | आज वह एक तेरह 
 साल के लड़के का बाप है| जिसे ड्रेस पहन  कर और टाई लगा कर स्कुल जाते देख उसकी 
ख़ुशी छिपाए नहीं छिपती | एक पाँच  रुपये का सिक्का शंकर के जेब में हर सुबह रहता बेटे 
की जेबखर्च के लिए या यूँ कहें ज़रूरत के लिए ........
सुबह छ बजे से लेकर नौ बजे तक का पीक आवरऔर उसके बाद शुरू होता घर के बूढ़े लोगों 
का आना जो कोई सामान खरीदने के नाम से निकलते  और एक  कट चाय जिसका नाम
सीनियर सिटिजन स्पेशल रखा था , पी कर, बतियाकर और सभी अख़बारों को 
आराम से पढ़ कर जाते थे | इस बीच में शंकर भी उनसे हाल - चाल पूछ लेता था |
शंकर ने गुप्ता जी से पूछा " साब आजकल शर्मा जी नहीं आ रहे हैं तबियत तो ठीक है ना "
गुप्ता जी ने कहा ऐसी कोई बात नहीं है मै तो रोज उन्हें छत पर अकेले बैठे हुए देखता हूँ |
अचानक एक दिन शर्मा जी दुकान के सामने से निकले तो शंकर ने पूछ ही लिया "क्या बात 
तबियत तो ठीक है सुगर उगर तो नहीं बढ़ा , चाय क्यों बंद कर दी?
शर्मा जी ने जबरदस्ती की मुस्कराहट चेहरे पर लाते हुए कहा भाई मंहगाई बढ़ गयी और 
बेटे ने जेबखर्च बंद कर दिया है |
यह सुनते ही शंकर ने अपनी जेब में पड़े हुए पाँच के सिक्के को जो उसने अपने बटे के जेबखर्च 
के लिए रखा था कस कर भींच लिया ...............
                                                                           
 

शनिवार, सितंबर 10, 2011

एक नई सुबह......






कोहरे की बिछी चादर
 अब सिमटने लगी है |
क्योंकि सूरज की किरणें , 
अब विखरने लगी है |
मुंदी हुई अपनी
आँखों को खोलो ,
और खोजो ,
अपना गंतव्य
क्योंकि दे रही है
दस्तक
एक नई सुबह...



( एक बार फिर से एक पुरानी रचना )


(चित्र गूगल के सौंजन्य से) 

बुधवार, सितंबर 07, 2011

एक अहसास.......




समुन्दर के किनारे 
 रेत पर  बैठ कर , 
एक ज्वारभाटे का इंतजार 
अपनी फंसी हुई ,
कश्ती को निकलने का |
मगर यह सोंच कर
डर  जाता  हूँ 
कि क्या होगा ,
उन कश्तियों का
जो खेल रही हैं 
समुन्द्र की लहरों से 
होकर निश्चिन्त |
अचानक एक अहसास 
अपने स्वार्थी होने का 
बहा ले गया 
मुझे गहरे समुन्द्र में |

  

रविवार, सितंबर 04, 2011

सियासत के बदलते रंग ..


पिछले दिनों अन्ना जी के आन्दोलन से हिली सरकार अब थोड़ा संभलने लगी हैं |
और देश के नेता भी अपने रंग में आ गए है | यानि आरोप प्रत्यारोप के रंग में या 
यूँ कहें की अपने असली रंग में बयान बदलने में तो यह कितने माहिर है | यह तो
आप  जानते ही हैं | मगर अपने इस व्यवहार से कुछ लोगों को परेशान करते हैं |
अगर आपके पास इनका जबाब हैं तो जरुर दीजियेगा ........

वक्त बदला तो रंग बदला, अब यह अपने बयान बदल रहे है|
मगर अपनी इस हरकत से गिरगिटों को परेशान कर रहे है |
सब गिरगिटों ने मिल कर मुझसे आज  एक सवाल  किया है  |
कि रंग तो तुम भी बदलते हो ,फिर हमें क्यों बदनाम किया है |   

...

गुरुवार, सितंबर 01, 2011

किसका मकान ?



चौराहे से निकली ,
एक गली |
उसी गली का 
आखिरी मकान,
किसका मकान ?
लोगों का प्रश्न 
क्यों खुले हैं दरवाजे 
और बंद है खिड़कियाँ 
मकान का उत्तर 
खुले दरवाजे ,
तुम्हारी इज्ज़त पर ,
आंच नहीं आने देते |
और बंद खिड़कियाँ 
तुम्हारे नंगेपन को ,
दिखने नहीं देतीं |