गुरुवार, अप्रैल 28, 2011

ब्लागर और मंचीय कवि



ब्लागर और मंचीय कवियों में कुछ असमानता होती है जैसे कि ब्लागर की रचना साहित्य 
से जुड़े हुए या साहित्य की किसी भी विधा में सृजन कर रहे व्यक्ति के लिए होती है |जबकि 
मंचीय कवि का उद्देश्य एक आम श्रोता को आनंद पहुँचाना होता है |ब्लागर को किसी मानदेय
या धनराशि की आशा नहीं होती | मंचीय कवि अधिकतर लिफाफे की इच्छा तो रखता ही है |
मगर एक समानता दोनों में है , एक टिपण्णी चाहता है तो दूसरा तालियाँ ....एक विशेष बात 
यह है की दोनों सीधे- सीधे  नहीं मांगते बलागर कुछ इस तरह मांगता है |

कृपया अपना आशीर्वाद यहाँ दें ..
यहाँ तक आये है तो .....
आपने कुछ कहा .....
कृपया अपनी  राय अवश्य दें ....
मेरा मार्गदर्शन करें ......
एक टिपण्णी भेंजें ......          कुछ ब्लागर मेरे जैसे यह अधिकारपूर्वक मांगते है |
( जैसे पत्नी मायके गयी हो तो ससुर जी को लिखते है पत्नी को भेंजें )
अर्थात आप बिना टिपण्णी के मत जाइये 

अब कुछ बात मंचीय कवियों की वह भी घुमा फिर कर मांगते है 

दुआओं की दरकार है ......
इस पंक्ति पर आपका आशीर्वाद चाहूँगा ......
आप मेरे साथ शिरकत करें ........
इस शेर की हिफ़ाजत कीजियेगा .....
पुरे सदन का ध्यान चाहूँगा ..........
अर्थात तालियाँ जरुर बजाएं ...

मेरे जैसे कवि कुछ इस तरह तालियाँ मांगते  है |

गीत और छंद का आनंद आप लीजिये |
मगर करतल ध्वनि का दान हमें दीजिये 
सरस्वती पुत्र, आप श्रोता  सब महान है |
कवि नहीं कविता का सम्मान तो कीजिये |


(कृपया ब्लागर मित्र इसे अन्यथा ना लें )


सोमवार, अप्रैल 25, 2011

एक पहेली



तंग गली में, तन्हा जो रहती है |
वह मुझको एक पहेली लगती है |


पेट पीठ से लगा है जिसका ,
जिस्म वोझ  से झुका है उसका |
फटे पुराने कपड़े पहने ,
पर खुद को रानी माँ कहती है |
वह मुझको एक पहेली लगती है |


रिश्तों के कितने गहने पहने ,
मगर भिखारिन सी लगती है |
सिर पर माँ का ताज पहन कर, 
घर में जो दासी सी रहती है |
वह मुझको एक पहेली लगती है |


जो सूखे में मुझे सुला कर ,
 और खुद गीले में सो लेती है |
उसकी कराह से मेरी नींद ना टूटे 
जो अपना गला दबा लेती है |
वह मुझको एक पहेली लगती है |


जो लोरी  गा  कर मुझे सुलाती ,
 लोरी बिन मुझे नींद ना आती |
 एक शब्द बस "माँ" सुनने को ,
 आज जो हर पल तरसा करती है |
वह मुझको एक पहेली लगती है |

रविवार, अप्रैल 17, 2011

रेलगाड़ी


आज एक पुनः सम्पादित और पूर्व प्रकाशित  रचना आपके लिय ,  यह रचना 
शायद आज एकदम सटीक प्रतीत होती है |


हम सब मुसाफ़िर  है
उस रेल गाड़ी के,
जिसको भ्रष्टाचार  का इंजन,
बेईमानी के कोयले से खींच रहा है |
रास्ते में पड़ने वाले स्टेशन
जैसे  ईमानदारी ,सदाचार और त्याग 
हमें  दिखाई नहीं देते, 
क्योंकि बेईमानी का कोयला 
हमारी आँखों में पड़ चुका है| 
जा रहे है दूर, 
सच्चे आदर्शों से हम,
हो रहा है,
सदाचार  का पलायन |

गुरुवार, अप्रैल 14, 2011

माँ की दुआओं का असर


वह सफ़ीना जो तूफ़ानों को,
शिकस्त दे कर लौट  आया होगा |
देख कर हिम्मत उसकी, 
साहिल ने उसको  गले से  लगाया होगा |


डूबते देख कर किसी को,
यूँही नहीं साहिल उसके पास आया  होगा|
ज़रूर  इस  वाकिये में कुछ तो,
उसकी माँ की दुआओं का हाथ रहा होगा | 




शनिवार, अप्रैल 09, 2011

सूखा वृक्ष



हरे भरे 
घने झुरमुटों के बीच                                   
गर्व से झांकता ,
एक सूखा वृक्ष   |
जो अपनों से , 
केवल तिरस्कार ही पाता है |
 फिर भी उसके  अस्तिव को
कोई नहीं नकार पाता है |
आंधियों के हर झोके 
को जो हँस सहता |
गिरने का भय ,
जिसके मन में ना रहता |
क्योंकि ?
ना तो वह किसी पाप 
की धरती पर,
लगाया गया था|
और ना ही ,
किसी के खून से 
सींचा गया था |  

मंगलवार, अप्रैल 05, 2011

ब्लाग जगत में मेरी पहली वर्षगांठ



यह एक साल  यूँ बीत गया कुछ पता ही नहीं चला | एक मशीन की तरह 
सुबह पोस्ट देखना , कुछ टिपण्णी करना और  कुछ को कॉपी - पेस्ट में 
निपटा देना | ( मुझे भी तो कुछ टिपण्णी चाहिए )| इस एक साल मैंने आपके 
सामने जो भी कुछ परोसा वह  आपने एक  सभ्य अतिथि  की भांति ग्रहण किया |
 और  अच्छी लगी   , सुन्दर अभिव्यक्ति , उम्दा , दिल को छू गयी ,बहुत बढ़िया आदि 
कह कर आपने  मेरा हौसला बढाया | उसके लिए मै आपको धन्यवाद देता हूँ |
अब मेरा फर्ज  बनता है कि मै अपना रिपोर्ट कार्ड आपके सामने प्रस्तुत  करूँ |
तो यह  रहा मेरा रिपोर्ट कार्ड ........

 कुल प्रवष्टियां                                 ६५ 
 कुल अनुसरण कर्ता                      १०८ 
 कुल टिपण्णी                              १४४४  

न्यूनतम  टिपण्णी                      २   ( चलो कुछ तो मिलीं )
अधिकतम टिपण्णी                   ४७  ( अर्धशतक से चूके )


अब कुछ विशेष  ( मेरे लिए )

पहली अनुसरण  कर्ता                    Shikha Deepak
पहली टिपण्णी                             Shikha Deepak


 एक मात्र ब्लागर जिनसे मैं मिला 
    ( और किसी ने मौका ही नहीं दिया )

एक मुलाकात जाकिर अली रजनीश  से




वह तीन ब्लागर जिनसे फ़ोन पर बात हुई :

                             श्री    कुंवर कुसुमेश , विजय  माथुर, और  शिखादीपक 


बात जो दिल को छू गयी 


दीपक 'मशाल' ने कहा…आज मेरी बेटी का जन्म दिन है पर 

तकलीफ तब होती है जब सफलताओं के शिखर पर बैठी एक बेटी के लिए भी माँ-बाप कह देते हैं कि 'उसने तो बेटे की कमी पूरी कर दी' या 'वो तो बेटे से बढ़ के' या 'बेटा है मेरे लिए'.. जैसे संबोधन ही पाती है.. क्यों आखिर हमेशा तुलना बेटे से ही क्यों? क्या एक बेटी बेटी रह कर कमाल नहीं कर सकती? क्या हम उसे सिर्फ बेटी नहीं मान सकते जिसकी तुलना किसी बेटे से की जाने की जरूरत ही नहीं..
 दीपक 'मशाल' ने कहा…
ये धारणाएं भी अजीब होतीं हैं.. कोफ़्त होती है कभी-कभी खुद पर ही कि क्यों ऐसे समाज का हिस्सा हैं हम.. शिवांगी को शुभकामनाएं और आपको बधाई सर..

 वह जिन्होंने गुरु की भूमिका निभाई
राजेश उत्‍साही ने कहा…
अच्‍छी कोशिश। सुनील भाई अगर शब्‍दों के चयन और उनकी जगह पर थोड़ा सा और ध्‍यान दें तो आपकी कहन में पैनापन आ जाएगा।

उस्ताद जी ने कहा
शोहरत की धूल पर 
2/10
साधारण
डा.सुभाष राय ने कहा…
सुनील जी आप का व्यंग्य प्रयोग अच्छा है. थोडा और तीखपन लाने की जरूरत है. जुटे रहिये. नित-नित के अभ्यास से पैनापन बढ्ता जायेगा. शुभकामनायें.

वह  जिन्होंने  मुझे सराहा 

दर्शन कौर धनोए ने कहा…
सुनील कुमार जी ,आपके ब्लोक पर पहली बार आई हु --माता -पिता की तस्वीर देखकर मेरा दिल बहुत खुश हुआ --जो इन्सान माँ -बाप की इतनी इज्जत करता हे --वो यकीनन शानदार हे --अपना फ़्लोअर(दोस्त ) बनाना चाहुगी --धन्यवाद !

उस्ताद जी ने कहा…
जीवन का गणित पर 
6.5/10

एक उत्कृष्ट और मौलिक कविता
जीवन की विडम्बना और वेदना की विलक्षण अभिव्यक्ति
कविता समाप्त होते ही पाठक के मन में अकथनीय अनुभूति होती है.

                   अंत में अगर मै इसमें सफल हुआ हूँ तो एक कहावत के अनुसार 
                               हर सफल व्यक्ति के पीछे एक स्त्री होती है |


                                       मेरी धर्मपत्नी श्रीमती दीप्ति श्रीवास्तव
                   ( क्षमा  करें केवल पत्नी, क्योंकि धर्मबहन और धर्मभाई कभी सगे नहीं होते )

अगर असफल रहा हूँ तो !


                                      मै सुनील कुमार, मेरे कर्म और मेरा भाग्य !



  एक बार फिर मै आप सबका  आभार व्यक्त करना  चाहता हूँ वह पाठक जो जानबूझ कर या गलती से मेरे ब्लाग पर आये और टिपण्णी के रूप में अपना आशीर्वाद दिया |