हरे भरे
घने झुरमुटों के बीच
गर्व से झांकता ,
एक सूखा वृक्ष |
जो अपनों से ,
केवल तिरस्कार ही पाता है |
फिर भी उसके अस्तिव को
कोई नहीं नकार पाता है |
आंधियों के हर झोके
को जो हँस सहता |
गिरने का भय ,
जिसके मन में ना रहता |
क्योंकि ?
ना तो वह किसी पाप
की धरती पर,
लगाया गया था|
और ना ही ,
और ना ही ,
किसी के खून से
सींचा गया था |
गहन अभिव्यक्ति ...ऐसा लगता है जैसे किसी स्वयं निर्मित इंसान के लिए लिखा गया हो ...
जवाब देंहटाएंसंगीताजी से सहमत.
जवाब देंहटाएंअपनी शक्ति से जीवित वह सूखा वृक्ष।
जवाब देंहटाएंहरे भरे घने झुरमुटों के बीच गर्व से झांकता ,
जवाब देंहटाएंएक सूखा बृक्ष |
जो अपनों से ,
केवल तिरस्कार ही पाता है |
फिर भी उसके अस्तिव को कोई नहीं नकार पाता है |
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
behad khoobsurat.....
जवाब देंहटाएंअच्छी भावाभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं आपको
बहुत शानदार...
जवाब देंहटाएंaadarniy sunil bahai ji
जवाब देंहटाएंaapki kavita padh kar dil se bas yahi shabd nikala
Wah---
bahut hi behatreen abhivykti
bahut abhut badhai
poonam
बेहद शानदार लगी यह कविता। इसमे जो कटाक्ष है वह भीतर तक चुभते हैं।
जवाब देंहटाएं..बहुत बधाई।
बेहद तीखा प्रहार करती हुयी रचना.
जवाब देंहटाएंVimbon aur prateekon ke maadhyam se kahi gayi ek kalatmak post jo kathy ko gahraai se abhivyakt karme me saksham. Thanka for such type article.
जवाब देंहटाएंकुछ महान इंसानों की भी यही कहानी है।
जवाब देंहटाएंजीवन सागर का गहन मंथन किया है आपने।
शुभकामनाएं।
सुंदर भाव , सुंदर विचार को सुंदर शब्दों में पिरो दिया है आपने . आभार.
जवाब देंहटाएंBehad sundar post...stya yahi hai...umr se kaya kamjor padti hai anuvaw nahi ...aur anuvaw ki mahtta kabhi kam nahi hoti...kabhi nahi.
जवाब देंहटाएंjo aandhiyon me sar uthaye rakhe, use nakarna mumkin nahin
जवाब देंहटाएंगूढ़ भावों को शब्दों में सुन्दरता से पिरोया है......अच्छी लगी आपकी रचना।
जवाब देंहटाएंek bahut achchhi kavita... badhaaiiiiiii.......
जवाब देंहटाएंखरे सोने सी बात!!
जवाब देंहटाएंसुखा है फिर भी आंधियों में सर उठाये खड़ा है कमाल है ... बेहतरीन एक अच्छा कटाक्ष .......
जवाब देंहटाएंvriksh to hamari jaroort hai isliye uske astitav ko nakarna apna nuksaan karna hai ,magar uski sehat ka khyaal humthik se nahi kar paate .ati sundar .
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (11-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
वृक्षों की महिमा और उनके मानवीकरण पर बधाई, लिखते रहें.
जवाब देंहटाएंवृक्ष ही नहीं वे पथ प्रदर्शक भी होते हैं जो ऐसे होते हैं !
जवाब देंहटाएंताउम्र का अनुभव जो होता है इनके पास ....
जवाब देंहटाएंbahut saarthak vyanga....waastav me vriksha hi jeevan kaa aadar hai........aur sabse jyada bewafai aaj inhi ke saath ho rahi hai.........
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया .... कमाल के शब्द चुने हैं...... यथार्थपरक रचना
जवाब देंहटाएंभाई सुनील जी बहुत सुंदर विचारों से सजी अच्छी कविता बधाई |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर विचारों से ओत प्रोत रचना मन को प्रभावित कर गयी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसूखने के बाद भी ठठरी हड्डियां यूं ही खड़ी रहती हैं , बेजान फ़िर भी, तमाम आंधियां और तूफ़ान अपने में समटे लपेटे हुए ।
जवाब देंहटाएंatal vishwas sa khada hai -sookha vriksh ....!!
जवाब देंहटाएंgahan bhaav se bhari sunder rachna ...!!
bhut prhaavpur abhivyikti,...
जवाब देंहटाएंएक सूखा वृक्ष
जवाब देंहटाएंजो अपनों से
केवल तिरस्कार ही पाता है!
फिर भी उसके अस्तित्व को
कोई नही नकार पाता है .....
दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ सुनील जी , आभार !
गहन अनुभूतियों से भरी रचना... वह वृक्ष एक दिन फिर हरा होगा....
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna ........
जवाब देंहटाएंsunil ji, kaya naraj hai hamse .....
बहुत गहन सोच..सुन्दर अहसासों से ओतप्रोत बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंus vriksh ki jade imandar niyat ki mitti me dabi hui thi.
जवाब देंहटाएंsunder post.
Sukhe vriksh ka garv hame bhi sir uncha rakhanasikha raha hai... achchhi abhivykti..
जवाब देंहटाएंसुनील जी ...बेहद उम्दा, गहरे भावों वाली कविता है. इसके लिए आपको बधाई.
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में पहली वर्षगाँठ पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ ('देरी' के लिए माफ़ी चाता हूँ )
साथ ही आपको राम नवमी की भी शुभकामनाएँ !
गहन भावमयी रचना लगी, विशेषकर गिरने का भय जिसके मन में न रहता...आभार.
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुनील जी
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेहाभिवादन !
बहुत सुंदर रचना है ! बहुत भावपूर्ण !
एक सूखा वृक्ष , जो अपनों से तिरस्कार ही पाता है …
हमारे बुजुर्गों की यही तो स्थिति हो गई है …
आपकी संवेदनाओं को प्रणाम !
* श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत खूब ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंIts a nice creation indeed.
जवाब देंहटाएंपेड के ज़रिये बेहतरीन संदेश देती सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंऐसे ही वृक्षों की जड़ों से धरती सुदृढ बनती है, बहुत सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण , समर्थ ,सार्थक और सुन्दर प्रवाहमयी रचना ...
एक सशक्त कविता
जवाब देंहटाएंआशा
शायद अपनी शक्ति से सींचा गया वृ़ा हमेशा हरा भरा रहता है\ सुन्दर रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और भावात्मक कविता है। बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुंदर रचना .. किसी के आत्मविश्वास का कारण यह ही होता है !!
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