रविवार, जुलाई 25, 2010

मग़र




सावन की रिमझिम फुहारों  में आप .
अपने जीवन का आनंद लीजिये |
मग़र टूटे मकानों में रहते है जो , 
कुछ उनकी छतों का भी ध्यान कीजिये |
सींचा है तुमने जिस वृक्ष को
आप उसे कल्प वृक्ष नाम दीजिये |
मग़र सूखे दरख्तों के गिर जाने पर
आँधियों को मत इल्जाम  दीजिये |
अपने घरों की बहू बेटियों को
आप देवियों सा सम्मान दीजिये |
मग़र रोटी से तन का जो सौदा करे
कोई उसे दूजा मत नाम दीजिये |
आँखों  से टपके जो आँसू कोई
आप उसे मोतियों  का नाम दीजिये |
मग़र रोटी को रोते हुए बच्चे के 
आँसुओं  को पानी मत मान लीजिये |

मंगलवार, जुलाई 13, 2010

क्या यही हमारा विकास है

 
माना पगडंडी को सड़क बना कर
हमने विकास का काम किया है |
और रोटी पर बिछी हुई सब्जी को
हमने पिज्ज़ा का नाम दिया है |
अब आँगन तुलसी  को तरसे ,
और बगिया तरसे  फूलों को
लगा के छत पर नागफ़नी को
 उसे रूफ गार्डन नाम दिया है |
दरकिनार कर अपनी प्रतिभा को
 कंप्यूटर को सब कुछ मान लिया है |
चोरी गड़बड़  घोटालों को ,
हमने हैकिंग का नाम दिया है |
अब मेरे घर में जगह नहीं है
अपने बूढ़े- बूढ़े  लोगों की ,
अलग बना कर घर उनका
उसे ओल्डएज होम का नाम दिया है |

बुधवार, जुलाई 07, 2010

इन आम आदमियों को भूल मत जाना


आम आदमी

तुमको तुम्हारे शहर की
सड़कों पर पड़ी ,
जिन्दा लाशों की कसम
मत डालना तुम ,
इन पर झूठी सहानुभूति का कफ़न
इनको यूँही पड़ा रहने दो
चीखने दो चिल्लाने दो
तुम्हारी सभ्यता की कहानी
इनको ही सुनाने दो
सड़क पर पड़े हुए यह लोग
हमारे बहुत काम आते है |
तभी तो हमारे राजनेता
इनके भूखे नंगे तपते हुए पेटों पर
राजनीति की रोटियां सेंक जाते है |
इनको तरह तरह से 
उपयोग में लाया जाता है |
कभी राम कभी अल्लाह के नाम पर ,
इनका  ही  तो खून बहाया जाता है
और कभी कभी अपनी सियासत,
चमकाने और ताकत दिखाने के लिए
इन आम आदमियों के नाम पर
भारत बंद बुलाया जाता है |
चुनावों के समय हम ,
इनको आम जनता कहते है |
और फिर आने वाले चुनावों तक ,
आम की तरह चूसते रहते है |
यह रोते है तो रोने दो
मत जगाओ, सोने दो |
जिस दिन यह सोता हुआ,
आम आदमी जाग जायेगा ,
उस दिन से संसद का रास्ता
बहुत कठिन  हो जायेगा |