शनिवार, अगस्त 27, 2011

तुलसी की व्यथा .......





आज आँगन की तुलसी ,
क्यों उदास है !
शायद उसको भी , 
घर के बटबारे का आभास है |
जब से दिलों के बीच ,
दूरियों बढ़ने लगीं थीं |
तभी से उसकी जड़ें ,
कमज़ोर पड़ने लगीं थीं|
कल जब आँगन में 
बटबारे की दीवार उठाई जाएगी |
वह तुलसी उसकी बुनियाद में,
यूँ ही दफ़न हो जाएगी|
 यह सोंच कर
वह आज परेशान है|
मुहब्बत की मिसाल ,
कही जाने वाली तुलसी,
कल क्या मुंह दिखाएगी |

(चित्र गूगल के सौंजन्य से)  

बुधवार, अगस्त 24, 2011

एक अप्रवासी वापसी....( आज मेरी पसंद से )


अपनी गली का रास्ता पूछते है, 
आज हम बस्ती की नयी दुकानों से |
हो रही हैं  पहचान अब अपनी, 
बस्ती के पुराने मकानों से |


कभी जिन गलियों में छिपते थे  ,
हम डर कर पकड़े  जाने से |
आज उन्हीं में घूमते रहे हम ,
बस यूहीं घंटों बेगाने से |


जहाँ थे लहलहाते खेत कभी ,
खड़ी है वहां अब इमारतें ऊँची|
रास्ता धूप का रोक लेती  है वह 
अब मेरी खिड़की में आने से |


याद आती है आज भी वह ,
मेरे गाँव की बूढी काकी |
जो अक्सर फूटकर रो पड़ती थी
बस हमारे झूठे रूठ जाने से |




(एक पूर्व  प्रकाशित पुन: सम्पादित रचना)
  

शुक्रवार, अगस्त 19, 2011

यह मजबूरियां ...(चंद शेर )



अब मैं कैसे देखूं सपने, तुझसे मिलने के ,
मेरी आँखों ने तो नींद से रिश्ता तोड़ रखा  है |

और नींद रूठी है एक मासूम बच्चे की तरह,
जिसकी माँ ने जिसे  गोद से उतार रखा हैं |

तुमको जब भी फुरसत हो हमको आवाज़ दे देना, 
हमारी किस्मत में तो बस इंतज़ार लिखा  हैं|

कलाइयाँ ऐसी नहीं जो चूड़ियों का बोझ सह ना सकें 
पेट की आग ने उनकी किस्मत में बाज़ार लिखा है|


मंगलवार, अगस्त 16, 2011

दिहाड़ी का मजदूर........





एक कंपनी के चीफ सेफ्टी ऑफिसर के फोन की घंटी बजने लगी | उधर से फोन करने 
वाले ने अमुक प्लांट में दुर्घटना की सुचना दी | तुरंत ही उसने अपने अधीनस्थ कर्मचारी 
को घटना स्थल पर भेज कर दुर्घटना की सम्पूर्ण जानकारी देने का आदेश दे कर फोन
रख दिया | सोंचने लगा फिर वही मुआवजे के मांग , कर्मचारी यूनियन की हड़ताल की
धमकी मालिक का लाखों का नुकसान .............थोड़ी देर में फिर फोन की घंटी
बजी | फोन रखने के बाद रहत की सांस ली और मालिक को फोन किया सर एक   
मजदुर के दोनों हाथ कट गए हैं मगर अच्छी खबर यह हैं की वह कंपनी का नियमित 
कर्मचारी नहीं है | ठेकेदार का मजदूर है वह भी दिहाड़ी का................

(चित्र गूगल के सौंजन्य से )

गुरुवार, अगस्त 11, 2011

मेरी सौंवी पोस्ट ......

मैं बहुत दिनों से इसी उधेड़बुन में था कि मेरी सौंवी पोस्ट किस विधा में हो ताकि सौ 
टिपण्णी तो मिल जायें|कभी सोंचा कि कोई कहानी  (मगर इस के पढने वाले कम है )
क्यों ना कविता, ग़ज़ल लेख या गीत लिखूं इसी सोंच में डूबा मै सड़क पर जा रहा था |
अचानक मेरी निगाह एक प्लास्टिक कि बोतल पर पड़ी सोंचा क्यों ना बोतल को उठा कर 
कचरे के डिब्बे में डाल दूँ इस बहाने क्लीन सिटी ग्रीन सिटी मेरा योग्यदान भी हो जायेगा|
और रास्ता भी साफ़ मगर जैसे ही बोतल को उठा कर ढक्कन खोला ...उसमें से एक 
जिन्न निकल कर बाहर आया और बोला मुझे कुछ काम बताओ नहीं तो मैं तुम्हें मार 
दूंगा मैंने जल्दी से कहा " एक कप चाय ला "| वह तुरंत ही चाय लेकर हाजिर ...
मैंने पूछा तुम सब काम कर सकते हो वह बोला हाँ मगर दो काम छोड़ कर एक तो 
ईमानदार नेता और दूसरा भ्रष्टाचार मुक्त सरकार |उसकी बात सुन कर मैंने  कहा मुझे तो 
तुम फर्जी जिन्न लगते हो | वह हाथ जोड़ कर बोला मैं हर संभव कार्य कर सकता हूँ |
वैसे हमने अपनी विरादरी के कुछ जिन्न आम आदमी के लिए जमीन पर छोड़ रखें है |                      जैसे तत्काल का रेल टिकट ,पासपोर्ट ,ड्राइविंग लाइसेंस और किसी भी सरकारी कार्यालय के काम
जो एक आम आदमी नहीं कर सकता| वह करते है,वह बोतल में नहीं होटल में रहते हैं |
जिन्न अब हमारे कब्जे में आ चूका था तुरंत ही हमने अपने मन की  बात रख दी |
मेरी इस पोस्ट पर सौ टिपण्णी दिला दे थोड़ी देर बाद वह बोला सारगर्भित, उच्चकोटि, 
की रचनाएँ तो पच्चीस तीस टिपण्णी पर दम तोड़ देती है और तुम सौ टिपण्णी माँग रहे हो 
लालची कहीं के ! मैंने कहा यार दूसरे ब्लॉग तो देख जिनमें सौ से ऊपर टिपण्णी है |
कुछ देर बाद उसने कहा देखो उनमें कुछ तो वरिष्ठ ब्लोगर हैं जिनको लोगों ने नमन किया 
है | रही दुसरे ब्लॉग की बात आधे से अधिक तो लोगों के आने का आभार व्यक्त किया है 
उसने राय भी दी कुछ शिष्टाचार सीखो मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद करो आने का आभार करो
अगर यह सब नहीं कर सकते, तो मुझे फिर से बोतल में बंद कर दो |
जाते जाते वह कुछ अमूल्य सुझाव  दे गया जिस तरह फिल्मों को प्रमोट करते है या किसी 
उत्पाद को, तुम भी अपने ब्लॉग को प्रमोट करो |

दिल की बातें 
(साहित्य का सुपर मार्केट)
एक ही ब्लॉग में मिलेगा आपको सब कुछ, यानि कविता, कहानी  लघुकथा ,शेर ओ शायरी
हास्य ,व्यंग्य ,ग़ज़ल और गीत |

हमारी विशेषताएं :- 

हम बेनामी टिपण्णी भी स्वीकार करते है|
रेडीमेड टिपण्णी कॉपी पेस्ट के लिए उपलब्ध है|

सौंवी पोस्ट पर हार्दिक बधाई , यूँ ही लिखते रहिये , सृजन जारी रहना चाहिए  ,  
बहुत सुंदर , बढ़िया ,दिल को छूने वाली रचना ,सुंदर भावाव्यक्ति,संवेदनशील ,वेहतरीन 
मार्मिक झकझोर देने वाली पोस्ट ,सार्थक पोस्ट, ज्ञानपरक पोस्ट, मजा आ गया और 
निशब्द ....
  


सोमवार, अगस्त 08, 2011

यह बात................




यह बात, मेरे लिए
कुछ अजीब सी होगी|
जब तेरे घर में हो अँधेरा 
और मेरे घर रोशनी होगी| 

यह बात, मेरे लिए
कुछ  ख़ुशी की होगी| 
जब मेरे घर एक चिराग जले 
और रोशनी तेरे घर होगी |



शुक्रवार, अगस्त 05, 2011

हम ऐसे क्यों है ....



रसोई में काम  करती हुई पत्नी के चेहरे की खीझ साफ दिखाई दे रही थी | कारण था घर में काम करने वाली बाई यशोदा का ना आना | मुझे याद आ रहा था छुट्टी लेने से पहले वह कुछ पैसे मांग रही थी |  बाबूजी कुछ पैसे की सख्त ज़रूरत है "| मैंने पत्नी की तरफ इशारा करते हुए कहा "कुछ पैसे  इसको दे दो"|  उत्तर में पत्नी का क्रोधित स्वर सुनाई दिया  "घर में एक भी पैसा नहीं है | उसी समय  पत्नी बोली " किसी तरह से एक हज़ार रुपये सोनू के जन्मदिन पर गिफ्ट देने के लिए रखे हैं  अगर कुछ नहीं देंगे तो उसका मूड ख़राब हो  ख़राब हो जायेगा |   कुछ दिनों तक वह काम पर नहीं आई और एक दिन अचानक  फिर काम पर आ गयी  और उसी तन्मयता  से काम करने लगी | पत्नी ने गुस्से से पूछा इतने दिन कहाँ थी  ? उसने  अपना चेहरा उठाया और बोली कुछ दिनों से मेरा बेटा बीमार था और तीन दिन पहले चल बसा | मैंने चेहरे पर नकली क्रोध लाते हुए कहा इलाज कहाँ कराया उसने कहा सरकारी अस्पताल में, बाहर इलाज में तो हजार पाँच सौ  लग जाते | वह मेरे पास कहाँ! मैंने कहा तो मांग लेती वह बोली अगर आप दे देते तो सोनू के जन्मदिन पर गिफ्ट कैसे आती ? और फिर उसका मूड ख़राब हो जाता .........
यह कह कर वह ऊपर वाले मकान के सीड़ियाँ चढ़ गयी और धकेल गयी मुझे गहरी खाई में कुछ सोंचने के 
लिए  कि  हम ऐसे क्यों है ...... 


(एक पूर्व प्रकाशित एवं पुन : सम्पादित रचना )

सोमवार, अगस्त 01, 2011

ऐसा क्यों ?





अगर तुम समुन्दर की तरह गरजो, 
तो हम इसको फ़ितरत तुम्हारी मान लें|
और तुम हमसे कहो कि हम एक,
खामोश दरिया कि तरह रहना सीख लें|  

(चित्र गूगल के सौंजन्य से)