मंगलवार, नवंबर 20, 2012

यही सत्य हैं.....

आज बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर आया हूँ ।अपनी एक पुरानी  रचना ले कर , जो मेरी पसंद की हैं ।
आशा करता हूँ आपको भी पसंद आएगी ।

 यही सत्य हैं....

झाँक कर देखा खिड़की से
उमड़ते हुए बादलों को
दौड़ कर आँगन में आया | 
और आकाश में बादलों का एक झुंड पाया | 
और शुरू हो गया तलाश का,
एक अंतहीन सिलसिला
अचानक खिल उठा चेहरा |
और प्रसन्न हुआ अंतर्मन
क्योंकि मिल गयी थी मुझे ,
मुन्नी की गुड़िया और पत्नी का कंगन
फिर अचानक कुछ सोंच कर डर गया ।
यथार्थ के धरातल पर गिर गया |
दौड़ कर अन्दर आया
बंद कर ली खिड़की और दरवाजे
कहीं भिगो न दे यह,
मेरे तन का एकमात्र कपड़ा |