शुक्रवार, नवंबर 01, 2013

दीप जलाना सीखो ....

छाया हो जब घनघोर अँधेरा,
तब तुम दीप जलाना  सीखो ।

कुछ रोना कुछ हंसना सीखो,
कुछ खुद को समझाना सीखो ।

गुस्से से ना मिलेगा कुछ भी,
प्यार से जिद मनबाना सीखो ।

भींगी बिल्ली रहोगे कब तक,
कभी तो शेर बन जाना सीखो ।

बनों  पुजारी शांति के तुम,
पर कभी तो आँख दिखना सीखो ।

क्रोधित हो कर मिले जब कोई,
प्यार से उसको समझाना सीखो ।

छाया हो जब घनघोर अँधेरा,
तब तुम दीप जलाना  सीखो ।

रविवार, अक्तूबर 20, 2013

मतला और एक शेर ...


क्यों तमाशायी भीड़ का हिस्सा बनें हैं आप 
अच्छा तो होगा, कोई किरदार आप भी निभा जाइये |
 
आनें जानें के दरमियां जो वक्त मिला है आपको 
जो दिलो दिमाग पर छा जाये, कोई ऐसा काम कर जाइये | 

रविवार, अगस्त 18, 2013

आम आदमी


तुमको तुम्हारे शहर की 
सड़कों पर पड़ी ,
जिन्दा लाशों की कसम 
मत डालना तुम ,
इन पर झूठी सहानुभूति का कफ़न 
इनको यूँही पड़ा रहने दो 
चीखने दो चिल्लाने दो 
तुम्हारी सभ्यता की कहानी 
इनको ही सुनाने दो 
सड़क पर पड़े हुए यह लोग 
हमारे बहुत काम आते है |
तभी तो हमारे राजनेता 
इनके भूखे नंगे तपते हुए पेटों पर 
राजनीति की रोटियां सेंक जाते है |
इनको तरह तरह से  
उपयोग में लाया जाता है |
कभी राम कभी अल्लाह के नाम पर ,
इनका  ही  तो खून बहाया जाता है 
और कभी कभी अपनी सियासत, 
चमकाने और ताकत दिखाने के लिए 
इन आम आदमियों के नाम पर 
भारत बंद बुलाया जाता है | 
चुनावों के समय हम ,
इनको आम जनता कहते है |
और फिर आने वाले चुनावों तक ,
आम की तरह चूसते रहते है |
यह रोते है तो रोने दो 
मत जगाओ, सोने दो |
जिस दिन यह सोता हुआ, 
आम आदमी जाग जायेगा ,
उस दिन से संसद का रास्ता 
बहुत कठिन  हो जायेगा |


(यह रचना आज के समय में बहुत ही सार्थक प्रतीत होती है । इस लिए 
इसको पुन: प्रकाशित कर रहा हूँ )


मंगलवार, अगस्त 06, 2013

शहादत पर सियासत ...

आज सारा भारतवर्ष  शहीदों को अपने अपने अंदाज में श्रद्धांजलि  दे रहा है |  अब प्रश्न  उठता है इनमें से कितने लोग इन्हें कल याद रखेंगे इसका उत्तर  मै आप परछोड़ता हूँ |क्या आपने कभी यह सोचा  जिस परिवार का कोई व्यक्ति शहीद  होता है उस घर का क्या हाल होता है |
मै इस रचना के माध्यम से आपको एक शहीद के घर में लेके चलता हूँ |अगर इस रचना 
को पढ़ते समय आपके आँसू  निकले तो निकलने दीजिये मै  यह चाहता हूँ यह रचना आंसुओं के माध्यम से आप तक पहुंचे।     

बेटे के जब मौत का संदेशा घर में आया था |
तब बूढी माँ के आँखों में तो सागर उतर आया था |

कंधे पर खिलाया था जिसने अपने लाल को ,
अर्थी का तो  वोझ भी उसी कंधें ने उठाया था |

अभी सुहाग कि सेज के तो फूल मुरझाये नहीं ,
 और चूड़ियों  के टूटने का समय वहाँ आया था | 

भाई ओर बहन के करुण क्रंदन को देख कर ,
अपने किये पे  तो काल भी पछताया था |

शनिवार, अप्रैल 06, 2013

ब्लोगिंग की तीसरी वर्षगाँठ....

ब्लोगिंग की आखिर तीसरी वर्षगाँठ किसी तरह मना  रहा हूँ ।यूँ  तो इस वर्ष लेखन कुछ खास नहीं हो पाया फिर भी तीन वर्ष पूरे  कर लिए .....

ब्लॉग का व्यौरा कुछ इस प्रकार रहा ...

कुल रचनाएँ    १७३  ( एक सौ तिहत्तर )  दो सौ का इंतजार हैं 

कुल टिपण्णी   ५६0२  ( पांच हजार छह सौ  दो )

कुल अनुसरण कर्ता   २६० (दो सौ साठ )    ( कब तीन सौ होंगे :))

अंत में आप सभी का आभार व्यक्त करता  हूँ .....



बुधवार, अप्रैल 03, 2013

कवि की मज़बूरी ....

मेरे एक मित्र का फोन आया कि आप तो कवि  हैं एक जल्दी से हमारे विद्यालय के 
वार्षिक उत्सव पर कविता लिख कर मेल कर दो, समय दिया केबल एक घंटे का ...
पत्नी ने धिक्कारा ऐसे तो कवि बने फिरते  हो एक काम नहीं कर सकते 
हमारे अन्दर का कवि जग उठा और पंद्रह मिनट में रच डाली मज़बूरी की कविता ....


विद्या का यह  मंदिर हैं 
डॉन बास्को इसका नाम 
ज्ञानार्थ प्रवेश हैं इसमें 
और सेवार्थ प्रस्थान । 

गुरुओं का सम्मान सिखाते 
चरित्र निर्माण का पाठ  पढ़ाते 
अध्ययन अपना पूरा करके 
विधार्थी बनता अच्छा इन्सान । 

विद्या का यह  मंदिर हैं 
डॉन बास्को इसका नाम 
 

माता  पिता की सेवा करते 
गुरुओं का सम्मान वह करते 
निर्बल पर अन्याय ना करते 
रखते  सबका पूरा ध्यान । 

विद्या का यह  मंदिर हैं 
डॉन बास्को इसका नाम 

हरे भरे हैं खेत यहाँ पर 
मिला हो जैसे प्रकृति का वरदान 
रंग बिरंगे फूल  देख कर 
आती चेहरे  पर मुस्कान । 

विद्या का यह  मंदिर हैं 
डॉन बास्को इसका नाम 
ज्ञानार्थ प्रवेश हैं इसमें 
और सेवार्थ प्रस्थान ।  


कैसा लगा यह मज़बूरी का प्रयास 

शुक्रवार, फ़रवरी 01, 2013

आज एक ताज़ा ग़ज़ल


ज़िन्दगी की कश्ती में हिम्मत की पतवार होना चाहिए ।
मोड़  सकते हैं हम तूफानों का रुख, दिल में यह एतवार होना चाहिए।

मेरी कश्ती तो टूटी थी जो मौजों में फंस कर डूब गयी ।
मेरे डूबने पर तूफानो  को नहीं नाज़  होना चाहिए ।

मेरी कश्ती दो चार हिचकोले खा गयी तो क्या हुआ ।
कश्तियों को भी अपने कमज़ोरी का, अहसास होना चाहिए ।

वह कश्तियाँ जो हवाओं  के सहारे ही किनारों से जा लगी ।
उनको अपनी किस्मत का एहसानमन्द    होना चाहिए ।

कागज  की कश्तियों  से  वह समुन्दर भी पार करले  ।
बस उस नाख़ुदा को, ख़ुदा पर एतवार  हों चाहिए ।


सोमवार, जनवरी 14, 2013

शहीदों का सम्मान

आज जब शहीदों के सम्मान की बात चल रही हैं तो मै अपनी बात चार पंक्तियों में रखना 
चाहता हूँ ।

यदि इन शहीदों का सम्मान चाहिए । 
तो एक युद्ध और  घमासान चाहिए ।
मै कश्मीर सियाचिन नहीं मांगता ,
मुझको तो पूरा पाकिस्तान चाहिए ।