जी हाँ यह शीर्षक आपको कुछ अटपटा लगा होगा और लगना भी चाहिए क्योंकि इस तरह के शीर्षक से समाचार प्रकाशित करने अधिकार केवल अम्बानी, टाटा बिरला या किसी अन्य नए अमीर आदमी को है |यहाँ मै आपको विश्बास दिलाता हूँ की मै इनमे से कोई भी नही हूँ |जिसकी पुष्टि आप मेरे व्लाग के प्रोफाइल को देखकर कर सकते है | मै एक आम आदमी जिसे केवल रोटी और रोटी से मतलब है| जी हाँ यह बिलकुल सत्य है दिनांक १४सितम्बर १९८९को मेरी बेटी पुन्नू का जन्म हुआ था | उसका जन्म एक निजी अस्पताल में आपरेशन से हुआ था | मै आपरेशन थियेथर दरवाजे पर ही खड़ा था | दरवाजा खुला डाक्टर साहिबा अपने चेहरे पे नकली हँसी लाती हुई बोली बधाई हो लड़की हुई है | उस हँसी में खुशी कम और दुख ज्यादा था |मै उनके दुख के कारण खोजने का प्रयास करने लगा | आसपास के सूचनापटों पर निगाह दौड़ाई शायद कहीं यह लिखा हो लड़की के जन्म पर डाक्टर की फ़ीस आधी मग़र बाद में याद आया वह भी उसी हिंदुस्तान में रहती जहाँ लड़की के जन्म को शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है |सामने डाक्टर की नेमप्लेट थी जिस पर नाम के नीचे डिग्री की लम्बी लाइन थी | मुझे यह बात देख कर बहुत ख़ुशी हुई की इस विषय पर शिक्षित या अशिक्षित सब एकमत है |
मेरे पीछे कुछ कानाफूसी चल रही है अस्पताल की नर्से कह रही है की लड़की हुई तो क्या हुआ ५०० नहीं तो ३०० तो ले ही लेंगे |मुझे ऐसा लग रहा था की वह मुझे अप्रत्यक्ष्य रूप से संवेदना दे रही हो |
तभी हमारे मोहल्ले की काकी जल्दी से रिक्शे से उतर के अंदर आयीं और बिना पूछे ही बापस चली गयी | हुआ यह की रिक्शे वाले ने २० पैसे कम दिए थे अब काकी उससे कह रही थी भइया कहीं से भी लाओ हमको हमारे पैसे चाहिए लड़की हुई अगर ऐसे लुटाते रहे तो फिर शादी कैसे करेंगे | इस काकी की हमारे प्रति आत्मीयता कहें या लड़की के जन्म के प्रति उनकी अलग धारणा समझ में नहीं आता ?
आज मेरी बेटी २१ साल की हो गयी अब हम उसको शिवांगी श्रीवास्तव के नाम से पुकारते वह इंजीनियरिंग कालिज फौर्थ इयर की स्टुडेंट है | यहाँ मै यह भी बता देना चाहता हूँ कि मेरे दो बेटियाँ है दूसरी है आरुषी श्रीवास्तव जो इंजीनियरिंग के सेकंड इयर में है |
अब अगर आप उस डाक्टर ,नर्स या काकी से , बेटियों के प्रति
कुछ अलग विचारधारा रखते है तो उसके जन्म दिन कि बधाई दे सकते है आपका स्वागत .......