सोमवार, फ़रवरी 28, 2011

गज़ल



कुछ तो करो तुम जिक्र, मेरे शहर का आज ,
माना कि तुमसे मेरा , अब कोई वास्ता नहीं |

   देख कर दीबार तुमने अपना रास्ता बदल लिया |
  सोचा कि तुमने आगे, अब  कोई रास्ता नहीं |

 अचानक मुझको देख कर क्यूँ  परेशान हो गए |
 दुनिया है कितनी छोटी, शायद तुमको पता नही |

 अपने मिलकर विछ्ड़ने का जो यह हादसा हुआ |
 ना कसूर था तुम्हारा, और इसमें मेरी भी ख़ता नहीं |

 टूटा ज़रूर हूँ मै, मगर बिखरा नहीं अभी तक  |
 किस चीज से बना हूँ, यह मुझको पता नहीं | 



शुक्रवार, फ़रवरी 25, 2011

न्याय या सौदा ?



सामने  के प्लाट में खुदाई का काम तेजी से चल रहा था | सुनने 
में आया कि एक बहुमंजिला  ईमारत बनने वाली है | मजदूरों के 
साथ साथ मशीनों का शोर भी मुझे परेशान कर रहा था | मजदूर 
एक दुसरे से मजाक करते हुए अपने काम में लगे रहते और 
बीच बीच में ठेकेदार कि गालियाँ  भी खाते रहते थे | उन्ही में था एक
राम  खिलावन बीस बाईस साल का हंसमुख  नौजवान , उसके साथी 
उसे छेड़ते हुए पूछते थे "व्याह  तेरा होगा की नाहीं या कुंबारा ही मरिहो?
वह बहुत रौब से कहता था" देखना  इ  जेठ में शादी ओउर अगले जेठ में 
लड़का" सब इस पर हँसते और अपने कम पर लग जाते |
कुछ दिनों के बाद वह अपने गाँव गया और शादी करके अपनी बीबी 
के साथ एक टीन का बक्सा और साईकिल भी लेके आया |
रोज सुबह शाम को टीन का बक्सा बजा कर गाना गाता" हमरे अंगना खेले मोरा लाल " कुछ दी तक सब सामान्य रहा |
 फिर एक दिन अचानक ठेकेदार की नजर उसकी बीबी पर पड़ी
 फिर  वही हुआ जिसका डर था |
पुलिस आयी पंचायत बैठी और थमा दिए गए कुछ रुपये उसके हाँथों में 
अगले दिन जब टीन का बक्सा नहीं बजा तो लोग अन्दर गए जो देखा 
सब स्तब्ध रह गए क्योंकि दो लाशें छतपर  लटक  रही थी और उनके हांथों में वह रुपये थे और  ऑंखें खुली थी जैसे वह पूछ रही हों क्या यही
 तुम्हारा न्याय है या  चुप रहने का सौदा ? अगर यह सौदा था |   
 तो हमें मंजूर है | क्योंकि अब हम  चुप हो गये हमेशा के लिए ....






  

रविवार, फ़रवरी 20, 2011

अपना अपना भाग्य


क्यों मिला उसको ?  
सपनों का संसार ,
अपनों का प्यार |
क्यों मिला मुझको ?
सपनों का टूटना ,
अपनों का रूठना |
क्यों पाया उसने ?
द्रुत गति का कालचक्र 
क्यों मिलीं मुझे ? 
बंद घड़ी की सूइयां |
प्रश्न है अनेक ,
पर उत्तर है एक 
अपना अपना भाग्य !

मंगलवार, फ़रवरी 15, 2011

भारतीय क्रिकेट टीम को शुभकामना

      




      विजय गीत 

धोनी की सेना निकली दोहराने फिर  इतिहास 
अब तो अपनी पूरी होगी विश्व विजय की आस |


        
क्रिस्टन की रणनीति भी है और सचिन का शौर्य ,
धोनी की तो धूम मची है विश्व में चारों ओर |
वीरू  का जब बल्ला बोले तब गेंदबाज  हो निराश,
अब तो अपनी पूरी होगी विश्व विजय की आस | 

          
जहीर ,मुनाफ छुड़ा रहे है बल्लेबाज के छक्के ,
तरकश में अभी तीर बचे है पीयूष और भजन के |
श्रीशांत अगर हो जाये रौद्र, तो कर दे सबका नाश ,
अब तो अपनी पूरी होगी विश्व विजय की आस |



राम का आशीर्वाद तुम्हें है ओर दुआएं अली की ,
अब शान बड़ा दो आपने देश  गाँव और गली की| 
विजय तिरंगा फहरा दो, करो ना हमको निराश ,
अब तो अपनी पूरी करदो विश्व विजय की आस |

धोनी की सेना निकली दोहराने फिर  इतिहास 
अब तो अपनी पूरी होगी विश्व विजय की आस |



समस्त चित्र गूगल के सौजन्य से    

बुधवार, फ़रवरी 09, 2011

माँ तो आख़िर माँ ही है

    
      अभावों से मेरा हमेशा चोली दामन का साथ रहा है  | बचपन से शुरू क्या
हुआ आज तक मुझे यह छोड़ने को तैयार नहीं है | कई  बार वक्त ने कोशिश भी
 की मग़र हमारी दोस्ती नहीं टूटी | और धीरे धीरे हम दोनों एक दूसरे के पूरक
बन गए | बेटे की फ़ीस जमा करने की आखिरी तारीख़ मुझे ऐसी लग रही थी
जैसे  मेरी फाँसी का दिन नियत कर दिया गया है | उस पर बेटी की शादी की चिंता
मकान मालिक आज कल मुझे यमराज लगता था | कुल मिला कर एक आम
आदमी की सभी समस्याएं मेरे आगे पीछे घूम रही थी  | इन समस्याओं का हल
 मुझे आत्महत्या की सिवा दूसरा कोई नज़र नहीं आ रहा था | अचानक फोन
की घंटी बजी बड़े भाई का फोन था" माँ नहीं रहीं " यह खबर मेरे लिए फाँसी का फंदा
गले तक आने जैसी थी | माँ के मरने का दुख उस पर गाँव आने जाने के किराये की
चिंता में डूबा हुआ बहुत देर तक कुर्सी पर बैठा रहा | पत्नी और बच्चे मेरे आसपास
घेरा बना कर खड़े थे जैसे क़ी मै कोई  मदारी हूँ | मेरा अगला खेल क्या होगा ?
अचानक ही मुझे कुछ याद आया और चल पड़ा स्टेशन क़ी ओर माँ के अंतिम दर्शन
के लिए रास्ते भर माँ के बारे में सोचता रहा ओर माँ क़ी ममता ओर उसके त्याग क़ी
कहानी मुझे सच्ची लगने लगी थीं | क्योंकि पिता क़ी वसीयत के अनुसार माँ के मरने
 के बाद खाते में जमा पैसे हम दो भाई में बाँट दिए जाएँ | अब मेरी आँखों से आंसू
बह निकले थे उस माँ के लिए जो खुद मर कर  मुझे एक नई ज़िंदगी दे गयी .........
  और दिल ने कहा माँ तो  आख़िर माँ ही है ..................

गुरुवार, फ़रवरी 03, 2011

क्या यही है हमारी पहचान



देखने में लगभग सात आठसाल का एक बच्चा फटे पुराने कपड़े 
या उन्हें चीथड़ा कहें आपने शरीर पर लपेटे हुए एक किराना शाप 
के सामने बैठा हुआ था | जैसे वह दुकान की सीड़ियाँ चढ़ने की 
कोशिश करता तभी दुकानदार दुत्कार कर भगा देता | वह  दो तीन 
बार प्रयास कर चुका था हर बार दुकानदार की गलियों में अभद्रता 
बढती जाती थी | वह चिल्लाकर कह रहा था कहाँ से चले आते है 
सवेरे सवेरे भीख मांगने वाले , दुकान खुली नहीं की सिर पर सवार हो 
गए | इस बार उसने अपनी  मुठ्ठी में दबे दस के नोट को आगे कर 
कहा " टॉफी लेनी है "  दुकानदार ने आपने स्वर में मधुरता लाते हुए कहा 
अन्दर आकर बताओ कौन सी टॉफी ?