शनिवार, दिसंबर 31, 2011

नये साल से नयी आस.....

कुछ ग़म कुछ परेशानियों से, 
पहचान अपनी अच्छी हैं|
फिर नए साल में उनको अपना दोस्त, 
बनाने में बुराई क्या हैं |

हमको मालूम है कि नहीं बदलेगी, 
नए साल में किस्मत अपनी |
फिर  भी नये साल से नयी आस| 
लगाने में बुराई क्या हैं| 


                नव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें  



बुधवार, दिसंबर 28, 2011

चंद शेर इधर उधर से......

जब कभी भी आँधियों का ज़िक्र  आयेगा |
तब टूटे हुए  गुंचे भी याद आयेंगे |


जिस बज़्म में वफ़ा का ज़िक्र हो रहा होगा |
उस वक्त हम भी ज़रूर याद  आयेंगे |

रुख से नकाब हटाने से क्या फायदा होगा |
चाँद शरमा कर छुप जायेगा अँधेरे छा जायेंगे 

लचकती साख पर जो ज़ोर आजमा रहा होगा |
नाम उनके कमजोर की फ़ेहरिस्त में आयेंगे |

रविवार, दिसंबर 25, 2011

नारी के रूप और चेतावनी ........


बेटी जो पुकारोगे तो,
गले में झूल जाएगी |
बहन जो बनाओगे तो,
राखी बांध जाएगी |


पत्नी जो मानोगे तो,
यह प्यार बरसायेगी|
समझोगे माँ इसे  तो,
आँचल में छिपाएगी |


खिलौना जो समझोगे तो, 
यह खेल भी दिखाएगी   |
पर  खेल ही खेल में,
यह प्राण हर जाएगी |




गुरुवार, दिसंबर 22, 2011

काश !

चौराहे पर खड़ा 
एक मोटर साईकिल सवार| 
कर रहा था 
हरी बत्ती का इंतज़ार|
पड़ोस में खड़ी थी एक कीमती कार,
आधी खुली  खिड़की से कुत्ते का बच्चा
झाँक रहा था बाहर|
वह सवार, उस कुत्ते के बच्चे को ,
निहार रहा था बार बार 
कर रहा था उसको दुलार |
तभी पीछे से आवाज़  आई
भूखा हूँ दे दो कुछ मेरे भाई|
वह जानता था उसकी किस्मत में ,
गालियाँ  के सिवा खाने को कुछ नहीं है |
मगर प्रयास करने में जाता कुछ नहीं हैं |
कुत्ते के बच्चे की मिल रहा था, 
प्यार और दुलार| 
और उसको मिल रहीं थीं ,
गालियाँ और दुत्कार |
गाड़ियाँ चली गयीं थी 
बत्ती हरी हो गयीं थी |
कुछ सोंच कर मुस्कराया 
और मुंह से निकला  काश ! 

सोमवार, दिसंबर 19, 2011

बाल विवाह एक अभिशाप .........




गुड्डे और गुड़ियों का
व्याह जो रचाती है |
अगले ही पल वह ,
ख़ुद दुल्हन बन जाती हैं |

 जो पिता नहीं कह पाती, 
वह पत्नी क्या कहलाएगी | 
जो दूध अभी पीती है, 
वह दूध क्या पिलाएगी |

नाम तो दिया हैं तुमने,
इसको कन्यादान का| 
और दान दे दिया ,
 एक कन्या की जान का |

(चित्र गूगल के सौंजन्य से )

गुरुवार, दिसंबर 15, 2011

एक नवोदित कवि का दर्द......( व्यंग्य)

आज एक पूर्वप्रकाशित रचना प्रस्तुत है कारण यह है कि यह रचना मेरे उस समय की है |
जब मेरे ब्लॉग पर पाठकों कि संख्या बहुत कम होती थी|   

जब हम कविता लिख रहे होते है तब हम शब्द पकड़ते है| 
जब रचना लिख चुके होते है तब श्रोता पकड़ते है |
इस धर पकड़ के खेल का अंत तब हो जाता है |
जब किसी नवोदित कवि की पकड़ में कोई श्रोता आ जाता है  |
जब वह कवि श्रोताओं के पकड़ने की कला में पारंगत हो जाता 
तब जाकर किसी कवि-सम्मलेन का निमंत्रण पाता  है |
कवि-सम्मेलन में सबसे पहले सरस्वती वंदना की बारी आती है |
पहले एक कवयित्री  सरस्वती वंदना करती है |
फिर चार रचनाओं के बाद भी बंद  ना करती है |
नवोदित कवि हर रचना पर ज़ोर से ताली  बजाता है |
अपने मंच पर होने की याद, संचालक को दिलाता है |
तब जाकर वह कवि मंच पर पुकारा जाता , 
और देशी तमंचे की तरह एक फायर करके वापस आता है |
फिर मंच पर एक स्थापित कवि आता है |
वह मशीन गन की तरह फायर पे फायर करता जाता है |
कार्यक्रम के बाद स्थापित कवि को चेक थमा कर ,
कार में बिठाया  जाता है |
और नवोदित कवि को धन्यवाद दे कर, 

उसके रूट की  बस का नंबर बताया जाता है |
थका हारा कवि घर आता है |

मेज पर पड़े हुए संपादक के खेद सहित पत्रों को 
अपना मुंह चिढ़ाता हुआ पाता है |
आज वह अपनी रचनाओं को निठ्ल्लें पुत्र के समान पाता है |
अपने भविष्य के बारे में सोंच कर वह वर्तमान में मर जाता है |




सोमवार, दिसंबर 12, 2011

ऐसी अपनी इच्छा हैं.........

अपने उर के स्पंदन को,
बस जीवन मैंने मान लिया|
अपने उर के क्रंदन को
गीतों का मैंने नाम दिया| 
रुके साँस के साथ कलम भी 
ऐसी अपनी इच्छा हैं |
पटाक्षेप ही जीवन नाटय का, 
देगा हमको इसका उत्तर|  
चली है उसकी अपनी मर्जी,  
या मेरी इच्छा को मान लिया| 

गुरुवार, दिसंबर 08, 2011

फिर यह क्यों ना बदला ..........


हम  बदले , तुम बदले 
जग बदला , सब बदला 
फिर यह क्यों ना बदला  
अब भी यही कहानी है| 
 भैया का तो नया है नेकर 
 बहन की फ्राक पुरानी हैं| 


(चित्र गूगल के सौन्जय से )

मंगलवार, दिसंबर 06, 2011

माँ की ममता और पिता का फ़र्ज़



माँ की ममता के  क़सीदे
पढ़ने भी  वाजिब हैं |
मगर एक बाप का फ़र्ज़ भी, 
परवरिश में कुछ कम नहीं होता|

कहीं से ढूंढ़ कर लाओं , 
ऐसा बाप इस दुनिया  में |
जिसे अपनी औलाद की, 
नाकामियों पर ग़म नहीं होता | 

(चित्र गूगल के सौंजन्य से )

शुक्रवार, दिसंबर 02, 2011

हास्य कविता, जन्म दिन.........

क्यों ? कुछ लोग अपना,
जन्मदिन धूमधाम से मनातें है |
जबकि अपने सीमित जीवन का,
एक वर्ष व्यर्थ में ही गंवातें हैं |
जहन में हमारे यही एक सवाल था|
जबाब हमारे दोस्त का बेमिसाल था|
हमारे यहाँ तो केवल पत्नी का
जन्मदिन धूमधाम से होता हैं|
क्योंकि टेंशन का एक वर्ष,
हमारे जीवन से कम होता हैं |


          आज मेरी पत्नी का जन्मदिन है


                    डिस्क्लेमर 
(इस रचना का संबध किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति की पत्नी  या मेरी पत्नी से नहीं हैं )