मंगलवार, मई 31, 2011

सत्य कथा विशेषांक ( हास्य कविता )



अक्सर हास्य कवियों पर यह आरोप लगते है कि वह लतीफों को पंक्तिबद्ध 
करके रचनाएँ लिखते है | मगर मेरा मानना है कि हास्य कवि दोहरी भूमिका 
निभाता है | इस व्यथित समाज को हँसाने के साथ  साथ सन्देश भी देता है |
चलिए एक आरोप और लगा दीजिये |


एक सम्पादक के मन में 
एक विचार आया | 
 और तुरंत ही उसने ,
एक विज्ञापन छपवाया |
हमारा अगला अंक ,
 सत्य कथा विशेषांक होगा |
और घटनाओं  की सत्यता ,
चयन का आधार होगा |
तब हो गया एक चमत्कार ,
रचना आयीं पूरी पचास हज़ार |
मगर एक ही शीर्षक,
आ रहा था बार बार 
नेताओं का भ्रष्टाचार , नेताओं का भ्रष्टाचार 

शनिवार, मई 28, 2011

मुझे जबाब चाहिए


 बात आज से लगभग बाईस तेईस साल पुरानी है हमारे पड़ोस में एक  ऍम . के . वशिष्ठ  नाम 
 के व्यक्ति रहते थे |उनके यहाँ जब दूसरी कन्या ने जन्म लिया तो आस पड़ोस के लोग शोक 
 मिश्रित बधाई देने पहुँचने लगे | कोई कहता की घर में लक्ष्मी आयी है | किसी का कहना था 
 की बेटी और  बेटे में कोई फर्क नहीं ,कुछ लोग तो एक कदम आगे बढ़ कर उनकी बेटियों की 
 तुलना इंदिरा  गाँधी से भी कर देते थे |
समय बीतता गया वशिष्ठ जी ने अपनी छोटी सी नौकरी में ही उन दोनों को शिक्षा दिलाई |
हाँ  ! इस बीच उनकी पत्नी का समुचित इलाज ना होने के कारण लम्बी बीमारी के बाद देहांत  
 हो गया |  वशिष्ठ जी ने हिम्मत नहीं हारी और ना ही उनकी बेटियों ने उन्हें निराश किया|
उच्च शिक्षा प्राप्त कर जल्दी ही अच्छी नौकरी भी कर ली | पिता ने सुयोग्य वर देख कर उनका
विवाह करके अपने को निवृत कर लिया | और रह गए नितांत अकेले ................
बढ़ती उम्र और गिरते स्वास्थ ने उनको अपनी गिरफ्त में जकड़ लिया | जैसे बेटी को सूचना
मिली तुरंत ही अपने घर ले जाकर उनका इलाज करवा कर अपने घर दो महीने रखा |
इस बीच उनके मिलने वाले आकर उनका हाल चाल पूछते और उनको सामाजिक मान्यताओं
का वास्ता दे कर समझाते कि" कन्यादान के बाद कन्या के घर का पानी भी ग्रहण नहीं करना
चाहिए यह पाप नहीं घोर पाप है "| अत: बेटी के मना करने के बाद भी जिद करके अपने घर
चले आये | कुछ दिनों के बाद फिर बीमार पड़े अब मोहल्ले वाले आकर दया दिखाते और
 कहते अच्छा होता कि एक बेटा होता !कोई उन्हें ओल्ड एज होम जाने कि सलाह देता |
 मगर बेटियां  इसको मानने को तैयार नहीं थीं | इसी कशमकश में कुछ दी बीत गए अब वह
  कहाँ जाएँ | अचानक एक दिन वह कहाँ चले गये, किसी को नहीं मालूम, उनकी तलाश जारी
 है  | और इस प्रश्न के उत्तर की भी तलाश है उन्हें कहाँ जाना चाहिए ?



गुरुवार, मई 26, 2011

नन्हा पौधा , ( बाल कविता )


आज एक पुरानी बाल कविता पुन : प्रकाशित और पुन : सम्पादित प्रस्तुत है |
कारण ,इसके भाव मुझे बहुत अच्छे लगते है | अब देखना है क्या ख्याल है आपका ! 

हरा भरा  एक नन्हा पौधा ,
 लगा  मेरे  उपवन में | 
 जिसे देख कर फूल ख़ुशी के
 खिल जाते मेरे मन में   |
 धूप यह खाता , पीता पानी
 यही तो इसका दाना पानी |
 बढ़ते बढ़ते  बढ़  जायेगा
 जब  घना वृक्ष यह बन जायेगा |
 तब किसी राह का , 
 थका मुसाफ़िर, छाया में इसकी 
 नींद चैन  की सो  जायेगा | 



रविवार, मई 22, 2011

यह कैसा रिश्ता ? ( लघुकथा)



जैसे जैसे स्टेशन पास आ रहा था उनकी ख़ुशी   बढ़ती जा रही थी | गाड़ी स्टेशन पर रुकी तो 
एक आदमी उनका नाम पुकारते हुए उनकी सीट के पास आया और बोला  "आप ही है ए. के. 
शर्मा के रिश्तेदार ? उन दोनों पति - पत्नी ने खुश हो कर हाँ में सिर हिला  दिया | उसने कहा 
 साहब ने मुझे आपको लेने के लिए भेजा है | गाड़ी में बैठते ही उस बूढ़े आदमी ने पूछा
 क्या साहब घर पर नहीं है नहीं है "उत्तर में वह बोला नहीं घर पर ही है मेमसाब के साथ 
कहीं बाहर जाने का  प्रोग्राम है |
थोड़ी देर सन्नाटा छाया  रहा  फिर वह बोला " साहब अभी मुझे फिर स्टेशन आना क्योंकि 
दोपहर की गाड़ी से मेरे माँ और बाऊजी आ रहे है | मैंने तो आधे दिन की छुट्टी लगा दी है 
आख़िर माँ बाप आ रहे हैं ना ..".फिर उसने एक  प्रश्न  किया साहब से आपका क्या रिश्ता है 
बूढ़े आदमी मुस्कराते हुए कहा  " दूर के   रिश्तेदार है " क्योंकि वह अपने   बेटे को उसके 
अधीनस्थ  कर्मचारी की  निग़ाह में छोटा दिखाना नहीं चाहता था |



मंगलवार, मई 17, 2011

आज एक मुकम्मल ग़ज़ल


 एक गज़ल के लिए मतला ,कुछ शेर और गज़ल मकता होना जरुरी है | मगर कुछ गज़ल
बिना मकते के ही मुक्म्मल हो जाती है | मकता जिसमें शायर का तख़ल्लुस आता है |
आज मै एक मुकम्मल ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ | मै एक नये तख़ल्लुस की तलाश में हूँ |
अगर आप लोग मेरी कुछ सहायता कर सकें  तो, तख़ल्लुस पसंद आने पर यह शेर उसकी 
शान में पढ़ा जायेगा |

दुआएं ,वह लम्बी उम्र की मेरे दिल से पायेगा 
जिसने, कुछ वक्त मेरे लिए ज़ाया किया होगा |



 मौत के साये में पलती जिन्दगी देखी है मैंने 
ज़िन्दगी की खातिर मरती ज़िंदगी देखी है मैंने |

वोझ इतना कि चलना हो मुश्किल एक कदम 
उस पर कुछ तेज चलती ज़िंदगी देखी है मैंने |

जिस चौराहे पर आकर बनते है अपने अजनवी 
बस उसी चौराहे पर खड़ी ज़िंदगी देखी है मैंने |


 ज़िंदगी को संवारना एक मुश्किल काम था" सुनील "
 बस इस लिए बरबाद होती ज़िंदगी देखी है मैंने |

 

शुक्रवार, मई 13, 2011

जीवन और मृत्यू का द्वन्द



छिड़ा है  एक अंतहीन द्वन्द ,
जीवन और मृत्यू  के मध्य |
मृत्यु  का कहना 
मेरा अस्तिव ,
करता है तुम्हें सीमित |
और  क्रूर अट्ठाहस 
प्रत्युतर में ,
जीवन का कहना  
मात्र तुंम हो, एक पड़ाव 
मेरी यात्रा के |
और  मधुर मुस्कान |
हाँ , एक बार अवश्य 
आना है तुम्हारे पास 
करने अंतिम विश्राम |
क्योंकि करना है मुझे ,
नियति का सम्मान |
और छोड़ जाऊंगा 
फिर एक उत्तर विहीन प्रश्न, 
किसकी जय, किसकी पराजय ?



मंगलवार, मई 10, 2011

एक लाईलाज रोग का ईलाज ( हास्य कविता )



चीन भारत की ज़मीन हड़पने में लगा हुआ और हम मूक दर्शक बने हुए है  | सैन्य कार्यवाही 
की बात तो हम सोंच  ही नहीं सकते क्योंकि हमने शांति के पुजारी का दर्जा हासिल कर 
लिया है | हाँ अंतर्राष्टीय मंच पर एक दो बार इस मुद्दे को उठा देते है ताकि विपक्ष इस मुद्दे को 
संसद में ना हथिया सके | हिंदी चीनी  भाई भाई  का यह नारा आज हमें सार्थक नजर आ रहा 
है | बस एक फर्क है चीनी दूसरे देश की जमीन हड़प रहा है और हमारे भू माफिया अपने देश 
के अन्दर की ज़मीन हड़प रहे है  |  अब यह रोग लाईलाज प्रतीत होता है | लेकिन किसी भी 
इलाज में एंटी बायटिक का विशेष महत्व है | मैंने सोचा क्यों ना प्रयोग कर के देखा जाये |


एक दिन हमने चीन को धमकी दे दी |
चीन ने सीमा पर चौकसी  कड़ी कर  दी |
हमने कहा , जिस दिन हमारे भू माफिया की 
नजर तुम्हारी ज़मीन पर पड़ जाएगी |
कुछ दिन के बाद  तुम्हें  वहां ,  
एक बड़ी बिल्डिंग नजर आएगी | 
अब चीन परेशान था |
क्योंकि उसे हमारे इन दिग्गजों की ,
सांठ गांठ और इनकी शक्ति का ज्ञान था |
लोहा गर्म देख कर एक और प्रहार के दिया 
और उसको भविष्य बारे में आगाह कर दिया |
कि उस दिन तुम्हारी यह ,
आधी खुली ऑंखें , पूरी खुल जाएँगी |
जब उन्ही बिल्डिंगों से झांकती हुई 
तुम्हारे नेताओं और फौजियों कि बीबियाँ नजर आएँगी |



शुक्रवार, मई 06, 2011

ब्लाग जगत की टिपण्णी और उनका सम्बन्ध



 एक  दिन  अचानक हमारे एक मित्र ने ब्लागिंग से सम्बंधित कुछ  प्रश्नों के उत्तर जाननें 
के लिए हमसे संपर्क किया | उनकी जिज्ञासा टिप्पणियों के प्रतीकों और उनके आकार 
को लेकर थी | जैसे .....

(१)  )),  ..... ,(.)   इन टिप्पणियों का क्या अर्थ है ?
मैंने कहा इस प्रकार की टिप्पणीकार, प्रतिशोध भावना से ग्रसित  होते है | जब पूरी रचना 
पढ़ने के बाद भी उनकी समझ में यह नहीं कि रचना साहित्य की किस विधा में है और उसका 
उद्देश्य क्या है ( लिखने के सिवा ) तब वह इस प्रकार की टिपण्णी करते है | जब तुम्हारा  
 लिखा हम नहीं समझ सके, तो हमारा  लिखा तुम समझ कर दिखाओ |

(२) बढ़िया , सुन्दर , वाह  ,  इन टिप्पणियों का क्या अर्थ है ?
               इस प्रकार की टिपण्णी ब्लागर की वरिष्ठता को दर्शाती है |
तब हमने उसे एक व्यवहारिक उदहारण दे कर समझाया जिस प्रकार किसी कनिष्ठ लिपिक 
के बच्चे के जन्म दिन पर मुख्य प्रशासनिक अधिकारी घर आके ग्यारह रुपये दे कर , 
बिना कुछ खाए चला जाये यह भी ठीक उसी प्रकार है | 

(३) कॉपी - पेस्ट  लम्बी टिपण्णी  इन टिप्पणियों का क्या अर्थ है ?
इस प्रकार की टिपण्णी का प्रयोग अधिकतर  नए ब्लागर करते है इसका उद्देश्य ज्यादा से  
 ज्यादा ब्लॉगों पर जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करना होता है | (अब हम भी मैदान में है)
और काम की बात सबसे नीचे लिखी होती है  कृपया मेरे ब्लाग पर आयें I

(४) पाँच से अधिक शब्दों की रचना से सम्बंधित टिपण्णी 
मैंने  कहा यह वह ब्लागर जिन्होंने स्कूल में सूर, कबीर, तुलसी रहीम को पढ़ा और कॉलेज में 
पन्त , निराला , महदेवी वर्मा ,  रामचंद्र शुक्ल को पढ़ा और साहित्य में रूचि रखने लगे |
आज उनकी यह मज़बूरी बन गयी है कि साहित्य को जिन्दा रखने के लिए वह टिप्पणी करें |

अपने प्रश्नों का उत्तर पा कर जब वह उठने लगा तो हमने कुछ समझदार  टिप्पणीकार जो
बिना पढ़े ही कॉपी -पेस्ट सुविधा का लाभ उठाते हुए ही दो अलग अलग टिपण्णी को जोड़कर 
 टिपिया देते है उनके बारे में बताया  वह  टिप्पणियाँ  ब्लाग पर कुछ इस प्रकार दिखती है I 


संवेदनशील ,अच्छा व्यंग्य , बधाई.... 
मर्मस्पर्शी , मजा आ गया .....




मंगलवार, मई 03, 2011

वह लम्हा ( मतला और एक शेर )



मेरी पिछली पोस्ट" शेर यूँ मुकम्मल हुआ  " पर एक बेनामी टिपण्णी ने मुझे आपनी 
गलती का अहसास करा  दिया | जिसके अनुसार किसी की सृजन क्षमता को परखने 
का मुझे कोई अधिकार नहीं है | अत आपसे क्षमा चाहूँगा |
लीजिये आज फिर  मतला  और एक शेर अर्ज है |



उस लम्हे की भी 
कुछ और कहानी होती |
ग़र उसकी अदायगी 
तेरी जुबानी होती |

अगर समुन्दर में 
तूफान ना आया होता |
मेरी कश्तियों की भी 
कुछ और कहानी होती |


रविवार, मई 01, 2011

शेर यूँ मुकम्मल हुआ



एक बार एक कवि महोदय अपने बगीचे में परेशानी की हालत में घूम रहे थे |
उनके मित्र ने पूछा इतना सुंदर वातावरण है और आप चिंतित दिख रहे हैं | 
उन्होंने फ़रमाया कि मेरा शेर मुक्म्मल नहीं हो रहा है | पहला मिसिरा तो तैयार 
है यही मेरी चिंता का कारण है मित्र ने कहा आप मुझे सुनाएँ शायद मैं आपकी 
कुछ सहायता कर सकूँ  |उन्होंने कहा मिसिरा यूँ है कि 

आती है आज बाग़ से बू ए कबाब की 

उनके दोस्त  ने  कहा इसमें कौन सी बात है आगे लिख दो 
शायद किसी बुलबुल का दिल जला होगा 
यो वह शेर यूँ मुकम्मल हुआ 

आती है आज बाग़ से बू ए कबाब की
शायद किसी बुलबुल का दिल जला होगा |


मेरे मित्रों मेरी परेशानी अब आप दूर  कीजिये पहला मिसिरा यूँ है की

गुनाहों के शहर में, मैं बेगुनाह रहता कैसे