अक्सर हास्य कवियों पर यह आरोप लगते है कि वह लतीफों को पंक्तिबद्ध
करके रचनाएँ लिखते है | मगर मेरा मानना है कि हास्य कवि दोहरी भूमिका
निभाता है | इस व्यथित समाज को हँसाने के साथ साथ सन्देश भी देता है |
चलिए एक आरोप और लगा दीजिये |
एक पत्र, एक संपादक को
बहुत परेशान कर रहा था |
क्योंकि एक पाठक बार बार
पृष्ठों की संख्या और आकार
बढ़ाने का आग्रह कर रहा था |
संपादक ने विनम्रता से पूछा
हे सरस्वती पुत्र साहित्य प्रेमी
हम आपका सम्मान करते है |
मगर यह तो बताएं ?
की आप साहित्य की किस ,
विधा में सृजन कार्य करते है |
उसने कहा श्रीमान जी ,
मेरा साहित्य से कोई नहीं सरोकार है |
मेरा तो लिफाफे बनाने का कारोबार है |