कुदरत की करामात को ,
कोई ना समझ पाया |
हरक़त तो की ज़मी ने ,
समंदर को गुस्सा आया |
बाँहों में जिनकी रहते थे ,
हम अपना समझ कर |
करवट क्या ली उन्होंने
हमें ख़ाक में मिलाया |
किसी माँ से बिछड़ा बेटा ,
और बहनों से बिछड़ा भाई |
कल बनाया जिसको दुल्हन
उसी को बेवा आज बनाया |
आपने सुनामी के दर्द के बहाने जीवन की सच्चाईयों बखूबी अभिव्यक्त किया है ....आपका आभार
जवाब देंहटाएंमानव प्रकृति से खिलवाड़ करता है और प्रकृति कैसे उसका बदला ले लेती है ...बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंQudrat ne kahar barpaa hai...raungate khade ho jate hain..
जवाब देंहटाएंसंगीता जी की बातों से सहमत। कुदरत से छेडछाड का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है। अब यह छेडछाड हम करें या और कोई और भुगतना सबको पडता है।
जवाब देंहटाएंअच्छी और जीवन के पलछिन होने का अहसास कराती रचना।
dard ko bakhoobi ujagar kar diya...
जवाब देंहटाएंइस दुखद घटना पर आपकी संवेदनाएं त्रासदी का अहसास कराती हैं. दिल दुखी है आज कुछ और नहीं. ईश्वर उन्हें और आपदाओं से सुरक्षित करे.
जवाब देंहटाएंवाह..क्या खूब लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना !
this is nothing but nature and only nature.
जवाब देंहटाएंकुदरत के आगे किसी का वश नहीं ।
जवाब देंहटाएंसामयिक रचना ...तकलीफदेह हकीकत !
जवाब देंहटाएं:-(
सुनामी का दर्द सच मे बहुत तकलीफ देह है।
जवाब देंहटाएंकुदरत के आगे इन्सान बेबस है . मार्मिक रचना .
जवाब देंहटाएंKitna bebas hai insaan.
जवाब देंहटाएं---------
क्या व्यर्थ जा रहें हैं तारीफ में लिखे कमेंट?
बहुत संवेदनशील रचना..इतनी उन्नति होने के बावजूद इंसान आज भी कितना बेवस है कुदरत के सामने..
जवाब देंहटाएंदुखद प्राकृतिक कोप।
जवाब देंहटाएंसुनामी का तांडव देखकर मन दहल गया!
जवाब देंहटाएं--
सुन्दर रचना रची है आपने!
बहुत ही सुन्दर आलेख , सचमुच आज धरती चिल्ला रही हैं
जवाब देंहटाएंखुद के लिए मुझे ना संवारो
वेवजह मेरी तस्वीर न बिगाड़ो.
सुनामी पर सरल शब्दों में सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंएक मार्मिक चित्रण!!
जवाब देंहटाएंमार्मिक चित्रण !
जवाब देंहटाएंहां सही है, प्राकृतिक आपदा से पीड़ित व्यक्ति का दर्द कितना अप्रत्याशित होता है.सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंकुदरत के आगे किसी की नहीं चलती... संवेदनशील रचना..
जवाब देंहटाएंप्रकृति के आक्रोश के समक्ष सब नतमस्तक हैं।
जवाब देंहटाएंमार्मिक कविता।
प्राकृति के प्रकोप के सारे कोई कुछ नही कर सकता ... बस ऊपर वाले से दुआ ही हो सकती है ...
जवाब देंहटाएंदुखद त्रासदी...भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंयथार्थ से समझौता तो करना ही पड़ेगा -इसी का नाम जीवन है .
जवाब देंहटाएंsach hai ,man ghabra gaya ise dekh ,sundar rachna hai .
जवाब देंहटाएंbahut bura huva sahi kahate hai aap.....
जवाब देंहटाएंSagar main Gagar hai yeh kavita, itani badi trasadi ko simit shabdon main dhalna... kabile tarif hai!
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