मेरी छत पर आकर सूरज ,
क्यों जल्दी ढल जाता है ?
उगते सूरज की पहली किरण ,
जब मेरे आँगन में पड़ती है |
फटा बिछौना , टूटी खटिया ,
यही तो उसको दिखती है |
धीरे धीरे तपता सूरज ,
जब मेरी रसोई में आता है |
ख़ाली बर्तन, ठंडा चूल्हा
और नहीं कुछ पाता है |
लिए लालिमा सूरज जब ,
मेरी खिड़की पर आता है |
बूढी माँ का पीला चेहरा ,
शायद वह देख ना पाता है|
तभी तो मेरी छत पर आकर ,
सूरज जल्दी से ढल जाता है |
जीवन के ढलते सूरज को उत्सव सा स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंशायद सूरज भी ये सूनापन बर्दास्त नहीं कर पाता | अच्छी रचना |
जवाब देंहटाएंsunder rachna
जवाब देंहटाएंशिकायत सूरज से। ये नये दौर का सूरज है।
जवाब देंहटाएंलगता है इसने भी इंसानों से भेदभाव सीख लिया है।
सुंदर रचना।
शुभकामनाएं आपको।
सूरज क्या करे बेचारा.....इसे समझाने वाला कोई नाहे है...
जवाब देंहटाएंफटा बिछौना, टूटी खटिया
जवाब देंहटाएंयही तो उसको दिखती है....
बहुत सुन्दर भावपूर्ण गीत...हार्दिक शुभकामनाएं...
सूरज का बिम्ब ले कही संवेदनशील बातें..... बेहतरीन भावाभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंbhut bhaavpur rachna hai...
जवाब देंहटाएंसूरज के जल्दी ढलने के पीछे जो कारण कहें हैं वो एक सामाजिक चेतना को कहते हैं ...सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअजीब अजीब सा हो गया है मन ...उदास सा ..
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसुरती से की गई शिकायत. वाह...
जवाब देंहटाएंवाह! भाई वाह! लगे रहिये !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण गीत...दिल को छू गई प्रस्तुति!!
हार्दिक शुभकामनाएं..
समाज के दो छोरों का सुन्दर चित्रण.
जवाब देंहटाएंढलता सूरज अधिक रंग बिखेरता है.
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट.
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जवाब देंहटाएंBeautiful poem...you made me emotional by revealing the bitter truth.
जवाब देंहटाएंतभी तो मेरी छत पर आकार
जवाब देंहटाएंसूरज जल्दी से ढल जाता है.
सच्चाई बयां करती संवेदनशील कविता. मन को छू लेने वाली. बहुत सुंदर.
संवेदनाओं से लबरेज़ रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी.
ek tees chod gayee ye marmik abhivykti...
जवाब देंहटाएंसूरज ढलता है अगले दिन की सुबह को रास्ता दिखाने के लिये ....
जवाब देंहटाएंपहली बार आपका ब्लाग पढा ,बहुत संवेदनशील लगा । आभार !!!
सूरज का ढलना, परछाई का बड़ा होना . जीवन को सकारात्मक ढंग से लेना , जीवन का मूल मंत्र बन जाए तो अच्छा .
जवाब देंहटाएंbhavpurn rachna ke liye badhai
जवाब देंहटाएंसूरज तो जब ढलता है तब ढलता है हम ही उसे देख नहीं पाते ! सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, सूरज ढलता है तो कल फिर आने के लिए... आप कल उसके आने पर क्या-क्या करेंगे इसकी तैयारी अभी से करना शुरू कर दीजिये| वोह भी तो रोज़ सुबह कुछ उम्मीदें लेकर आता है न आपके द्वार...
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना ने मन को द्रवित कर दिया।
जवाब देंहटाएंआपकी सोच को नमन।
Beautiful poem and the sketch made by ur daughters r very very beautiful sir.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंआभार
ढलता सूरज जरा मन उदास कर गया !
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी रचना .........
bahut gahre bhavo se likhi gayi rachna.....bahut khub kabile tareef...
जवाब देंहटाएंवाह सुनील जी !
जवाब देंहटाएंगरीब बेबस इंसानियत की इतनी भावपूर्ण सार्थक अभिव्यक्ति सराहनीय है |
Nice,
जवाब देंहटाएंPlease send your email address
Regards
Sach hai ye sooraj bhi itna tanha jo rahta hai din bhar ... vo kaise bardaasht karega ...
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