एक पथ पर
एक पग आगे बढ़ा कर ,
एक द्रष्टि
जब मैं पीछे डालता हूँ ।
क्यों पाता हूँ ?
अपने को नितांत अकेला ।
क्यों नहीं सुनाई देता
ध्वनि का मधुर कोलाहल ,
क्यों नहीं दिखाई देते
वह अपने लोग ,
क्यों फैला है दूर तक ,
नीरवता का अंतहीन साम्राज्य ।
ढेर सारे उत्तरविहीन,
प्रश्नों का अम्बार।
एक बार पुन:
सोंचने पर लाचार।
क्यों चुना मैंने यह पथ !
जो कहाँ जाता हैं ?
जिस पर एक पग चल
व्यक्ति अपनों से
कितना दूर हो जाता हैं ।