एक पथ पर
एक पग आगे बढ़ा कर ,
एक द्रष्टि
जब मैं पीछे डालता हूँ ।
क्यों पाता हूँ ?
अपने को नितांत अकेला ।
क्यों नहीं सुनाई देता
ध्वनि का मधुर कोलाहल ,
क्यों नहीं दिखाई देते
वह अपने लोग ,
क्यों फैला है दूर तक ,
नीरवता का अंतहीन साम्राज्य ।
ढेर सारे उत्तरविहीन,
प्रश्नों का अम्बार।
एक बार पुन:
सोंचने पर लाचार।
क्यों चुना मैंने यह पथ !
जो कहाँ जाता हैं ?
जिस पर एक पग चल
व्यक्ति अपनों से
कितना दूर हो जाता हैं ।
bahut bhaav poorn rachna.shandar.
जवाब देंहटाएंइस पथ को कौन समझ सका है आज तक.
जवाब देंहटाएंएक बार पुन:
हटाएंसोंचने पर लाचार।
क्यों चुना मैंने यह पथ !
जो कहाँ जाता हैं ?
जिस पर एक पग चल
व्यक्ति अपनों से
कितना दूर हो जाता हैं ।
Aah! Kitna dard hai samaya hua!
हर पग में दो दो भाव छिपे,
जवाब देंहटाएंकुछ अपनों के, कुछ औरों के।
बेहतरीन अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंrahoo mein kai saathi milate hain aur bichadate hain
जवाब देंहटाएंyahi jeevan hain
acchi kavita hain
गहरी अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
संबंधों की शिथिल होती संवेदना पर बहुत सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएं२२३ लोगो के साथ चल रहे हो सुनील जी, फिर भी कहते हो की अकेला हूँ ???????बहुत बढ़िया ..
जवाब देंहटाएंजिस पर एक पग चल
जवाब देंहटाएंव्यक्ति अपनों से
कितना दूर हो जाता हैं ।
अत्यंत लाजवाब हैं...वाकई उम्दा रचना से अवगत करने का आभार |
मैं आपको मेरे ब्लॉग पर सादर आमन्त्रित करता हूँ.....
umda rachna....yah rachna aapki paripkwata ko darshata hai...
जवाब देंहटाएंएकला चलो रे... अन्ततः तो अकेले ही जाना है क्यों न अभ्यास कर लिया जाये.
जवाब देंहटाएंकभी-कभी ऐसा महसूस होता है लेकिन अपनों से कोई कभी दूर नहीं होता...
जवाब देंहटाएंएक बार फिर से देखो तो सब साथ खड़े होते हैं...
बेहद भावपूर्ण रचना समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका सवागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने '''''''
जवाब देंहटाएंसुनिल जी, आप आगे बढिये, हम आपके साथ हैं :)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,...अच्छी प्रस्तुति,बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन
जवाब देंहटाएंnew post...वाह रे मंहगाई...
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 21/1/2012 को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।
जवाब देंहटाएंबेहद सार्थक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंयही कशमकश रहती है ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
very deep thought....achchi rachna :)
जवाब देंहटाएंमिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
असमंजस.....बड़ा जानलेवा है.
जवाब देंहटाएंnamaskar sunil ji
जवाब देंहटाएंbahut sunder ..........एक बार पुन:
सोंचने पर लाचार।
क्यों चुना मैंने यह पथ !
जो कहाँ जाता हैं ?
जिस पर एक पग चल
व्यक्ति अपनों से
कितना दूर हो जाता हैं ।..........gahari se antarman ko bayan karti hui rachna .
खतरनाक परस्थितियाँ . सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंपग आगे बढ़ा कर दृष्टि पीछे नहीं डालते...चलना मुश्किल हो जाता है। चलो तो चलते रहो..मंजिल से पहले रूकना क्या!
जवाब देंहटाएंकहीं आपका इशारा ब्लागिंग के पथ की ओर तो नहीं है !
जवाब देंहटाएंसही अर्थों में कविता बहुत संवेदनशील है।
सुनील जी आप अकेले कहाँ है ??? हम जो आप के साथ-साथ चल रहे है..भावपूर्ण और संवेदनशील अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंक्यों चुना मैंने यह पथ !
जवाब देंहटाएंजो कहाँ जाता हैं ?
जिस पर एक पग चल
व्यक्ति अपनों से
कितना दूर हो जाता हैं ।
....बहुत सच..आज हम क्यों अकेलेपन का दर्द भोग रहे हैं? बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..
achhi kavita hai sunil ji
जवाब देंहटाएंमनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंशादी की सालगिरह मुबारक हो।
जवाब देंहटाएंक्यों चुना यह पथ...........
जवाब देंहटाएंप्रश्नों के अम्बार लगे है
जवाब देंहटाएंउत्तर चुप है ....
yeh kaisa path??
जवाब देंहटाएंsunder abhivyakti
अत्यधिक गहनता लिए सार्थक अभिव्यक्ति ...
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