गुरुवार, जनवरी 19, 2012

यह कैसा पथ ........

एक पथ पर 
एक पग आगे बढ़ा कर ,
एक द्रष्टि 
जब मैं पीछे डालता हूँ ।
क्यों पाता हूँ ?
अपने को नितांत अकेला ।
क्यों नहीं सुनाई देता 
ध्वनि का मधुर कोलाहल ,
क्यों नहीं दिखाई देते 
वह अपने लोग ,
क्यों फैला है दूर तक ,
नीरवता का अंतहीन साम्राज्य ।
ढेर सारे उत्तरविहीन,
प्रश्नों का अम्बार।
एक बार पुन: 
सोंचने पर लाचार।
क्यों चुना मैंने यह पथ !
जो कहाँ जाता हैं ?
जिस पर एक पग चल 
व्यक्ति अपनों से 
कितना दूर हो जाता हैं ।



37 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. एक बार पुन:
      सोंचने पर लाचार।
      क्यों चुना मैंने यह पथ !
      जो कहाँ जाता हैं ?
      जिस पर एक पग चल
      व्यक्ति अपनों से
      कितना दूर हो जाता हैं ।
      Aah! Kitna dard hai samaya hua!

      हटाएं
  2. हर पग में दो दो भाव छिपे,
    कुछ अपनों के, कुछ औरों के।

    जवाब देंहटाएं
  3. rahoo mein kai saathi milate hain aur bichadate hain
    yahi jeevan hain
    acchi kavita hain

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
    --
    घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
    लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।

    जवाब देंहटाएं
  5. संबंधों की शिथिल होती संवेदना पर बहुत सुंदर कविता.

    जवाब देंहटाएं
  6. २२३ लोगो के साथ चल रहे हो सुनील जी, फिर भी कहते हो की अकेला हूँ ???????बहुत बढ़िया ..

    जवाब देंहटाएं
  7. जिस पर एक पग चल
    व्यक्ति अपनों से
    कितना दूर हो जाता हैं ।

    अत्यंत लाजवाब हैं...वाकई उम्दा रचना से अवगत करने का आभार |

    मैं आपको मेरे ब्लॉग पर सादर आमन्त्रित करता हूँ.....

    जवाब देंहटाएं
  8. एकला चलो रे... अन्ततः तो अकेले ही जाना है क्यों न अभ्यास कर लिया जाये.

    जवाब देंहटाएं
  9. कभी-कभी ऐसा महसूस होता है लेकिन अपनों से कोई कभी दूर नहीं होता...
    एक बार फिर से देखो तो सब साथ खड़े होते हैं...

    जवाब देंहटाएं
  10. बेहद भावपूर्ण रचना समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका सवागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  11. सुनिल जी, आप आगे बढिये, हम आपके साथ हैं :)

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत खूब,...अच्छी प्रस्तुति,बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन
    new post...वाह रे मंहगाई...

    जवाब देंहटाएं
  13. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 21/1/2012 को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।

    जवाब देंहटाएं
  14. बेहद सार्थक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  15. यही कशमकश रहती है ... अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  16. असमंजस.....बड़ा जानलेवा है.

    जवाब देंहटाएं
  17. namaskar sunil ji
    bahut sunder ..........एक बार पुन:
    सोंचने पर लाचार।
    क्यों चुना मैंने यह पथ !
    जो कहाँ जाता हैं ?
    जिस पर एक पग चल
    व्यक्ति अपनों से
    कितना दूर हो जाता हैं ।..........gahari se antarman ko bayan karti hui rachna .

    जवाब देंहटाएं
  18. खतरनाक परस्थितियाँ . सुंदर प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  19. पग आगे बढ़ा कर दृष्टि पीछे नहीं डालते...चलना मुश्किल हो जाता है। चलो तो चलते रहो..मंजिल से पहले रूकना क्या!

    जवाब देंहटाएं
  20. कहीं आपका इशारा ब्लागिंग के पथ की ओर तो नहीं है !

    सही अर्थों में कविता बहुत संवेदनशील है।

    जवाब देंहटाएं
  21. सुनील जी आप अकेले कहाँ है ??? हम जो आप के साथ-साथ चल रहे है..भावपूर्ण और संवेदनशील अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  22. क्यों चुना मैंने यह पथ !
    जो कहाँ जाता हैं ?
    जिस पर एक पग चल
    व्यक्ति अपनों से
    कितना दूर हो जाता हैं ।

    ....बहुत सच..आज हम क्यों अकेलेपन का दर्द भोग रहे हैं? बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं
  23. मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति.

    जवाब देंहटाएं
  24. प्रश्नों के अम्बार लगे है
    उत्तर चुप है ....

    जवाब देंहटाएं
  25. अत्यधिक गहनता लिए सार्थक अभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं