तुमको तुम्हारे शहर की
सड़कों पर पड़ी ,
जिन्दा लाशों की कसम
मत डालना तुम ,
इन पर झूठी सहानुभूति का कफ़न
इनको यूँही पड़ा रहने दो
चीखने दो चिल्लाने दो
तुम्हारी सभ्यता की कहानी
इनको ही सुनाने दो
सड़क पर पड़े हुए यह लोग
हमारे बहुत काम आते है |
तभी तो हमारे राजनेता
इनके भूखे नंगे तपते हुए पेटों पर
राजनीति की रोटियां सेंक जाते है |
इनको तरह तरह से
उपयोग में लाया जाता है |
कभी राम कभी अल्लाह के नाम पर ,
इनका ही तो खून बहाया जाता है
और कभी कभी अपनी सियासत,
चमकाने और ताकत दिखाने के लिए
इन आम आदमियों के नाम पर
भारत बंद बुलाया जाता है |
चुनावों के समय हम ,
इनको आम जनता कहते है |
और फिर आने वाले चुनावों तक ,
आम की तरह चूसते रहते है |
यह रोते है तो रोने दो
मत जगाओ, सोने दो |
जिस दिन यह सोता हुआ,
आम आदमी जाग जायेगा ,
उस दिन से संसद का रास्ता
बहुत कठिन हो जायेगा |
(यह रचना आज के समय में बहुत ही सार्थक प्रतीत होती है । इस लिए
इसको पुन: प्रकाशित कर रहा हूँ )
बहुत सुंदर सार्थक सृजन लाजबाब प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : सुलझाया नही जाता.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सामयिक और सार्थक रचना
atest post नए मेहमान
आम जागेगा इसलिये नहीं क्योंकि सोने का दिखावा कर रहा है.
जवाब देंहटाएंसटीक और सार्थक रचना ... न जाने ऐसी रचनाएँ कब तक समसामयिक बनी रहेंगी ।
जवाब देंहटाएं@जिस दिन यह सोता हुआ,
जवाब देंहटाएंआम आदमी जाग जायेगा ,
उस दिन से संसद का रास्ता
बहुत कठिन हो जायेगा |
लेकिन कब तक सोयेगा यह आम आदमी
जागता क्यों नहीं दिक्कत क्या है ?
बहुत ही सुंदर सार्थक और बेहतरीन प्रस्तुती, आभार।
जवाब देंहटाएंक्या कहने
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
कभी राम कभी अल्लाह के नाम पर ,
जवाब देंहटाएंइनका ही तो खून बहाया जाता है
और कभी कभी अपनी सियासत,
चमकाने और ताकत दिखाने के लिए
इन आम आदमियों के नाम पर
भारत बंद बुलाया जाता है |
जब तक जनता समर्थ नहीं होगी इसी तरह पिसती रहेगी..
सटीक, सामयिक ...
जवाब देंहटाएंसच कहा अहि आज का वातावरण हूबहू है ... पिस रही है जनता पर सुनने वाला कोई नहीं ...
सच कहा है, यही होगा यदि आम आदमी छला जायेगा।
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