आज एक पुनः सम्पादित और पूर्व प्रकाशित रचना आपके लिय , यह रचना
शायद आज एकदम सटीक प्रतीत होती है |
हम सब मुसाफ़िर है
उस रेल गाड़ी के,
जिसको भ्रष्टाचार का इंजन,
बेईमानी के कोयले से खींच रहा है |
रास्ते में पड़ने वाले स्टेशन
जैसे ईमानदारी ,सदाचार और त्याग
हमें दिखाई नहीं देते,
क्योंकि बेईमानी का कोयला
हमारी आँखों में पड़ चुका है|
जा रहे है दूर,
सच्चे आदर्शों से हम,
हो रहा है,
सदाचार का पलायन |
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
जवाब देंहटाएंसटीक ...अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार ने सबको निगल रखा है --पार जाना मुश्किल ही नही अस्वम्भ्व है --अनदेखा कर जा तो सकते है पर भाग नही सकते ?
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (18-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बड़ी संवेदनशील रचना।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक रचना भाव ....आभार
जवाब देंहटाएंलाजबाब रचना
जवाब देंहटाएंबधाई
Bilkul sahee kaha....beimaanee kaa koyla hamaree aankhon me pad chuka hai!
जवाब देंहटाएंलाजवाव और सटीक रचना आज के माहौल के सच्चाई. अभिनन्दन.
जवाब देंहटाएंआज टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अतिथि संपादक के रूप में अन्ना हज़ारे ने कहा है कि भ्रष्टाचार से अमीर क्या ग़रीब क्या सभी प्रभावित और दुखी हैं। एक बार टाटा ने कहा था कि मैं अपनी एयर लाइन नहीं शुरू कर पाया क्योंकि संबंधित मंत्री ने रिश्वत मांगी थी और मैंने रिश्वत देने से मना कर दिया था। वैसे नीरा राडिया का किस्सा उजागर होने के बाद टाटा जी नहीं कह सकते हैं कि वे दूध के धुले हैं। परंतु इतना ज़रूर है कि उद्योग जगत में टाटा की छवि दूसरों के मुक़ाबले अच्छी है। टाटा अपनी एयर लाइन नहीं शुरू कर पाए तो इसका कारण भ्रष्टाचार में आहुति न देना। इससे टाटा का नुकसान तो हुआ ही उससे ज़्यादा नुकसान तो भारत का हुआ जिसका ज़िम्मेदार वह भ्रष्ट मंत्री है जिसे हमने चुनकर देश का भला करने के लिए भेजा था। क्या हम आज संकल्प लेने के लिए तैयार हैं कि आज के बाद किसी भी प्रकार से न तो भ्रष्टाचार के सहभागी होंगे और न ही ऐसा काम करेंगे कि भ्रष्टाचार बढ़े। हम अपने घर से ही शुरुआत करें। अपनी ज़रूरतों को सीमित करें। क्षमता रहते हुए भी अति विलासिता की वस्तुएं न खरीदें। अपने बच्चों के मन में सच्चरित्र को स्थापित करें और दिखावा करने की प्रवृत्ति को रोकें। बच्चों को सदाचार के साहित्य को पढ़ने के लिए प्रेरित करें। मैंने ऐसा किया है। नुकसान उठाया है और लोगों ने मुझे पागल की संज्ञा भी दी। इस काम को किसी अन्य के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। यह काम बड़े लोग ही कर सकते हैं। अब भ्रष्टाचार के विरुद्ध संकल्प लेने की ज़रूरत है।
जवाब देंहटाएंआपका संदेश अच्छा है। आभार।
भाई सुनील जी बहुत ही समसामयिक कविता है बधाई और सुनहरी कलम पर पधारने के लिए आपका विशेष आभार |
जवाब देंहटाएंक्या बेईमानी इतनी बड़ी हो गई है ईमानदारी से ,नहीं ,नहीं
जवाब देंहटाएंईमानदारी से सूर्य निकल और ढल रहा है,ईमानदारी से दिल धड़क रहा है
ईमानदारी न होगी तो क्या यह दुनिया होगी? अन्न उगा पाएगी भूमि ,जल बरसा पायेंगे बादल.
यदि रात होती है तो क्या दिन नहीं निकलता.
हारिये न हिम्मत बिसारिये न हरी नाम.
आपकी शानदार प्रस्तुति के लिए आभार.
बहुत सटीक रचना..
जवाब देंहटाएंऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति के लिए आभार.
कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
जवाब देंहटाएंमाफ़ी चाहता हूँ
बहुत सटीक पंक्तियाँ कही हैं आपने ..आज के सन्दर्भों को उद्घाटित करती हुई ...आपका आभार
जवाब देंहटाएंअब तो एसा लगने लगा है हमको भी इसकी आदत सी होने लगी है |
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना |
बिल्कुल सटीक प्रस्तुति. आभार सहित...
जवाब देंहटाएंसटीक अभिवेक्ति ....
जवाब देंहटाएंbahut hi sahi abhivyakti
जवाब देंहटाएंवर्तमान हालात पर बिल्कुल सटीक प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंसब कुछ जानते हुए भी कितने असहाय हैं हम .
जवाब देंहटाएंbilkul sach kaha aapne...saarthak tippani aaj ke vakt par.
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार आदिम ललक है। ईमानदार होना पड़ता है, कोशिश करके..बेईमान होने के लिए उपायो ं की जरुरत नहीं। हम भारतीय लोग बेसिकली बेईमान हैं। अच्छी रचना बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, शुभकामनायें आपको !!
जवाब देंहटाएंइससे सरल शब्दों में इससे बेहतरीन कुछ नहीं हो सकता. अच्छे लेखन के लिए मेरी तरफ से बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने और कीमती कमेन्ट के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंआज के हालात का सही चित्रण, लेकिन अब समय बदल रहा है !
जवाब देंहटाएंप्रशंशनिये रचना...
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग .....
जवाब देंहटाएंक्या कहूं इस रचना को... बेहतरीन प्रस्तुति में संवेदनशील विचार हैं| सम्पूर्ण समाज के लिए सन्देश है|
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें!
bhrastachar ko kavita ke madhyam se bhut achchhe se vyakt kiya hai bdhayee.aap ki dono betiyo ne sunder skech banaee hai bdhayee.
जवाब देंहटाएंbahut khoobsooratee se aaj kee hakeekat ko aapne abhivykt kiya hai.....
जवाब देंहटाएंAabhar
nice poem on corruption
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक पंक्तियाँ कही हैं आपने ..आज के सन्दर्भों को उद्घाटित करती हुई
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , बैमानी का संक्रमण !
जवाब देंहटाएंबंधुवर!
जवाब देंहटाएं"डंडा" संत स्वभाव की, यही मुख्य पहचान।
जो भी मिलता है उन्हें, उसको करते दान॥
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आपकी प्रभावोत्पादक रचना दूसरों के लिए मार्ग-दर्शक
सिद्ध होंगे। साधुवाद!
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
bilkul sahi kaha sabne bahut sundar likha hai
जवाब देंहटाएंTRUE TRUE TRUE
जवाब देंहटाएंsunil bhai ji
जवाब देंहटाएंbhaut hi samvedan sheelta ke saath aapne aaj ke samaaj ki sachchai ko sahi shabdo me abhivyakt kiya hai
is gahan prastuti ke liye aapko hardik naman
avam badhai
poonam
बहुत सुन्दर ढंग से यथार्थ चित्रण ..
जवाब देंहटाएंek behtreen bhavpoorn rachna..sadhuwaad swikaren....
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक रचना.
जवाब देंहटाएंब्लॉग के चित्र अद्भुत हैं.
चित्ताकर्षक लगी. बेहतरीन पोस्ट के लिए आभार ...
जवाब देंहटाएंundoubtedly anna hajare will pull the chain....
जवाब देंहटाएंकविता क्या जी यह तो एक सच लिख दिया आप ने, बहुत सुंदर, धन्यवाद
जवाब देंहटाएं..शानदार।
जवाब देंहटाएं..यह रचाना बहुत अच्छी लगी। कृपया बधाई स्वीकार करें।
वाह..बेहतरीन सच..कविता की शक़्ल में...
जवाब देंहटाएंसुनील जी , बिलकुल सही हाल बयां किया है आपने ...........इस भ्रष्ट समाज की रेलगाड़ी का आखिरी स्टेशन नजदीक नहीं लगता....... विचारनीय प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंकल "शनिवासरीय चर्चा" में आपके ब्लाग की "स्पेशल काव्यमयी चर्चा" की जा रही है...आप आये और अपने सुंदर पोस्टों की सुंदर काव्यमयी चर्चा देखे और अपने सुझावों से अवगत कराये......at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएं(23.04.2011)
यह आज के भारत का सामाजिक यथार्थ है... प्रभावशाली एवं सटीक रचना।
जवाब देंहटाएंआभार आंखे खोलने के लिए...
सादर
डॉ.अजीत
सदाचार का पलायन, प्रासंगिक रचना.
जवाब देंहटाएंbilkul sahi lika hai ...!!
जवाब देंहटाएंprabhavshali rachna ...!!
Tatkaaleen pridrshya par khari evam sateek.........bahut achchi
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya aur samsaamyik.
जवाब देंहटाएंयह कविता आज की सच्चाई है।
जवाब देंहटाएंहमारी आंखों में सचमुच कोयला पड़ा हुआ है।
sarthak!! rachna ke liye badhai sweekar karein
जवाब देंहटाएंSach kaha hai ... aaj ka saty ... samaaj ka aaina ... bahut lajawaab ..
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
जवाब देंहटाएंकाश? ये रेलगाडी नई हो जाये।