शुक्रवार, जुलाई 29, 2011

सम्पादक का सुझाव

एक रचनाकार की रचनाएँ लगातार सम्पादक के खेद सहित पत्रों के साथ वापस  आ रहीं थीं |
वह लेखक गुस्से में संपादक के पास  गया और वापस करने का कारण पूछा तब संपादक ने 
उसे विनम्र स्वर में समझाया की आपकी रचना हमारी पत्रिका के स्तर की नही है |
और उसने कहा आप अंग्रेजी में क्यों नहीं लिखते ?लेखक ने उत्तर दिया मुझे अंग्रेजी  नहीं आती है |
सम्पादक ने कहा आती तो आपको  हिंदी भी नहीं !!!!!
ऐसे ही मेरे एक मित्र ने कहा आप रोमांटिक गीत क्यों नहीं लिखते मैंने कहा गीत लिखना मुझे नहीं 
आता तो उसने कहा आता तो कविता भी  नहीं है...............

सावन का गीत 

जब से सावन आया है वह रूठी रूठी रहती है
बातें उसको सावन की सब झूठी झूठी लगती है |

सावन में घटा जब अम्बर पे छाती है 
मन में मिलन की वह प्यास जगाती है |
बारिस की बूंदें उसके तन पर जब गिरती हैं |
माला मोतियों की मुझे टूटी टूटी लगती है |

जब से सावन आया है वह रूठी रूठी रहती है
बातें उसको सावन की सब झूठी झूठी लगती है |
          
अम्बर से जब बादलों की  हो गयी विदाई है |
खिल कर धुप मेरे आँगन में आयी है|
मुद्दतों के बाद उसका चेहरा नज़र आया है |
बादलों की चोटी मुझे गुंथी गुंथी लगती है |

जब से सावन आया है वह रूठी रूठी रहती है
बातें उसको सावन की सब झूठी झूठी लगती है |



32 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी रचना को पढ़ कर नही लगता की आपको कविता लिखना नही आता... अच्छी रचना...

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  2. हाहहाहाहहा

    लेकिन कविता तो वाकई बहुत सुंदर

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  3. अरे वाह! लिख तो लिया... आपके दोस्त की बात झूठी-झूठी लगती है :)

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  4. कविता लिखना न आता हो मगर सुन्दर कविता लिखी है सुनील जी अब नहीं आने का कोई फर्क नहीं पड़ता.

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  5. कविता बहुत सुन्दर है ... किसने कह दिया कि कविता लिखना नहीं आता ?

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  6. sir ji kyun july me hi april fool bana rahe ho....
    itni achi to likhi hai...
    jai hind jai bharat

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  7. कविता तो सुन्दर है ही, अपने ऊपर मज़ाक कर सकने की क्षमता भी आजकल दुर्लभ ही है।

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  8. सुनील भाई तो अगर वो रूठ गई हैं, तो मना लो न यार|

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  9. सावन पर सामयिक और सुन्दर गीत.

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  10. रचनाएं भेजने वाला ही जल्दी में दिखता है. जब तक वह महान लेखक न हो जाए उसे यूं ऐरे-गैरे संपादकों को रचनाएं भेजने से बचना चाहिये :)

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  11. निर्झर की तरह कल-कल करती सुन्दर रचना....

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  12. सच में एक अच्छी प्रस्तुति आपकी

    उसकी बाते क्यों इस दिल में डूबी डूबी रहती है
    वो क्या कहती है जो ...वो खुद में पूरी और कुछ अधूरी रहती है .............आभार

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  13. इतनी तो अच्छी रचना है, यह प्रस्तावना तो हम जैसे लेखकों के लिये है।

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  14. आप तो मजाक भी अच्छा कर लेते हैं।
    गीत बहुत बढ़िया है, कोई शक नहीं।

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  15. सावन कि छटा बिखराती सुंदर रचना.

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  16. भावपूर्ण सुंदर सावनी रचना.....

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  17. घबराइए मत कविता के विषय में यह नहीं कहूँगा कि आप तो पंडित रविशंकर की तरह कविता लिखते हैं!!
    सुनील जी, अच्छा लगा इंट्रो और कविता भी भा गयी!!

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  18. रूठने-मनाने का यह उपक्रम पुराना है। सावन की पृष्ठभूमि के कारण प्रेमाभिव्यक्ति और सशक्त हुई है।

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  19. मुला गीत लिखने तो आपको आता है -क्या खूब सावन का अलग मिजाज का गीत !

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  20. बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!

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  21. बहुत- बहुत सुन्दर कविता...लाजवाब रचना...

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  22. दोस्त गीत बनके छा रहे हो ,प्रतीक नए नए ला रहे हो ,उसके तन पे बूँदें मुझको माला टूटी लगती है ,बादल कीभी चोटी आज गूंथी हुई लगती है .सावन घटा ,हर तरफ तू ही तू है तेरा ही नूर है वाह क्या बात है श्यामल सुंदरी की ..

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  23. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  24. सुन्दर कविता बहुत कमाल का बिम्ब चुना आपने...

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  25. सुनील जी
    सावन के मस्त फुहारों की तरह मस्त मस्त है आपकी रचना

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  26. सुंदर रचना।

    बिल्‍कुल सावन की फुहार की तरह...

    शुभकामनाएं आपको..............

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