हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में राजभाषा को समर्पित कविता
रंग बिरंगे फूल खिले है
भाषा के इस उपवन में |
सबकी अपनी सुगंध बसी है
हर मानस के मन में |
मग़र इस उपवन की शोभा को
बस एक ही पुष्प बढ़ाता
नाम पड़ा है हिंदी जिसका
और जो सबको महकाता |
अपने रस की कुछ बूंदों को
जब इसने कविता में डाला
अमर हो गए कवि देश के
पन्त प्रसाद और निराला |
जिसके मन में बसी यह भाषा
या जो इसको अपनाता |
नहीं ज़रूरत किसी प्रमाण की
वह सच्चा देश भक्त कहलाता |
सुन्दर प्रस्तुति ! हिन्दी-दिवस पर वधाई ! यह देश का दुर्भाग्य है कि भारत की कोइ भी राष्ट्र भाषा ही नहीं है | राज-भाषा दसे जी बहलाया गया है ! सभी मित्रों से आग्रह है कि इस विषय में क्या किया जा सकता है, सलाह दें !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-09-2014) को "हिंदी दिवस : ऊंचे लोग ऊंची पसंद" (चर्चा मंच 1737) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हिन्दी दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अहा ! आज के दिन इससे सुंदर पंक्तियां और क्या हो सकती हैं भला । बहुत ही सुंदर ..हिंदी दिवस की शुभकामनाएं स्वीकारें
जवाब देंहटाएंसार्थकता स्पष्ट है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता :)
बहुत सुन्दर सार्थक रचना है!
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद :) ??
सुंदर प्रस्तुति , शुभकामनाएं धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
हिंदी दिवस पर सुंदर कविता...
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस पर बहुत सुंदर सार्थक कविता...
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस पर सुंदर कविता...
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस पर बहुत सुंदर सार्थक कविता...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
राज चौहान
http://rajkumarchuhan.blogspot.in