शनिवार, सितंबर 17, 2011

यह शख्स ......




मत कहो कि यह शख्स ,
सड़क पर नंगा पड़ा है |
धरती बिछौना है इसका ,
 इसने तो आसमान ओढ़ा है|

यह शख्स जो प्यास से,
बेहोश हो कर गिर पड़ा है|
उसने तो अपने आँखों में,
समुन्दर छिपा के रखा है|

38 टिप्‍पणियां:

  1. मौज मे लिख गया नाराज न होना भाई..ऐसे दृश्य मैं यहां रोज देखता हूँ। हालांकि सत्य तो यही है कि दारू पी कर सड़क पर लोटने वाला भी दर्द से कराह रहा होता है। नशे में खुद को भुला रहा होता है।

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  2. यह शख्स जो प्यास से,
    बेहोश हो कर गिर पड़ा है|
    उसने तो अपने आँखों में.
    समुन्दर छिपा के रखा है |

    बेहद मार्मिक ... सीधे मन पर चोट करती हुई पंक्तियाँ

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  3. कवि का ह्रदय दारू पीकर पड़े हुए व्यक्ति में भी अभिव्यक्ति खोज लेता है... मार्मिक!!

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  4. इन बेघरोबार लोगों की तकलीफ का क्या कहना.

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  5. गहन संवेदना। ओढ रखा है की बजाय ‘ओढा है’ शायद अधिक उपयुक्त होता। [डिस्क्लेमर् : मैं कोई कवि नहीं हूं:)]

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  6. इस तरह की तस्‍वीरें आम हैं।
    हर शहर में ऐसे लोग दिख जाते हैं....
    आपने इसे कैमरे में कैद कर इसकी तकलीफों को आवाज दी... आभार

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  7. अच्छी पंक्तिया लिखी है बधाई

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  8. नीचे धरती, ऊपर आसमान,
    शेष स्वयं करना संधान।

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  9. बहुत खूबसूरत क्षणिका सीधे दिल को छूती.

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  10. आपकी दृष्टि घटनाओं के मर्म तक पहुंचती है, यह कविता इसका प्रमाण है।

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  11. श्री चन्द्रमौलेश्वर प्रसाद जी ,आपके आदेश का पालन कर लिया है| भविष्य में भी स्नेह बनाये रखिये| आभार.......

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  12. अधिकांश जनता की यही कहानी है और कोई उपाय भी नही दिखाई देता, बहुत ही मार्मिक दॄष्य.

    रामराम

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  13. आपकी संवेदना अपनी जगह सही है ।
    दिल्ली के फुटपाथों पर पड़े इस तरह के चरसी आम बात है ।
    लेकिन जिम्मेदार कौन है ? सोचने की बात है ।

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  14. http://premchand-sahitya.blogspot.com/

    यदि आप को प्रेमचन्द की कहानियाँ पसन्द हैं तो यह ब्लॉग आप के ही लिये है |

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  15. बहुत खूबसूरत भाव सुन्दर पँक्तियाँ......

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  16. बहुत ही कम शब्दों में मार्मिक लेख प्रस्तुत किया है आपने
    ..........बधाई .....

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  17. मत कहो कि यह शख्स ,
    सड़क पर नंगा पड़ा है |
    धरती बिछौना है इसका ,
    इसने तो आसमान ओढ़ा है|

    बहुत मार्मिक पंक्तियां...सटीक चित्र...

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  18. मत कहो कि यह शख्स ,
    सड़क पर नंगा पड़ा है |
    धरती बिछौना है इसका ,
    इसने तो आसमान ओढ़ा है|
    ek marmik taswwer ubhaarti rachna

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  19. संवेदना से भरपूर कविता भाई सुनील जी बधाई

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  20. सच्चाई है हर उस शख्स की जो फुटपाथ को घर बना कर रहता है..
    चंद पंक्तियों में पूरी बात कही है आपने..

    आभार
    तेरे-मेरे बीच पर आपके विचारों का इंतज़ार है...

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  21. यह शख्स जो प्यास से,
    बेहोश हो कर गिर पड़ा है|
    उसने तो अपने आँखों में,
    समुन्दर छिपा के रखा है|
    बेहद सशक्त रचना ..सुनील कुमार जी अच्छे बिम्ब ला रहें हैं जीवन जगत सुर आम आदमी के खाब के .

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  22. प्रभावशाली पोस्ट ! संवेदनशील अंतर की गहराई से निकले शब्द !

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  23. मत कहो कि यह शख्स ,
    सड़क पर नंगा पड़ा है |
    धरती बिछौना है इसका ,
    इसने तो आसमान ओढ़ा है|

    वाह,बहुत संवेदनात्मक अभिव्यक्ति.

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  24. यह शख्स जो प्यास से,
    बेहोश हो कर गिर पड़ा है|
    उसने तो अपने आँखों में,
    समुन्दर छिपा के रखा है

    ....बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति..

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  25. क्या बात है सर जी ! बेहद मार्मिक और हर्दयस्पर्शी रचना!

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  26. प्यास और समुंदर - इन दो शब्दों ने निस्सार जीवन की सार बात कह दी.

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  27. बहुत पहले पढ़ा था ,
    वियोगी होगा पहले कवी, आह से उपजा होगा गान
    आपके इसे मार्मिक कविता को पढ़ के वो पंक्तिया बिलकुल सटीक लगाती हैं


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    मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है
    ड्रैकुला को खून चाहिए, कृपया डोनेट करिये! पार्ट-1
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  28. यह शख्स जो प्यास से,
    बेहोश हो कर गिर पड़ा है|
    बेहद मार्मिक और हर्दयस्पर्शी रचना!

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  29. वाह रे फ़कीर भाई। सोते रहो ऐसे ही…क्योंकि यही जगह है सही

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  30. उसने तो अपने आँखों में,
    समुन्दर छिपा के रखा है|
    bhut acha.

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