रविवार, मई 22, 2011

यह कैसा रिश्ता ? ( लघुकथा)



जैसे जैसे स्टेशन पास आ रहा था उनकी ख़ुशी   बढ़ती जा रही थी | गाड़ी स्टेशन पर रुकी तो 
एक आदमी उनका नाम पुकारते हुए उनकी सीट के पास आया और बोला  "आप ही है ए. के. 
शर्मा के रिश्तेदार ? उन दोनों पति - पत्नी ने खुश हो कर हाँ में सिर हिला  दिया | उसने कहा 
 साहब ने मुझे आपको लेने के लिए भेजा है | गाड़ी में बैठते ही उस बूढ़े आदमी ने पूछा
 क्या साहब घर पर नहीं है नहीं है "उत्तर में वह बोला नहीं घर पर ही है मेमसाब के साथ 
कहीं बाहर जाने का  प्रोग्राम है |
थोड़ी देर सन्नाटा छाया  रहा  फिर वह बोला " साहब अभी मुझे फिर स्टेशन आना क्योंकि 
दोपहर की गाड़ी से मेरे माँ और बाऊजी आ रहे है | मैंने तो आधे दिन की छुट्टी लगा दी है 
आख़िर माँ बाप आ रहे हैं ना ..".फिर उसने एक  प्रश्न  किया साहब से आपका क्या रिश्ता है 
बूढ़े आदमी मुस्कराते हुए कहा  " दूर के   रिश्तेदार है " क्योंकि वह अपने   बेटे को उसके 
अधीनस्थ  कर्मचारी की  निग़ाह में छोटा दिखाना नहीं चाहता था |



50 टिप्‍पणियां:

  1. संवेदनशील लघुकथा ...
    आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।

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  2. दूर के रिश्तेदार ........कितना बडा सच कह दिया , ये कहानी नहीं है सच है ..आज का घिनौना सच ..

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  3. .
    दूर का रिश्तेदार!

    --
    ये तीन शब्द इस लघुकथा की आत्मा हैं!
    --
    इस लघुकथा का एक शीर्षक यह भी हो सकता है!
    --
    इस लघुकथा में संयोग और दुर्योग का अद्भुत मिलन हो रहा है!
    --
    रचनाकार को बहुत-बहुत बधाई!
    .

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  4. रिश्तों में आ रहे अपनेपन के पतन की और इशारा करती हुई यह एक बेहतरीन लघुकथा है...

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  5. बहुत संवेदनशील रचना ...अब तो दूर पास छोड़ .. रिश्तेदार भी नहीं कहते

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  6. बहुत संवेदनशील प्रस्तुति.
    रिश्तेदारी परिहास बनती जा रही है.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरी नई पोस्ट आपका इंतजार कर रही है.

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  7. झकझोर देने वाली लघुकथा सोचने को विवश करती हैं।

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  8. अब बेटे भी दूर के रिश्तेदार बनते जा रहे हैं |

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  9. चौंकाने वाली कहानी. रिश्तों के बीच बढ़ती दूरियाँ इसे नए आयाम दे रही हैं.

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  10. धन रिश्तों की सब से बडी दीवार बन गया है:(

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  11. हम हमेशा एक तरह की स्थिति ही क्‍यों चाहते हैं। हम केवल नकारात्‍मक बातें ही क्‍यों सोचते हैं। क्‍या इस घटना में बेटे का मां-पिता को स्‍टेशन न लेना केवल यही दर्शाता है कि उसे उनकी फिकर नहीं है। अगर फिकर नहीं होती तो वह उन्‍हें लेने के लिए किसी और को भी क्‍यों भेजता । हर परिस्थिति में हर समय एक ही आदर्श काम नहीं आता है। और अगर आदर्श की बात ही है तो लघुकथा में असली सवाल तो यही उठता है कि मां-बाप से बेटा अलग ही क्‍यों रहता है। या उन्‍हें साथ ही क्‍यों नहीं रखता है।
    *
    बहरहाल आपकी लघुकथा अपनी संरचना की दृष्टि से अच्‍छी है। हल्‍के से संपादन की आवश्‍यकता उसमें है।

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  12. बहुत मार्मिक और भयानक सच

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  13. सबकी अपनी अपनी मज़बूरी है !

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  14. आज के हालातों को बयां करती पठनीय लघुकथा !

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  15. अंतर तक छुं गई यह कहानी ... आप बहुत अच्छा लिखते हैं ...

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  16. प्राथमिकताओं का खेल हो गये हैं सम्बन्ध।

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  17. bahut hi sambedansheel katha.aaj ke jamaane main aesaa hi ho raha hai.maata-peeta ki bhi ijjat karane waale kam hi rah gayen hain.badhaai aapko yathart batati hui kahani ke liye.thanks

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  18. रिश्ते भी नए रंग में ढल गए हैं...... संवेदनशील कहानी

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  19. aaj ham badal gaye hai par hamre maata-pita nhi badle vo aaj bhi khudh se pahle hamre samman ke baare me sochte hai.. kaas! isse ham kuch sikh pate...

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  20. इस कथा में आज का सच करीब का रिश्तेदार जैसा ही है ..

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  21. रिश्तों के चेहरे से नकाब उतारती हुई यह लघुकथा कुछ संदेश भी देती है।

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  22. यही है आज का सच..... संवेदनशील लघु कथा....

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  23. आजकल माँ -बाप दूर के ही रिश्तेदार हो गएँ हैं .अनेकरूपापत्नी में पूरी सृष्टि है भाई साहब !आपको पता नहीं चला .

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  24. सुनील जी, यक़ीनन बड़ी ख़ुशी होती है जब भी आपकी प्रतिक्रिया मिलती है. मुझे अपनी ये नज्में अब पसंद नहीं आती. लेकिन 13- १४ साल पहले लिखी ये रचनाएँ बस इसलिए बाँट रहा हूँ. की कहीं मेरी वो पुरानी डायरी न खो जाये.

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  25. वाह सुनील जी, कितनी संवेदनशील लघु कथा. कितने आसान से शब्दों में पिरो के अपनी बात कह दी. shayad आज के दौर की यही हकीकत है.. कितना बदल गया न इंसान. अल्फाज़ छोटे पड़ रहे हैं इस दिल को छू लेने वाली कथा के लिए.

    आपके छोटे भाई जैसा

    शाहिद "अजनबी"

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  26. कई बार दोहराई गयी घटना है,लेकिन रचना मन को उद्वेलित करती है!!

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  27. आज बेहद सामान्य होगई बात को विशेष ढंग से कहा है । अभिव्यक्ति प्रभाव छोडती है ।

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  28. दूर का रिश्तेदार...

    वाह री विडम्बना...

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  29. मैने छुट्टी लगा ली...कड्वा सच..

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  30. apne hi sanskaar daav par lag jaate hai ,khoon ke is gahre rishte ki pahchan jab mitani pade tab mano dasha kya hoti hogi ye bhukt bhogi hi bhali bhanti samjh sakta hai ,janmdata se badhkar bhi koi hota hai ?jo hum unko aesi sthiti me laakar khada kar dete hai .is raah par to sabhi ko aana hai ek din .

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  31. यही हकीकत है आज के समाज की ....कष्टदायक लघु कथा !
    शुभकामनायें सुनील भाई !

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  32. बहुत सुन्दर, मर्मस्पर्शी और संवेदनशील लघु कथा! दिल को छू गयी! बेहतरीन प्रस्तुती!

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  33. बहुत सुंदर.. बात हास्टल के दिनों की है। मेरे मित्र के पिता जी देसी घी के डिब्बे के साथ हास्टल आए। उनका कसूर सिर्फ ये था कि वो धोती कुर्ता और गमछे में आए थे। नालायक दोस्त ने मित्रों को बताया कि ये हमारे दूर के रिश्तेदार हैं... बात आगे और भी लेकिन नालायक मित्र भी ब्लाग पर है। रहने दीजिए

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  34. बहुत जटिल है ऐसी स्थिति में सच बोल व सुन पाना ।
    बहुत अच्छी इस प्रस्तुति के लिये आभार...

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  35. रिश्ता बचा भी है... शायद नहीं
    समाज के कड़वे सच का चित्रण किया है आपने

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  36. बहुत गहरी ... कितना कड़ुवा सच है ....

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  37. प्रेरक लघु कथा ..

    शायद गरीब और मेहनतकश लोगों में अमीरों की तुलना में बहुत कुछ संस्कार अभी भी बरकरार हैं , माँ बाप की इज्ज़त करना तो अभी नहीं भूले हैं !

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  38. दुःख केवल इस बात का है की बेटे ने ये क्यूँ नहीं बताया था की मेरे माता पिता आ रहे हैं। क्यूँ कहा की 'रिश्तेदार'

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  39. रिश्ते को रिश्ते की ही नज़र लग गई मानो!

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  40. पिता ने मुस्कुराकर कहा कि वे दूर के रिश्तेदार हैं....यह कहानी दर असल एक बहुत बड़ा सच है और हमारे बड़े-बूढ़ों ने भी धीरे-धीरे खुद को इसके लिए तैयार करना शुरु कर दिया है, तभी तो पंक्तियाँ 'पिता ने दुख के मारे कुछ नहीं कहा' से आगे चलकर 'पिता ने मुस्कुराकर बताया कि दूर के रिश्तेदार हैं' तक पहुँच गई हैं...दुखद...

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  41. ghazxab kar diya bhai ji aapney,man bhar aaya par yuatharth yahi hai/sader,
    dr.bhoopendra
    rewa
    mp

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