बुधवार, अक्तूबर 03, 2012

सन्यासी का धर्म ....

एक बार एक नदी के किनारे दो सन्यासी अपनी पूजा पाठ में लगे हुए थे । उन सन्यासी में 
से एक ने गृहस्थ जीवन के बाद सन्यास ग्रहण किया था जबकि दूसरा बाल्य अवस्था से ही
सन्यासी था। उन्होंने देखा की एक स्त्री नदी में स्नान कर रही हैं और नदी का स्तर लगातार 
बढ़ रहा हैं । उनमें से एक सन्यासी बोला अगर यह स्त्री डूबने लगेगी तो हम इसे बचा भी 
नहीं पाएंगे क्योंकि स्त्री का स्पर्श भी हमारे लिए वर्जित हैं। अचानक उन्हें बचाओ बचाओ की 
आवाज आई तब  वह सन्यासी जिसने गृहस्थ जीवन के बाद सन्यास ग्रहण किया था ।
उठ कर गया और उस स्त्री को निकाल कर किनारे ले आया और फिर अपनी पूजा पाठ में लग गया ।इस पर दूसरा सन्यासी बोला यह तुमनें अच्छा नहीं किया । स्त्री का स्पर्श भी 
हमारे लिए अपराध है । तुमने सन्यासी धर्म का उल्लंघन किया तुम्हें इसकी सजा मिलनी 
चाहिए ।तब दुसरे  संय्यासी ने  संयत  स्वर में पूछा तुम किस औरत की बात कर रहे हो ।
उसने क्रोधित हो कर कहा जिस स्त्री को तुमने अभी अभी पानी से निकाला  हैं ।इस पर पहले वाले ने उत्तर दिया उस घटना को तो बहुत समय बीत गया लेकिन तुम्हारे दिमाग में वह 
स्त्री अभी तक नही निकली मै तो उस घटना को भूल ही गया था ।यह कह कर वह फिर अपनी पूजा पाठ में लग गया .........
        

18 टिप्‍पणियां:


  1. मन से होता है वैराग्य तन से नहीं...
    बहुत बढ़िया.....
    सादरअनु

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  2. बेहतर मनःस्थिति वाला ही सच्चा संन्यासी है।

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  3. ओशो ने अपने एक प्रवचन में इस कथा का संदर्भ दिया है।
    संन्यास का अर्थ स्त्री से दूर रहना नहीं है। स्त्री के पास होकर भी स्त्री के प्रति अनुरक्त न होने में संन्यास है।

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  4. मन से वैराग्य ही उत्तम वैराग्य है ।

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  5. सच में इस कहानी द्वारा ओशो सन्यासी की सुंदर व्याख्या करते है ..
    अच्छी बोध कहानी है !

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  6. बहुत ही बढ़िया कहानी मन को साधे बिना कोई भी उपसाना व्यर्थ है।

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  7. विचार साधक तो विचार ही बाधक....!

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  8. इस कहानी का आज के समय में भी उतना ही महत्व है. शिक्षाप्रद.

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  9. मनवा तो चहुं दिश फिरै…
    बहुत अच्छी बोधकथा है
    प्रियवर सुनील कुमार जी !

    शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार

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  10. दीवाली की रामराम के साथ
    बनी रहे… त्यौंहारों की ख़ुशियां हमेशा हमेशा…
    ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
    ♥~*~दीपावली की मंगलकामनाएं !~*~♥
    ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ
    सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान
    लक्ष्मी बरसाएं कृपा, मिले स्नेह सम्मान

    **♥**♥**♥**●राजेन्द्र स्वर्णकार●**♥**♥**♥**
    ஜ●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●ஜ

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