गुरुवार, मई 26, 2011

नन्हा पौधा , ( बाल कविता )


आज एक पुरानी बाल कविता पुन : प्रकाशित और पुन : सम्पादित प्रस्तुत है |
कारण ,इसके भाव मुझे बहुत अच्छे लगते है | अब देखना है क्या ख्याल है आपका ! 

हरा भरा  एक नन्हा पौधा ,
 लगा  मेरे  उपवन में | 
 जिसे देख कर फूल ख़ुशी के
 खिल जाते मेरे मन में   |
 धूप यह खाता , पीता पानी
 यही तो इसका दाना पानी |
 बढ़ते बढ़ते  बढ़  जायेगा
 जब  घना वृक्ष यह बन जायेगा |
 तब किसी राह का , 
 थका मुसाफ़िर, छाया में इसकी 
 नींद चैन  की सो  जायेगा | 



33 टिप्‍पणियां:

  1. जितनी दफे पढो उतनी ही दफे आनंदित करने वाली कविता । नन्हे पौधे का छायादार बृक्ष बन जाना और मुसाफिर को विश्राम देना । यह कविता पौधों पर ही नहीं इन्सान पर भी लागू होती है वरना वो कहा है न
    बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड खजूर
    पंथी को साया नहीं फल लागे अति दूर

    जवाब देंहटाएं
  2. हर पौधा अपने जीवन में यही सोचता है।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह ! अनुपम प्रेरणादायक प्रस्तुति.
    बचपन के संस्कार आगे पेड़ रूप में विकसित हो
    छाया प्रदान करतें हैं.नन्हे पौधे के माध्यम से
    सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने.

    मेरे ब्लॉग पर मेरी नई पोस्ट आपका इंतजार कर रही है.
    'सरयू' स्नान का न्यौता है आपको.

    जवाब देंहटाएं
  4. आज के इस युग में पता नहीं इस नन्हें पौधे को वृक्ष बनने दिया जाएगा या नहीं ॥

    जवाब देंहटाएं
  5. बच्चों को राह दिखाने वाली एक अच्छी कविता .आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. दिल को छू जाने वाली रचना है...

    जवाब देंहटाएं
  7. बाल-कवि श्रीमान सुनील कुमार जी आपकी ये रचना वाकई बच्चों को आनंद देगी. मेरे अंतर में बैठे बालमन ने तो इसे गुनगुनाकर सुख ले लिया लेकिन यदि कोई बालक प्राकृतिक रुचियों का हुआ तो अवश्य इससे नाता जोड़ लेगा.

    जवाब देंहटाएं
  8. bahut sunder .bemisaal rachanaa.man ko aakandit kar gai.yeh jindagi ke uper bhi laagoo hoti hai.badhaai aapko.


    please visit my blog and leave a comment also thanks.

    जवाब देंहटाएं
  9. agar ye bal-kavitaa hai to badon kee kavitaa kyaa hogee.. kavitaa ka sandesh sabke liye hai!!

    जवाब देंहटाएं
  10. दिल को छू जाने वाली अच्छी रचना है...

    जवाब देंहटाएं
  11. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (28.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

    जवाब देंहटाएं
  12. सुनील जी ,
    अच्छी लगी आपकी कविता !

    जवाब देंहटाएं
  13. बढ़ते बढ़ते बढ़ जायेगा...
    बहुत सुन्दर बालकविता...

    जवाब देंहटाएं
  14. बाल कविता लिखना बहुत कठिन काम है।
    प्रेरक कविता ।

    जवाब देंहटाएं
  15. बचपन का ही पल्लवन है विकास और हमारे संस्कार ,हवा पानी के संग मुस्कुराना अपने परिवेश में समाविष्ट हो खुद ही अपनी खाद बन जाना कोई इस नन्ने पौधे से सीखे .

    जवाब देंहटाएं
  16. हर बीज में सारी संभावनाएं होती है .ये हमारी भी जिम्मेवारी बनती है ...हम उसे वृक्ष बनने दे चाहे वो हमारे बच्चे ही क्यों न हो ...मधुर रचना

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत ही सुन्दर है ये बाल कविता……. धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  18. . बहुत ही सुन्दर और प्यारा-प्यारा है

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना...

    जवाब देंहटाएं
  20. वृक्ष पिता सम पालहीं नर खग आश्रय देय
    मीठे फल पुनि देत है, नाहि कछु उनते लेय!

    श्रेष्ठ भाव समेटे हुए है आपकी छोटी सी कविता .

    जवाब देंहटाएं
  21. बाल कविता पर बडों को इसे समझना होगा
    सुंदर
    शुभकामनाएं आपको

    जवाब देंहटाएं
  22. काफी सुन्दर !!
    बच्चों के साथ साथ बड़ों के लिए भी एक सीख भरी कविता !!

    जवाब देंहटाएं
  23. दोबारा पढ़ा, आनंद लिया। वाह! किसी भी पुराने को नई उमंग नए उत्साह से पढ़ो तो वह आनंद वर्षा करती है। :)

    जवाब देंहटाएं