रविवार, मई 01, 2011

शेर यूँ मुकम्मल हुआ



एक बार एक कवि महोदय अपने बगीचे में परेशानी की हालत में घूम रहे थे |
उनके मित्र ने पूछा इतना सुंदर वातावरण है और आप चिंतित दिख रहे हैं | 
उन्होंने फ़रमाया कि मेरा शेर मुक्म्मल नहीं हो रहा है | पहला मिसिरा तो तैयार 
है यही मेरी चिंता का कारण है मित्र ने कहा आप मुझे सुनाएँ शायद मैं आपकी 
कुछ सहायता कर सकूँ  |उन्होंने कहा मिसिरा यूँ है कि 

आती है आज बाग़ से बू ए कबाब की 

उनके दोस्त  ने  कहा इसमें कौन सी बात है आगे लिख दो 
शायद किसी बुलबुल का दिल जला होगा 
यो वह शेर यूँ मुकम्मल हुआ 

आती है आज बाग़ से बू ए कबाब की
शायद किसी बुलबुल का दिल जला होगा |


मेरे मित्रों मेरी परेशानी अब आप दूर  कीजिये पहला मिसिरा यूँ है की

गुनाहों के शहर में, मैं बेगुनाह रहता कैसे 




27 टिप्‍पणियां:

  1. गुनाहों के शहर में, वो बेगुनाह रहता कैसे
    इसलिए शामिल उसी भीड़ में हुआ होगा....


    :)

    काफिया और रदीफ पहले शेर से मिला दिया है...

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  2. अकेलापन सताता, जीवनी दुत्कारने लगती।

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  3. बहुत खूबसूरत रचना ,शुभकामनाएं

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  4. भई हम तो इन मुद्दों को सिर्फ पढना ही जानते हैं । अच्छा लग जाए तो कुछ बोल देते हैं वर्ना कई बार तो पढकर वैसे ही निकल भी जाते हैं ।

    टोपी पहनाने की कला...

    गर भला किसी का कर ना सको तो...

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  5. गुनाहों के शहर में मैं बेगुनाह रहता कैसे
    पाले थे दिल ने भरम तब जाने कैसे कैसे

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  6. गुनाहों के शहर में, वो बेगुनाह रहता कैसे

    शहर में बेगाना हो जाता कैसे


    अस्तित्व की लड़ाई तो लड़नी है

    खुद को दीवाना कहलाता कैसे !

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  7. गुनाहों के शहर में वो बेगुनाह रहता कैसे..

    बहुत बढिया...

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. मजेदार ,

    गुनाहों के शहर में ,मैं बेगुनाह रहता कैसे
    दिल लगाने का गुनाह किया होगा

    गुनाहों के शहर में ,मैं बेगुनाह रहता कैसे
    गेहूं के साथ घुन भी पिसा होगा

    समीर जी की लिखी पंक्ति भी पसंद आई ...गुनाहों की जगह गुनहगारों के शहर में लिखना क्या ठीक नहीं है ...फैसला भी आपका है , बस यूँ ही लिख दिया है ...ख्याल उठा , अन्यथा न लें ।

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  10. sunil bhai ji aapka pahla sher to bhaut hi badhiya laga iske liye aapke dost ko bahut bahut badhai.

    gunaho ke shahar me main begunaah rahta kaise
    jamaane ne jabran muhe isme dhakela jo hai.
    dhanyvaad
    poonam

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  11. गुनाहों के शहर मॅं वो बेगुनाह रहता कैसे
    उसका वो गांव जो हर वक्त याद आता रहा

    बस एक कोशिश की है....

    आकर्षण

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  12. गुनाहों के शहर में, वह बेगुनाह रहता कैसे,
    किस किस के गुनाह उठा कर चलता सर पर...

    सिर्फ़ एक कोशिश की तरह लें..
    वैसे समीर जी की पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं..

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  13. .

    ये कैसा रहेगा ?

    गुनाहों के शहर में, वो बेगुनाह रहता कैसे
    कुछ तो असर , गुनाहगारों का हुआ होगा।

    .

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  14. 'गुनाहों के शहर में मैं बेगुनाह रहता कैसे

    मेरी बेगुनाही की भला कौन गवाही देता '

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  15. गुनाहों के शहर में मैं बेगुनाह रहता कैसे ,
    कि बेगुनाही ही जो गुनाह बन जाती मेरी ....

    बस जो समझ में आया लिख दिया ..वर्ना शेर की हमारी समझ तो बस बकरी जितनी है :) क्षमा करिएगा ..हा हा हा इसे हल्के फ़ुल्के अंदाज़ में ही लीजीएगा सर

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  16. Blog ko badi hi khoobsoorati se sajaya hai, shandaar prastuti..

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  17. जरा इधर भी ....खड़े हैं हम भी राहों में .... :-)

    गुनाहों के शहर में मैं बेगुनाह रहता कैसे
    अकेला मैं ही लुटता जा रहा लूटूं किसको
    लोग तो उड़नतश्तरी पर बैठकर लूटें ,
    हमारा रिक्शा कनाडा तक, अब पंहुचें कैसे ?

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  18. एक कोशिश मेरी भी...

    गुनाहों के शहर में, मैं बेगुनाह रहता कैसे,
    काजल की कोठरी में लगा मासूम-सा दाग हो जैसे.


    एक बात समझ में नहीं आई. बहुत से लोगों ने पहली पंक्ति के “मैं” की जगह “वो” या “वह” का प्रयोग कर डाला है.
    - आलोक सिन्हा, पटना

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  19. गुनाहों के शहर में, मैं बेगुनाह रहता कैसे
    सोचता हूँ तुझसे मुहब्बत ही कर लूं.

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  20. गुनाहों के शहर में , मैं रहता कैसे
    रहना पड़ा मुझे भी , और रह रहे थे जैसे

    क्यों ठीक है न साहिब

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  21. अर्ज कर रही हूं अपने तर्ज पर.....

    गुनाहों के शहर में ,मैं बेगुनाह रहती कैसे
    रात में रह के उजालों को पहनती कैसे

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  22. ग़ुनाहों के शहर में, मैं बेग़ुनाह रहता कैसे?
    कीचड़ में कमल खिलकर निर्लिप्त रहता है जैसे।

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  23. गुनाहों के शहर में मैं बेगुनाह रहता कैसे ?
    बड़े मजे से ! बेगुनाह नहीं गुनाहगार हूँ मैं...

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  24. कैसा लगा बताइयेगा ...जरूर !!
    गुनाहों के शहर में मैं बेगुनाह रहता कैसे ?
    यही सोंचा कि चलो हम भी प्यार कर डालें !!

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  25. tere saamne zaroor koi be -gunaah pitaa hogaa ,
    gunaahon ke shahar em tu be gunaah rahtaa bhi to kaise .
    veerubhai

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  26. अरे वाह! क्या बात है जी.सभी को शायर बनवा दिया है आपने तो.
    तो फिर मै पीछे क्यूँ
    गुनाहों के शहर में ,मै बेगुनाह रहता कैसे
    मेरे रहने से जब,कोई गुनाहगार न रहा
    अब आपको बताना पड़ेगा प्रति-टिपण्णी द्वारा कि
    शेर मुक्कमल हुआ या नहीं.

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