एक रचनाकार की रचनाएँ लगातार सम्पादक के खेद सहित पत्रों के साथ वापस आ रहीं थीं |
वह लेखक गुस्से में संपादक के पास गया और वापस करने का कारण पूछा तब संपादक ने
उसे विनम्र स्वर में समझाया की आपकी रचना हमारी पत्रिका के स्तर की नही है |
और उसने कहा आप अंग्रेजी में क्यों नहीं लिखते ?लेखक ने उत्तर दिया मुझे अंग्रेजी नहीं आती है |
सम्पादक ने कहा आती तो आपको हिंदी भी नहीं !!!!!
ऐसे ही मेरे एक मित्र ने कहा आप रोमांटिक गीत क्यों नहीं लिखते मैंने कहा गीत लिखना मुझे नहीं
आता तो उसने कहा आता तो कविता भी नहीं है...............
सावन का गीत
जब से सावन आया है वह रूठी रूठी रहती है
बातें उसको सावन की सब झूठी झूठी लगती है |
बातें उसको सावन की सब झूठी झूठी लगती है |
सावन में घटा जब अम्बर पे छाती है
मन में मिलन की वह प्यास जगाती है |
बारिस की बूंदें उसके तन पर जब गिरती हैं |
माला मोतियों की मुझे टूटी टूटी लगती है |
जब से सावन आया है वह रूठी रूठी रहती है
बातें उसको सावन की सब झूठी झूठी लगती है |
बातें उसको सावन की सब झूठी झूठी लगती है |
अम्बर से जब बादलों की हो गयी विदाई है |
खिल कर धुप मेरे आँगन में आयी है|
मुद्दतों के बाद उसका चेहरा नज़र आया है |
बादलों की चोटी मुझे गुंथी गुंथी लगती है |
जब से सावन आया है वह रूठी रूठी रहती है
बातें उसको सावन की सब झूठी झूठी लगती है |
आपकी रचना को पढ़ कर नही लगता की आपको कविता लिखना नही आता... अच्छी रचना...
जवाब देंहटाएंहाहहाहाहहा
जवाब देंहटाएंलेकिन कविता तो वाकई बहुत सुंदर
bahut hi sundar saawani prastuti ke liye aabhar!
जवाब देंहटाएंsunder kavita....
जवाब देंहटाएं:) बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंअरे वाह! लिख तो लिया... आपके दोस्त की बात झूठी-झूठी लगती है :)
जवाब देंहटाएंकविता लिखना न आता हो मगर सुन्दर कविता लिखी है सुनील जी अब नहीं आने का कोई फर्क नहीं पड़ता.
जवाब देंहटाएंकविता बहुत सुन्दर है ... किसने कह दिया कि कविता लिखना नहीं आता ?
जवाब देंहटाएंsir ji kyun july me hi april fool bana rahe ho....
जवाब देंहटाएंitni achi to likhi hai...
jai hind jai bharat
......lekin aap to bahut achcha likhte hain.
जवाब देंहटाएंकविता तो सुन्दर है ही, अपने ऊपर मज़ाक कर सकने की क्षमता भी आजकल दुर्लभ ही है।
जवाब देंहटाएंसुनील भाई तो अगर वो रूठ गई हैं, तो मना लो न यार|
जवाब देंहटाएंसावन पर सामयिक और सुन्दर गीत.
जवाब देंहटाएंरचनाएं भेजने वाला ही जल्दी में दिखता है. जब तक वह महान लेखक न हो जाए उसे यूं ऐरे-गैरे संपादकों को रचनाएं भेजने से बचना चाहिये :)
जवाब देंहटाएंनिर्झर की तरह कल-कल करती सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंसच में एक अच्छी प्रस्तुति आपकी
जवाब देंहटाएंउसकी बाते क्यों इस दिल में डूबी डूबी रहती है
वो क्या कहती है जो ...वो खुद में पूरी और कुछ अधूरी रहती है .............आभार
Ek bahut barhiya rachna.... Aabhar...
जवाब देंहटाएंइतनी तो अच्छी रचना है, यह प्रस्तावना तो हम जैसे लेखकों के लिये है।
जवाब देंहटाएंआप तो मजाक भी अच्छा कर लेते हैं।
जवाब देंहटाएंगीत बहुत बढ़िया है, कोई शक नहीं।
सावन कि छटा बिखराती सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुंदर सावनी रचना.....
जवाब देंहटाएंघबराइए मत कविता के विषय में यह नहीं कहूँगा कि आप तो पंडित रविशंकर की तरह कविता लिखते हैं!!
जवाब देंहटाएंसुनील जी, अच्छा लगा इंट्रो और कविता भी भा गयी!!
बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंवाह...
रूठने-मनाने का यह उपक्रम पुराना है। सावन की पृष्ठभूमि के कारण प्रेमाभिव्यक्ति और सशक्त हुई है।
जवाब देंहटाएंमुला गीत लिखने तो आपको आता है -क्या खूब सावन का अलग मिजाज का गीत !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंबहुत- बहुत सुन्दर कविता...लाजवाब रचना...
जवाब देंहटाएंदोस्त गीत बनके छा रहे हो ,प्रतीक नए नए ला रहे हो ,उसके तन पे बूँदें मुझको माला टूटी लगती है ,बादल कीभी चोटी आज गूंथी हुई लगती है .सावन घटा ,हर तरफ तू ही तू है तेरा ही नूर है वाह क्या बात है श्यामल सुंदरी की ..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता बहुत कमाल का बिम्ब चुना आपने...
जवाब देंहटाएंसुनील जी
जवाब देंहटाएंसावन के मस्त फुहारों की तरह मस्त मस्त है आपकी रचना
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सावन की फुहार की तरह...
शुभकामनाएं आपको..............