बुधवार, अक्तूबर 01, 2014

मेरा सूरज

मेरी छत पर आकर सूरज
क्यों ? जल्दी ढल जाता है |

उगते सूरज की पहली किरण ,
जब मेरे आँगन में पड़ती है |
फटा बिछौना टूटी खटिया ,
यही तो उसको दिखती है |

धीरे धीरे तपता  सूरज ,
जब मेरी रसोई में आता है |
खली बर्तन ,ठंडा चूल्हा ,
और नहीं कुछ वह पाता है |

लिए लालिमा सूरज ,
जब मेरी खिड़की पर आता  है|
बूढ़ी माँ का पीला चेहरा ,
शायद वह देख ना पाता है |

इसी लिए तो मेरी छत पर ,
आकर सूरज जल्दी से ढल जाता है |


रविवार, सितंबर 21, 2014

यह क्या है ?

इसे किस्मत का करिश्मा मानूँ 
या कहूँ कि उसकी तदवीर थी ऐसी | 


आज नोटों को गिन रहा है वह ,
कल तक जो सिक्कों का हिसाब रखता था 



रविवार, सितंबर 14, 2014

हिंदी एक पुष्प

हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में राजभाषा को समर्पित कविता



 


रंग बिरंगे फूल खिले है  
भाषा के इस उपवन में |
सबकी अपनी सुगंध बसी है
हर मानस के मन में |
मग़र इस उपवन की शोभा को
बस एक ही पुष्प बढ़ाता
नाम पड़ा है हिंदी जिसका 
और जो सबको महकाता  |
अपने रस की कुछ बूंदों को 
जब इसने कविता में डाला 
अमर हो गए कवि देश के 
पन्त प्रसाद और निराला |

  
 


जिसके मन में बसी यह भाषा 
या जो इसको अपनाता |
नहीं ज़रूरत किसी प्रमाण की 
वह सच्चा देश भक्त कहलाता |