गुरुवार, मार्च 31, 2011

हास्य कवि और उनकी कविता



अक्सर हास्य कवियों पर यह आरोप लगते है कि वह लतीफों को पंक्तिबद्ध 
करके रचनाएँ लिखते है | मगर मेरा मानना है कि हास्य कवि दोहरी भूमिका 
निभाता है | इस व्यथित समाज को हँसाने के साथ  साथ सन्देश भी देता है |
चलिए एक आरोप और लगा दीजिये |



एक पत्र, एक संपादक को
बहुत परेशान कर रहा था |
क्योंकि एक पाठक  बार बार
पृष्ठों की संख्या और आकार
बढ़ाने का आग्रह कर रहा था |
संपादक ने विनम्रता से पूछा  
 हे सरस्वती पुत्र  साहित्य प्रेमी 
 हम आपका सम्मान करते है | 
मगर यह तो बताएं ?
की आप साहित्य की किस ,
विधा में सृजन कार्य करते है |   
उसने कहा  श्रीमान जी ,
मेरा साहित्य से  कोई नहीं सरोकार है |
मेरा तो लिफाफे बनाने का कारोबार  है |





शुक्रवार, मार्च 25, 2011

मेरा सूरज क्यों जल्दी ढ़लता है ?


मेरी  छत पर आकर सूरज ,
क्यों जल्दी ढल जाता है ?

उगते सूरज की पहली किरण ,
जब मेरे आँगन में पड़ती है |
फटा बिछौना , टूटी खटिया ,
यही तो उसको दिखती है |

धीरे धीरे तपता सूरज ,
जब मेरी रसोई में आता है |
ख़ाली बर्तन, ठंडा चूल्हा  
और नहीं कुछ पाता है |

लिए लालिमा सूरज जब ,
मेरी  खिड़की पर आता है |
बूढी माँ का पीला चेहरा ,
शायद वह देख ना पाता है| 

तभी  तो मेरी छत पर आकर ,
सूरज जल्दी से ढल  जाता है |



सोमवार, मार्च 21, 2011

भिखारी और हम


सड़क पर बैठा भिखारी ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहा था 
और अपने खाली डिब्बे को बजा रहा था
हमने पूछा क्यों मचा रहा बबाल है 
वह प्यार से बोला राम के नाम पर एक रुपये का सवाल है |
हमने कहा सड़क पर भीख माँगते शर्म नहीं आती ?
वह हंसकर   बोला " क्या ऑफिस खोल लूँ "?
फिर गुस्से में बोला हम  सड़क पर बैठते साब
इसलिए राम के नाम पर नोट मांगते है |
ऑफिस तो वह खोलते है जो राम के नाम पर वोट मांगते है |
उसके इस उत्तर ने हमें खुश कर दिया |
और हमने एक सिगरेट पेश कर दिया |
वह बोला क्या इससे   फायदा ?
हमने समझया सिगरेट पिएगा तो वक्त से पहले मार जायेगा| 
इस गरीबी से निजात पा जायेगा 
गरीबी तो हट नहीं सकती एक गरीब हट जायेगा |
गरीबी हटाओ का नारा देने वाला नेता 
चुनाव में दो चार वोट ज्यादा पा जायेगा |
और किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री बन जायेगा |
वह बोला क्या इससे   फायदा ?
हमने याद दिलाया वह गाना 
है फर्ज आदमी का औरों  के काम आना |
वह बोला क्यों जी हमें बुद्धू बनाते हो 
और ज़िंदगी की कीमत मौत बताते हो |
हमने कहा चल दो चार पल और जी ले 
यह ले दारू एक पेग पी ले |
वह बोला क्या इससे   फायदा ?
हमने कहा एक पेग पिएगा तो बोतल की आदत पड़  जाएगी |
कुछ दिनों में तेरी दोनों किडनी सड़ जाएगी 
जब तू किसी डाक्टर के चुंगल में आएगा 
तो अपनी दोनों किडनी वापस लेकर आयेगा|
क्यूंकि ख़राब किडनी कोई नहीं निकलता 
एक डाक्टर किडनी चोरी के पाप से बच जायेगा |
अब उसने नही पूछा क्या फायदा 
क्योंकि याद आ गया वह गाना 
 है फर्ज आदमी का औरों  के काम आना ...


शुक्रवार, मार्च 18, 2011

होली और आम आदमी


तो लीजिये एक बार फिर  आ गयी होली | होली का पौराणिक महत्व 
पर चर्चा करना तो आप पाठकों से साथ नाइंसाफी होगी |
आज मै  आम आदमी  और इस पर्व की विसंगतियां पर कुछ प्रकाश 
डालना चाहता हूँ | 

(१) यह पर्व अधिकतर उस माह में पड़ता है जिस माह का वेतन किसी 
सरकारी कर्मचारी को नहीं मिलता है |

(२) अगर गलती से दुसरे माह में पड़ भी जाये तो उस माह का वेतन 
आयकर की कटौती के बाद कुछ नहीं बचता है |

(३) यह पर्व उस माह में पड़ता है जब बच्चों की परीक्षाएं चल रही होती है |

 फिर भी एक  आम आदमी  इस पर्व को धूमधाम से मनाता है | और इसकी
मस्ती में इतना डूब जाता है की अपने  आप को भी भूल जाता है|
रंग से पुते चेहरे, फटे हुए कपड़ों में, नशे में धुत्त आप किसी सभ्य सुशिक्षित 
बर्ग के  आदमी  को आसानी से पा सकते है | वह जोर जोर से चिल्ला रहा 
होगा की होली है ....रंग बिरंगी होली है ...
क्या आपने किसी को दिवाली है या दशहरा है या रक्षाबंधन  है चिल्लाते हुए देखा 
दीवाली है ...या दशहरा है... तो निसंदेह आपका उत्तर होगा नहीं | यही तो इस त्यौहार की विशेषता है |


अंत में 

दिल में भरी  उमंग हो 
बोतल में भरी  भंग हो 
मजा कुछ और बढ़ जाये 
यदि कवियों का संग हो |

आप सभी को होली की शुभकामनायें 

सोमवार, मार्च 14, 2011

आज आपकी ख़िदमत में यह तीन शेर



बुझता  चिराग़ देख कर ,
साये ने यह कहा |
अब मै भी जा रहा हूँ 
इसी रोशनी  के साथ |


जिंदगानी के सफ़र में ,
क्यूँ  तुमने , तन्हा मुझको  कहा |
एक भीड़ चल रही है ,
ग़मों की तो मेरे साथ |


देख कर हौसला मेरा ,
किस्मत ने मुझसे यूँ कहा | 
चलना पड़ेगा ताउम्र मुझे, 
अब तो तुम्हारे साथ |





शुक्रवार, मार्च 11, 2011

सुनामी का दर्द



कुदरत की करामात को ,
कोई ना समझ पाया |
हरक़त तो की ज़मी ने ,
समंदर को गुस्सा आया |

बाँहों में जिनकी रहते थे ,
हम अपना समझ कर   | 
करवट क्या ली उन्होंने 
हमें ख़ाक में मिलाया |

किसी माँ से बिछड़ा बेटा ,
 और बहनों से बिछड़ा भाई |
कल बनाया जिसको दुल्हन 
उसी को बेवा  आज बनाया |   

मंगलवार, मार्च 08, 2011

बाल कविताओं में व्यंग्यात्मक पुट


बाल कविताओं में व्यंग्यात्मक पुट ,  जी हाँ अचानक आज मुझे 
अपने बचपन की दो कवितायेँ याद आ गयीं | इनके रचियता  तो 
मुझे मालूम नहीं है मगर उनकी छाप मेरे जहन में आज भी है |
जहाँ तक मुझे ज्ञात है कि बाल कवितों का उद्देश्य शिक्षाप्रद होता है |
मगर इनका क्या उद्देश्य है | अब आप ही बताइए .....

       (१)

बिल्ली बोली चूहे भैया, 
आओं मिलाओ हाथ |
बिल में  क्यों छिप कर बैठे हो ,
मिल कर खेलो साथ |
चूहा बोला बिल्ली मौसी, 
मुझको ना बहलाओ |
आँगन में है कुत्ते मामा 
उनसे हाथ मिलाओ |

          (२)

डाक्टर देखो भली प्रकार ,
मेरी गुडिया है बीमार |
परसों बरसा रिमझिम पानी 
उसमे भींगी गुडिया रानी |
भींगे कपड़े दिए उतार,
फिर उसको  चढ़ा तेज  बुखार |
सौ के ऊपर डिग्री चार |
डाक्टर देखो भली प्रकार
जब तक गुडिया रहे बीमार 
तब तक पैसे रहे उधार| 


शुक्रवार, मार्च 04, 2011

आज बस मतला और एक शेर



 आज मै चिरागों को 
बुझाना चाहता हूँ |
मैं अकेला हूँ यह, 
 ज़माने को दिखाना चाहता हूँ | 

मौत को  तो गले ,
लगाना है एक  दिन |
मग़र ऐ ज़िन्दगी,
तुझे भी आजमाना चाहता हूँ |