सोमवार, नवंबर 28, 2011

मतला और एक शेर............

साज़िशें हवाओं ने कुछ
मेरे साथ  इस तरह कीं|
दिल सुलगता देखकर, 
रुख अपना हमारी ओर कर दिया |  


मेरी मुहब्बत का सिला ,
मेरे महबूब ने इस तरह दिया |
बुला कर बज़्म में अपनी, 
मुझको बेगाना कह दिया | 

शुक्रवार, नवंबर 25, 2011

यह भी हमारी ही बेटियाँ है........


 फूलों को हमने हँसते देखा 
 और कलियों को मुस्काते |
 चंचल लहरों को भी देखा ,
 सागर में हरदम  मौज  उड़ाते |
 माना दुःख  से इनका  रिश्ता ,
 मगर ख़ुशी से परिचय भी है |
 थोड़ा सा  सुख दे कर देखो 
 तुम इनका यह चेहरा भी |
 जिसे देख कर लगेगा तुमको ,
 यह जानते हैं हँसना भी |  



आज एक  पूर्व प्रकाशित रचना मेरी पसंद से ..................

(चित्र गूगल के सौंजन्य से   

मंगलवार, नवंबर 22, 2011

कुछ अजीब से हालात है ..........



तुम छिप छिप कर अब  मुझसे मिलने आना,
अब हर रस्ते पर कुछ आँखें पहरा देती हैं |

आना , मिलना पर कुछ ना कहना तुम मुझसे,
अब तो दीवारें भी  हरदम  चौकन्नीं   रहती हैं |

तुमने कब ,क्या बोला अब कुछ भी याद नहीं ,
अब बस अनकही बात ही मेरे जहन में रहती है |

कसमें -वादे, प्यार की बातें  यह , दिल की मज़बूरी है ,
माना यह सब सच हों, पर मुझको झूठी लगती हैं |


(चित्र गूगल के सौंजन्य से )

रविवार, नवंबर 20, 2011

फिर चुनाव आने वाला है ..........

एक बार फिर चुनावों का बिगुल बज गया तरह तरह के  वादों  के साथ हमारे नेतागण
मैदान में आ गए |कोई स्विस बैंक से पैसा बापस ला रहा है तो कोई भ्रष्टाचार मिटा रहा 
है |कोई देश को एक बार फिर स्वतंत्र कराने की बात कर रहा है तो कोई गढ़े मुर्दे उखाड़  
कर, न्याय दिलाने की बात, कुल मिलकर बात ही बात ......
कभी कोई  गंगा आरती करती हैं तो कभी कोई  अजमेर शरीफ में चादर चढ़ाता है ... 
कितना अच्छा लगता है यह सब  देख कर कि यहाँ सब धर्म एक सामान हैं |
हमारे नेता हर आदमी को जागरूक कर रहे हैं तुम एक आदमी ही नहीं तुम हिदू हो ,सिख
हो मुसलमान हो या ईसाई |कुछ तो इसके आगे भी समझा रहे हैं | (जो मैं लिख नहीं सकता)कहने का अर्थ यह है एक आम आदमी इनके लिए बस एक वोट बन गया हैं |



क्यों लिए फिरता है वह मजहब के  झंडे हाथ में,
क्या मालूम हो गया अपना मजहब  उसको  या  फिर चुनाव आने वाला है |

क्यों सुनाई दे रहीं मस्जिदों से घंटियाँ और मंदिरों से अजान,
या तो कोई सिरफिरा गया है उधर या फिर चुनाव आने वाला है |

यह गुजरात और गोधरा फिर क्यों सुर्ख़ियों में हैं,
या तो  अपनी गलतियों का अहसास हुआ है उन्हें  या फिर चुनाव आने वाला है |

यह आज कौन बनके हमदर्द मेरे घर आया,
या तो वह शख्स इन्सान बना है अभी या फिर चुनाव आने वाला हैं |



बुधवार, नवंबर 16, 2011

ओल्ड एज होम ( लघुकथा)



आज अचानक किसी ओल्ड एज होम में जाने का विचार आया , केवल यह देखने के लिए
कैसे रहते हैं वह लोग जिनके अपने, उन्हें यहाँ छोड़ गए हैं |यह विचार कई बार मन में  
आया ऐसी कौन सी मज़बूरी होती है जिन माँ बाप, जिहोने उन्हें पाला पोसा जीवन के  
सारे सुख दिए| आज वह यहाँ मरने के दिन गिन रहे हैं |जैसे ही अन्दर गया वातावरण    बिलकुल सामान्य लगा कुछ लोग पेपर पढ़ रहे थे कुछ टीवी देखने में व्यस्त थे |
कुछ बुढ़ी ओरतें पूजा पाठ में लगीं थीं तो कुछ बात करने में |कुल मिला का एक सामान्य 
वातावरण की सारी शर्तें पूरी हो रहीं थीं |
उसी कमरे के एक कोने में बैठे हुए बूढ़े व्यक्ति से मैंने कहा " अंकल नमस्ते "उसने सर 
उठा कर हाँ कहा और बोला आप किसी पत्रिका या अखवार से है जो  हमारे जीवन पर कोई 
कहानी लिख रहे हैं |लिख दीजिये हम यहाँ अपने हाल पर खुश हैं हमें किसी की दया नहीं 
चाहिए | तभी उसने बोलना शुरू किया मेरा नाम सुरेन्द्र मोहन शर्मा है मैं एक निजी कंपनी 
में हेड क्लर्क के पद से रिटायर हुआ मेरी शादी आज से तीस साल पहले हुई और  दो   
साल के बाद ही वह दूसरी शादी करके छोड़ कर चली गयी, कारण संस्कारों की दीवार थी |
छोड़ गयी एक बच्चा ....एक कहावत के अनुसार यदि माँ हुई दूसरी तो बाप हुए तीसरे 
मैंने शादी नहीं की | दो साल पहले वह भी शादी करके अलग हो गया कारण था बदलता 
वक्त ..... और फिर मैं यहाँ  आ गया |यह कह कर उसने पीछे रखे टीन के बक्से में 
से एक शादी का लाल जोड़ा और एक जोड़ी बचपन के छोटे कपडे निकाल कर दिखाए |
यही वह दो निशानी जब मैं खुश था | मैंने कहा अंकल कोई फोटो नहीं हैं ? वह बोला 
थे मगर फाड़ दिए |क्योंकि उनकी फोटो देख कर जब मैं और लोगों को देखता था तो  
उनकी शक्ल इस दुनिया के बहुत से लोगों से मिलती थी | जिसे देख कर मैं सहम जाता  
था| वैसे मैं यह जानता हूँ कि सब लोग एक जैसे  नहीं होते ........और मुस्करा कर 
बोला "यह दुनिया बहुत खूबसूरत है" .............. 
  

शनिवार, नवंबर 12, 2011

जबरदस्ती की मुबारकबाद (ब्लोगिंग के नाम चंद शेर )

लीजिये हम भी शामिल हो गए दो सौ फालोअर के ब्लोगरों  की जमात में ( इसमें मेरा कोई योग्यदान नहीं है )अब मेरा नैतिक  कर्तव्य होता है कि मै आप सभी का आभार व्यक्त करूँ ,धन्यवाद दूँ और प्राथर्ना करूँ किअब मुझे छोड़ कर मत जाना ( बड़ी बदनामी होती है ) छोडिये इन बातों को , यह आवश्यक औपचारिकता के अंतर्गत आतीं हैं |
लगभग बीस महीने कि ब्लोगिंग में मेरा जो अनुभव रहा वह शेरों में कहने कि कोशिश कर रहा हूँ |यह बदलते मिज़ाज की ग़ज़ल हैं |

दिल में जो भी आये  वह ब्लॉग में  लिख दीजिये ,
क्यों बेवजह दिल में बातों का एक ज़खीरा बनाया जाये |

छिपे हैं दर्द, जो मेरे दिल के किसी कोने में,
चलो एक  पोस्ट के  जरिये, उन्हें अब सामने लाया जाये |

वह पौधा , जो कल एक दरख़्त की शक्ल पा जायेगा   |
आओ उसमें कुछ मशविरे की खाद और हौसले का पानी लगाया जाये |

ग़र फ़ुरसत मिल गयी हो किसी नामचीं शायर को दाद देने से , 
चलो अब कुछ नौजवानों को भी हौसला बढ़ाया जाये |

आओ चलो दो चार नए ब्लोगों को टिपिया जाये |
और अपने लिए एक नया फालोअर  भी कहीं से लाया जाये |

किसी की टांग का खींचना यहाँ खेल अगर ब्लोगिंग है|
तो फिर क्यूँ ना यह खेल, ओलम्पिक में भी खिलवाया जाये |


   

बुधवार, नवंबर 09, 2011

यह सब क्या है ? ( चंद शेर )



कुछ लोग मरने मारने को तैयार हुए बैठे हैं|
और कुछ लोग अपने हांथों में तलवार लिए बैठे हैं, 

ना जानें किस  फ़ितरत के मालिक हैं वह,
जो इस आग में सेंकने को हाथ तैयार लिए बैठे हैं| 

ना जानें कौन से पढ़ी है किताब उन लोगों ने,
जो दहशतगर्दी को भी एक नया नाम दिए बैठे हैं|    

कहीं शर्मसार ना हो जाये यह इंसानियत अपनी ,
हम तो हर लाश के लिए कफ़न तैयार लिए बैठे हैं| 



शनिवार, नवंबर 05, 2011

व्यर्थ आंसू .......




मत बहाओ,
व्यर्थ
तुम अपने  यह आँसू |
ना ही कोई
दया का सागर उमडेगा
और ना ही कोई ,
आएगा
भावनाओं का सैलाब |
क्योंकि
गिर रहे हैं
तुम्हारे यह आँसू
संवेदनहीनता  की रेत पर|
 
 

मंगलवार, नवंबर 01, 2011

टुकड़ों -टुकड़ों में बँटी हुई ज़िन्दगी......


टुकड़ों -टुकड़ों में 
बँटी हुई यह जिन्दगी |
हर एक  टुकड़ा 
मांगता है अपना हिसाब 
मजबूर हूँ तलाशने को ,
उनके लिए रोज़ , 
नये नये जबाब| 
अपने दायित्वों का, 
बोझ में बदल जाना |
जिन्दगी की रफ़्तार को 
कुछ और कम कर जाना |
थकें मांदें सूरज का 
झूठा आश्वासन 
कल नया सूरज देगा, 
एक नया जीवन |
अब बन चुका है 
एक  चक्र ,
मन के सन्नाटे में, 
गूंजता है केवल एक प्रश्न |
क्या यही है जीवन ?
सुनाई पड़ती है प्रतिध्वनि
हाँ यही है जीवन ..............