रविवार, अगस्त 18, 2013

आम आदमी


तुमको तुम्हारे शहर की 
सड़कों पर पड़ी ,
जिन्दा लाशों की कसम 
मत डालना तुम ,
इन पर झूठी सहानुभूति का कफ़न 
इनको यूँही पड़ा रहने दो 
चीखने दो चिल्लाने दो 
तुम्हारी सभ्यता की कहानी 
इनको ही सुनाने दो 
सड़क पर पड़े हुए यह लोग 
हमारे बहुत काम आते है |
तभी तो हमारे राजनेता 
इनके भूखे नंगे तपते हुए पेटों पर 
राजनीति की रोटियां सेंक जाते है |
इनको तरह तरह से  
उपयोग में लाया जाता है |
कभी राम कभी अल्लाह के नाम पर ,
इनका  ही  तो खून बहाया जाता है 
और कभी कभी अपनी सियासत, 
चमकाने और ताकत दिखाने के लिए 
इन आम आदमियों के नाम पर 
भारत बंद बुलाया जाता है | 
चुनावों के समय हम ,
इनको आम जनता कहते है |
और फिर आने वाले चुनावों तक ,
आम की तरह चूसते रहते है |
यह रोते है तो रोने दो 
मत जगाओ, सोने दो |
जिस दिन यह सोता हुआ, 
आम आदमी जाग जायेगा ,
उस दिन से संसद का रास्ता 
बहुत कठिन  हो जायेगा |


(यह रचना आज के समय में बहुत ही सार्थक प्रतीत होती है । इस लिए 
इसको पुन: प्रकाशित कर रहा हूँ )


मंगलवार, अगस्त 06, 2013

शहादत पर सियासत ...

आज सारा भारतवर्ष  शहीदों को अपने अपने अंदाज में श्रद्धांजलि  दे रहा है |  अब प्रश्न  उठता है इनमें से कितने लोग इन्हें कल याद रखेंगे इसका उत्तर  मै आप परछोड़ता हूँ |क्या आपने कभी यह सोचा  जिस परिवार का कोई व्यक्ति शहीद  होता है उस घर का क्या हाल होता है |
मै इस रचना के माध्यम से आपको एक शहीद के घर में लेके चलता हूँ |अगर इस रचना 
को पढ़ते समय आपके आँसू  निकले तो निकलने दीजिये मै  यह चाहता हूँ यह रचना आंसुओं के माध्यम से आप तक पहुंचे।     

बेटे के जब मौत का संदेशा घर में आया था |
तब बूढी माँ के आँखों में तो सागर उतर आया था |

कंधे पर खिलाया था जिसने अपने लाल को ,
अर्थी का तो  वोझ भी उसी कंधें ने उठाया था |

अभी सुहाग कि सेज के तो फूल मुरझाये नहीं ,
 और चूड़ियों  के टूटने का समय वहाँ आया था | 

भाई ओर बहन के करुण क्रंदन को देख कर ,
अपने किये पे  तो काल भी पछताया था |