मंगलवार, फ़रवरी 28, 2012

चाँदनी रात में.......

अब मेरा दिल तो कुछ पल का मेहमान है ।
आ रहें हैं वह मिलने,आज चाँदनी रात में  ।
अब अंधेरों की किससे मैं शिकायत करूँ ,
लुट रहें हैं यहाँ अब तो चाँदनी रात में ।


रूबरू उनसे मिलना तो मुमकिन नहीं 
अब मिलेंगे मुझे वह ख्वाब ही खवाब में ।
अब तो नींदों से मैं यह गुज़ारिश करूँ ,
जो दिखाए वह हँसी खवाब चाँदनी रात में ।


दो कदम साथ चल कर वह रूठे हैं क्यों 
क्या हुई भूल हमसे बात ही बात में ।
उनकी यादों से मैं यह गुज़ारिश करूँ ,
जो ना अब सतायें मुझे  चाँदनी रात में ।

गुरुवार, फ़रवरी 23, 2012

चालाक कौन ?.

आज मैं बचपन में पढ़ी हुई एक बाल कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ ।अक्सर हम यह सुनते हैं की लोमड़ी चालाक    होती है  मगर यह कहानी कुछ और ही कहती  हैं ।
किसी जंगल में एक शेर और बहुत से जानवर रहते थे । एक दिन शेर ने बोला कि मैं बुढ़ा
हो गया हूँ इसलिए मैं शिकार नहीं कर सकता क्योंकि मैं जंगल का राजा हूँ और आप लोग 
मेरी प्रजा अब यह आपका कर्तव्य बन जाता हैं कि मेरे भोजन का प्रबंध आप लोग करें ।
सभी ने उसकी बात मान ली और एक एक करके रोज उसके पास जाते और शेर उनको खा 
जाता ।सब जानवर लोमड़ी के पास गये और बोले हम सब में तुम ही एक चालाक हो ।अत: 
तुम ही इस समस्या का हल निकालो ।लोमड़ी अपनी तारीफ सुन कर खुश हो गयी । और  
उसने घोषणा कर दी कि कल बह शेर के पास जाएगी । अगले दिन जब लोमड़ी शेर के पास 
देर से पहुंची तो शेर ने गरजना शुरू कर दिया कहाँ थीं तुम? मैं सुबह से भूखा हूँ ।
लोमड़ी ने दयनीय स्वर में कहा मैं तो आपके पास ही रही थी लेकिन रास्ते में मुझे एक 
और शेर मिल गया बस किसी तरह से पीछा छुड़ा कर आपके पास आयी हूँ ।शेर ने कहा  
जंगल का राजा  तो मैं हूँ, दूसरा कहाँ से आया चलो मुझे दिखाओ ।लोमड़ी शेर को लेकर  
कुँए के पास गयी और बोली वह इसमें रहता हैं । शेर ने कुँए में झांक कर देखा और बोला 
इसमें तो कोई नहीं । लोमड़ी से बोला तुम दिखाओ वह कहाँ हैं । जब लोमड़ी और शेर ने 
एक साथ देखा तो दोनों कि परछाईं कुँए के पानी में दिखाई दी ।शेर बोला वह उसको खा 
लेगा और मैं तुमको । शेर ने लोमड़ी को खा लिया ।
अब बताएं चालाक कौन ?..........  
  

रविवार, फ़रवरी 19, 2012

मानव और नदी ............




एक नदी 
पहाड़ों से निकली 
पत्थरों से टकराकर 
राह बदल कर 
नए नए नाम  पाकर 
हंसती कूदती ,
जा मिली 
प्यार के सागर में ।
और एक मानव ,
पाषाण युग से 
निकल कर ।
कंक्रीट के जंगल में रह कर 
बन गया पत्थर , 
खो गया ,
पुन: पथरीली अँधेरी गुफाओं में ।


बुधवार, फ़रवरी 15, 2012

पापा! मुझे क्या बनना है .....(.लघुकथा)

पिता जी प्लेटफार्म पर उदास बैठे थे मैं और बुआ जाती हुई ट्रेन को देख रहे थे। जिसमें   अंजली मुझे हमेशा के लिए छोड़  कर जा रही थी ।मेरे बहुत समझाने बुझाने का उसका पर   कोई असर नहीं हुआ आखिर जीत उसकी ही हुई जाने का निर्णय अंतिम सिद्ध हुआ ।
कुछ देर बाद मै  पिता जी और बुआ को लेकर घर आ गया और अपने कमरें में लेट कर   सोंचने लगा आखिर क्या बदला, कुछ भी तो नहीं मात्र पात्र बदले, उस घटना के जो आज से  पच्चीस साल मेरे पिता जी के साथ हुई थी कारण था पिता की कम आमदनी और घर का  बढ़ता हुआ खर्चा, माँ इस बात को लेकर पिता जी से  अक्सर लड़ती थी। जब पैसा नहीं
पूरे घर का बोझ क्यों उठा रहे हो, अपने भाई और बुआ को से अलग रहो} यह उनको     अच्छा नहीं लगता था । घर जिम्मेदारी को बह अपना कर्तव्य समझते थे । जिसे छोड़ना 
उनके लिए असंभव था ।पिता जी की एक ही रट थी  मुझे बड़ा आदमी बनना है बस बड़ा 
आदमी.....मैंने भी उनकी इस इच्छा को सम्मान दिया और पूरा ध्यान पढाई में लगा 
कर बन गया एक बड़ा आदमी जिस के पास नौकर, चाकर, कोठी, कार और सब कुछ 
था बड़ा आदमी कहलाने के लिए ।कुछ दिन बाद पिता जी इच्छानुसार मेरी शादी हो गयी
मेरे साथ विधवा बुआ का परिवार और पिता जी थे ।कुछ दिन तक सब कुछ सामान्य रहा 
इस बीच  मेरे घर एक पुत्र का आगमन भी हुआ । कुछ दिन बाद अचानक अंजलि ने अलग 
रहने की बात कह कर सबको सकते में ला दिया।फिर शुरू हुआ समझाने बुझाने का चक्र 
लेकिन वह तो अपनी बात से टस से मस नहीं हुई ।उसके इस व्यहार से घर में भूचाल 
ला दिया था । आखिर आज वह हम सबको छोड़ कर चली गयी ।परिवार के सब लोग एक 
दुसरे की और  देख रहे थे कौन है वास्तविक अपराधी ? मै ,पिता जी, बुआ जी या मेरे संस्कार या एक  संयुक्त परिवार की इच्छा .......मेरा  तीन  वर्ष का बेटा मेरी तरफ देख रहा था जिसकी आँखों में एक प्रश्न था पापा मुझे क्या बनना है ...........     
   
  

गुरुवार, फ़रवरी 09, 2012

एक कुत्ते की व्यथा (व्यंग्य)........

एक दिन हमनें ,
अपने शहर की सोती हुई पुलिस जगा दी ।
सौ रुपये देकर ,
थाने में एक हजार की रिपोर्ट लिखवा  दी ।
शाम को पुलिस हमारे घर आई 
साथ में एक  कुत्ता भी लायी ।
कुत्ते ने हमें सूंघा, और हमारे घर को देखा ।
कुत्ता बोला आप हमारे, 
बेईमान होने का फायदा उठाते हो।
अपने शान बढ़ाने के लिए 
चोरी की झूठी रिपोर्ट लिखाते हो । 
तभी उस कुत्ते के अन्दर का कुत्ता जागा।
सीधा थाने की तरफ भागा।
जिसे देख कर हमारा आत्मविश्वास भी जागा ।
यह क्या ! वह लौट कर बापस आया और बोला 
आप क्या सोंचते हैं ?
मै क्या, थानेदार की गिरफ्तारी करूँगा ।
मैंने तो पुलिस का नमक खाया हैं ।
मै क्या? नमकहरामी करूँगा ।
आज मै अपने ओहदे का इस्तेमाल करूँगा ।
इन सडक पर बैठे हुए,
भिखारी को जेल के अंदर करूँगा।
वर्षों से यह हमारे हक मार जाते हैं 
कचरे में पड़ी हुई रोटी
हमसे पहले मार जाते हैं ।
बात रोटी तक तो, हम सहन करते हैं ।
पर अब तो यह हमारा और हमारी नस्ल का
यह अपमान करते हैं ।
अपने को इंसान कहते हैं ।
पर हमारी तरह जीते और हमारी तरह मरते हैं । 

  

शनिवार, फ़रवरी 04, 2012

मतला और एक शेर

वक्त के साथ में कभी कभी,
रिश्ते भी बदल जाते हैं ।
शोहरतें साथ हों अगर तो 
इन्सान भी बदल जाते हैं

यह बदलने का भी ना जाने
यह अजब दस्तूर है कैसा ,
मुसीबतों में देख कर मुझको ,  
अपने भी राह बदल जाते हैं ।