रविवार, सितंबर 21, 2014

यह क्या है ?

इसे किस्मत का करिश्मा मानूँ 
या कहूँ कि उसकी तदवीर थी ऐसी | 


आज नोटों को गिन रहा है वह ,
कल तक जो सिक्कों का हिसाब रखता था 



रविवार, सितंबर 14, 2014

हिंदी एक पुष्प

हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में राजभाषा को समर्पित कविता



 


रंग बिरंगे फूल खिले है  
भाषा के इस उपवन में |
सबकी अपनी सुगंध बसी है
हर मानस के मन में |
मग़र इस उपवन की शोभा को
बस एक ही पुष्प बढ़ाता
नाम पड़ा है हिंदी जिसका 
और जो सबको महकाता  |
अपने रस की कुछ बूंदों को 
जब इसने कविता में डाला 
अमर हो गए कवि देश के 
पन्त प्रसाद और निराला |

  
 


जिसके मन में बसी यह भाषा 
या जो इसको अपनाता |
नहीं ज़रूरत किसी प्रमाण की 
वह सच्चा देश भक्त कहलाता |