बुधवार, अक्तूबर 27, 2010

यथार्थ


झाँक कर देखा खिड़की से
उमड़ते हुए बादलों को
दौड़ कर आँगन में आया | 
और आकाश में बादलों का एक झुंड पाया | 
और शुरू हो गया तलाश का
एक अंतहीन सिलसिला
अचानक खिल उठा चेहरा |
और प्रसन्न हुआ अंतर्मन
क्योंकि मिल गयी थी मुझे ,
मुन्नी की गुड़िया और पत्नी का कंगन
फिर अचानक कुछ सोंच कर डर गया
यथार्थ के धरातल पर गिर गया |
दौड़ कर अन्दर आया
बंद कर ली खिड़की और दरवाजे
कहीं भिगो न दे यह
मेरे तन का एकमात्र कपड़ा |

 (एक पुरानी रचना पुनः  प्रकाशित)  


बुधवार, अक्तूबर 20, 2010

मुझे अच्छा नहीं लगता



खड़ी हो अगर  दीवार  आँगन में
बस किसी तरह मै बर्दाश्त  करता हूँ |
मग़र दिलों के बीच दीवार  का होना ,
ना जाने क्यों, मुझे  अच्छा नहीं लगता  |


लबों पे सजी रहें हमेशा मुस्कराहटें ,
यह दुआ मैंने ख़ुदा से माँगी है |
मग़र किसी की बदहाल हालत पर ,
उसका  मुस्कराना, मुझे अच्छा नहीं लगता |


हर पुरानी बात को भूल जाना चाहिए  
 यह है सबको मशविरा मेरा ,
मग़र किसी के अहसानों को ,
भूल  जाना, मुझे अच्छा नहीं लगता |


 हर शेर में अल्फ़ाज की बंदिश भी हो |
और ख्याल की नजाकत भी 
फिर भी गज़ल  का नाकामयाब ,
हो जाना, मुझे अच्छा नहीं लगता |




|



शुक्रवार, अक्तूबर 15, 2010

शोहरत की धूल


जैसे जैसे हमारी पहचान 
 समाज में बढने लगती है |
वैसे वैसे हमारी रिश्तों की,
चादर सिमटने लगती है |
प्रेम और आत्मीयता के फूलों के रंग  ,
अब धुंधले पड़ने लगे है |
क्योंकि उसमें गरीबी और बदहाली के, 
निशान उभरने लगे है |
आज हमें अपनों की शक्लें की
अनजानी लगने लगी है |
क्योंकि आँखों पे चढ़े चश्में पर 
शोहरत की धूल जमने लगी है |

शुक्रवार, अक्तूबर 08, 2010

एक हास्य कविता , शिव का धनुष


 इंस्पेक्टर आफ स्कूल ने पूछा,
बच्चों यदि तुम्हें अपनी संस्कृति का ज्ञान है
तब यह प्रश्न बहुत ही आसान है |
सीधा सा प्रश्न है  ना तोड़ा ना मरोड़ा है
यह बताओ शिव का धनुष  किसने तोड़ा है
सामने बैठे बच्चे ने उत्तर दिया
अपने यह आरोप लगाकर मुझे कहीं का नहीं छोड़ा है
सत्य तो यह है शिव का धनुष मैंने नहीं तोड़ा है |
तभी पास खड़ा हिन्दी का अध्यापक सामने आता है |
और वह भी उसको निर्दोष बताता है |
मानता हूँ की यह बच्चा बहुत शैतान है ,
मग़र धनुष का तोड़ना इसका नहीं काम है |
उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया
इंस्पेक्टर सीधा प्रिंसिपल के रूम में घुस गया |
प्रिंसिपल ने प्यार से बिठाया और समझाया
खेल में तो बड़े बड़े रिकार्ड टूट जाते है ,
एक आप है जो एक धनुष के टूटने पे चिल्लाते है |
इसका उत्तर हम आपको अभी बताते है ,
अपने क्रीडा अध्यापक को अभी बुलाते है |
तभी एक व्यक्ति अंदर आता है |
अपनी उखड़ी हुई साँसों को लाइन से लगाता ,
और अपने को पी टी आइ बताता है |
उसका उत्तर था श्रीमान जी धनुष विद्या तो हमारे कोर्स में भी नहीं था |
और दावे से कहता हूँ की एक भी धनुष हमारे स्टोर्स में भी नही था |
इंस्पेक्टर सीधा शिक्षा मंत्री के पास गया
अपनी समस्या से अवगत कराया |
मंत्री जी बोले आप यह बात किसी को नहीं बताएँगे|
नहीं तो विरोधी दल  ,चुनाव में इसको मुद्दा बनायेंगे |
हाँ अब अपनी संस्कृति का अपमान
अब और नहीं सह पाएंगे
 जल्दी ही  हर स्कूल में दो दो धनुष भिजवायेगे |
कल ही हम एक फाइल वित्त मंत्री को भिजवाएंगे
अगर आप कहें तो दो चार परसेंट कमीशन आपको दिलवा देंगे |
फाइल वित्त मंत्री के पास गयी
कुछ टिप्पणी के साथ वापस आयी
कृपया धनुष कि अनुमानित लागत बताएं |
 और कृपया तीन कुटेशनभी  भिजवाये
और साथ में तीन प्रश्नों का उत्तर बताएं
धनुष टूटा तो कब ,कहाँ और क्यों
यह देख कर इंस्पेक्टर ज़ोर से चिल्लाया |
और अपने आप पर झल्लाया
आखिर मैंने यह प्रश्न पूछा क्यों  .........

(यह प्रसंग पूर्णतया काल्पनिक है मग़र इसके चरित्र हमारे समाज में है )