झाँक कर देखा खिड़की से
उमड़ते हुए बादलों को
दौड़ कर आँगन में आया |
और आकाश में बादलों का एक झुंड पाया |
और शुरू हो गया तलाश का
एक अंतहीन सिलसिला
अचानक खिल उठा चेहरा |
और प्रसन्न हुआ अंतर्मन
क्योंकि मिल गयी थी मुझे ,
मुन्नी की गुड़िया और पत्नी का कंगन
फिर अचानक कुछ सोंच कर डर गया
यथार्थ के धरातल पर गिर गया |
दौड़ कर अन्दर आया
बंद कर ली खिड़की और दरवाजे
कहीं भिगो न दे यह
मेरे तन का एकमात्र कपड़ा |
(एक पुरानी रचना पुनः प्रकाशित)
बहुत ही गहन चिंतन वाली पोस्ट...
जवाब देंहटाएंगद्य को पूर्णता देती कविता भी सोचने को विवश करती है.
गहरी बात कह दी आपने। नज़र आती हुये पर भी यकीं नहीं आता।
जवाब देंहटाएंबंद कर ली खिड़की और दरवाजे
जवाब देंहटाएंकहीं भिगो न दे यह
मेरे तन का एकमात्र कपड़ा |
बहुत खूबसूरत एहसास हैं ...
Sukh aur dukh dono samete hue hai aapki rachana!
जवाब देंहटाएं6/10
जवाब देंहटाएंसुन्दर अर्थपूर्ण प्रस्तुति
अनकही सी रचना जो बहुत कुछ कह गयी.
bahut hi sundar rachna!
जवाब देंहटाएंसुनील जी ...आपकी ये रचना बहुत उम्दा है .
जवाब देंहटाएंउस्ताद जी भी ऐसा ही मानते है....
सुनील जी बधाई हो ....... .......
बंद कर ली खिड़की और दरवाजे
जवाब देंहटाएंकहीं भिगो न दे यह
मेरे तन का एकमात्र कपड़ा |
गहरी यादों को शब्दों के बहाव ने ेअच्छी रवानगी दी है। शुभकामनायें।
सुंदर भाव लिए अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंसोचने को विवश करती पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंझाँक कर देखा खिड़की से
जवाब देंहटाएंउमड़ते हुए बादलों को
दौड़ कर आँगन में आया |
और आकाश में बादलों का एक झुंड पाया
सुंदर भाव लिए अच्छी कविता।
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जवाब देंहटाएंप्रभावशाली अभिव्यक्ति !
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bahot khoobsurat rachna.
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंankahe ehsaason ko sunna padhna achha laga.... vatvriksh ke liye apni rachna bhejen parichay aur tasweer ke saath rasprabha@gmail.com per
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