(हिंदी कविताओं ,कथाओं और लेखों का एक कोना)
बेहतरीन भाव लिए कविता बधाई
क्या गहरा कटाक्ष किया है तथाकथित मानवीय विकास पर..
बहुत खूब , एक गूढ़ सन्देश देती रचना !
और एक मानव ,पाषाण युग से निकल कर ।कंक्रीट के जंगल में रह कर बन गया पत्थर , waah......bahut khoob.
मनुष्य की प्रगति का पहिया तो उल्टा घूम गया...
क्या बात है परस्पर विरोधी गति
वाह!!!!!बहुत सुंदर कटाक्ष करती प्रस्तुति, सुंदर रचना,....बेहतरीन MY NEW POST ...सम्बोधन...
ATI SUNDER .
पानी और मानव भले ही अपना रास्ता बदल दे पर पत्थर तो वहीं है ॥
वाह बहुत सुन्दर और सार्थक भाव...ओम् नमः शिवाय...
सही कहा आपने, मानव फिर गुफावासी हो गया है।
Bahut,bahut sundar!
मानव पत्त्थर बनता जा रहा है...सच है, बहुत गहरी बात !
नदी में गेयता है और मनुष्य गुलाम हो के रह गया अपनी ही विचारधारा में ... सार्थक रचना है ...
गहरी बात
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
गूढ़ सन्देश देती रचना .....
अच्छी तुलना ॥गहन कटाक्ष
बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं.
पाषाण युग से निकल कर ।खो गया ,पुन: पथरीली अँधेरी गुफाओं में...वाह! बहुत सार्थक रचना...सादर बधाई..
bahut hi achhi man ko chhu gai aapki yah post---poonam
सच तो यह है की जिंदा रहने की होड़ में ...वह प्रकृति से बहुत दूर हो गया है ...और वास्तव में एक किले में क़ैद हो गया है
तथा कथित मानवा स्थिति पर लिखी सशक्त रचना...
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति
वाह! मानव के तथाकथित विकास पर बहुत सुंदर प्रस्तुति..
वाह||बहूत सुंदर ..छोटी सी किंतु...सारगर्भित रचना..बेहतरीन प्रस्तुती...mauryareena.blogspot.com
इसे कहतें हैं व्यंग्य की धार .
बहुत सुन्दर भाविवचारों का बहावलय के माध्यम से,समझाने का चाव....बहुत सुन्दर...
बेहतरीन भाव लिए कविता बधाई
जवाब देंहटाएंक्या गहरा कटाक्ष किया है तथाकथित मानवीय विकास पर..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब , एक गूढ़ सन्देश देती रचना !
जवाब देंहटाएंऔर एक मानव ,
जवाब देंहटाएंपाषाण युग से
निकल कर ।
कंक्रीट के जंगल में रह कर
बन गया पत्थर , waah......bahut khoob.
मनुष्य की प्रगति का पहिया तो उल्टा घूम गया...
जवाब देंहटाएंक्या बात है
जवाब देंहटाएंपरस्पर विरोधी गति
वाह!!!!!बहुत सुंदर कटाक्ष करती प्रस्तुति, सुंदर रचना,....बेहतरीन
जवाब देंहटाएंMY NEW POST ...सम्बोधन...
ATI SUNDER .
जवाब देंहटाएंपानी और मानव भले ही अपना रास्ता बदल दे पर पत्थर तो वहीं है ॥
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर और सार्थक भाव...
जवाब देंहटाएंओम् नमः शिवाय...
सही कहा आपने, मानव फिर गुफावासी हो गया है।
जवाब देंहटाएंBahut,bahut sundar!
जवाब देंहटाएंमानव पत्त्थर बनता जा रहा है...सच है, बहुत गहरी बात !
जवाब देंहटाएंनदी में गेयता है और मनुष्य गुलाम हो के रह गया अपनी ही विचारधारा में ...
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना है ...
गहरी बात
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंपर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
गूढ़ सन्देश देती रचना .....
जवाब देंहटाएंअच्छी तुलना ॥गहन कटाक्ष
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन , बधाई.
हटाएंमेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर आप सादर आमंत्रित हैं.
पाषाण युग से
जवाब देंहटाएंनिकल कर ।
खो गया ,
पुन: पथरीली अँधेरी गुफाओं में...
वाह! बहुत सार्थक रचना...
सादर बधाई..
bahut hi achhi man ko chhu gai aapki yah post---
जवाब देंहटाएंpoonam
सच तो यह है की जिंदा रहने की होड़ में ...वह प्रकृति से बहुत दूर हो गया है ...और वास्तव में एक किले में क़ैद हो गया है
जवाब देंहटाएंतथा कथित मानवा स्थिति पर लिखी सशक्त रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह! मानव के तथाकथित विकास पर बहुत सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंवाह||
जवाब देंहटाएंबहूत सुंदर ..
छोटी सी किंतु...सारगर्भित रचना..
बेहतरीन प्रस्तुती...mauryareena.blogspot.com
इसे कहतें हैं व्यंग्य की धार .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंिवचारों का बहाव
लय के माध्यम से,
समझाने का चाव....बहुत सुन्दर...