पिता जी प्लेटफार्म पर उदास बैठे थे मैं और बुआ जाती हुई ट्रेन को देख रहे थे। जिसमें अंजली मुझे हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही थी ।मेरे बहुत समझाने बुझाने का उसका पर कोई असर नहीं हुआ आखिर जीत उसकी ही हुई जाने का निर्णय अंतिम सिद्ध हुआ ।
कुछ देर बाद मै पिता जी और बुआ को लेकर घर आ गया और अपने कमरें में लेट कर सोंचने लगा आखिर क्या बदला, कुछ भी तो नहीं मात्र पात्र बदले, उस घटना के जो आज से पच्चीस साल मेरे पिता जी के साथ हुई थी कारण था पिता की कम आमदनी और घर का बढ़ता हुआ खर्चा, माँ इस बात को लेकर पिता जी से अक्सर लड़ती थी। जब पैसा नहीं
पूरे घर का बोझ क्यों उठा रहे हो, अपने भाई और बुआ को से अलग रहो} यह उनको अच्छा नहीं लगता था । घर जिम्मेदारी को बह अपना कर्तव्य समझते थे । जिसे छोड़ना
उनके लिए असंभव था ।पिता जी की एक ही रट थी मुझे बड़ा आदमी बनना है बस बड़ा
आदमी.....मैंने भी उनकी इस इच्छा को सम्मान दिया और पूरा ध्यान पढाई में लगा
कर बन गया एक बड़ा आदमी जिस के पास नौकर, चाकर, कोठी, कार और सब कुछ
था बड़ा आदमी कहलाने के लिए ।कुछ दिन बाद पिता जी इच्छानुसार मेरी शादी हो गयी
मेरे साथ विधवा बुआ का परिवार और पिता जी थे ।कुछ दिन तक सब कुछ सामान्य रहा
इस बीच मेरे घर एक पुत्र का आगमन भी हुआ । कुछ दिन बाद अचानक अंजलि ने अलग
रहने की बात कह कर सबको सकते में ला दिया।फिर शुरू हुआ समझाने बुझाने का चक्र
लेकिन वह तो अपनी बात से टस से मस नहीं हुई ।उसके इस व्यहार से घर में भूचाल
ला दिया था । आखिर आज वह हम सबको छोड़ कर चली गयी ।परिवार के सब लोग एक
दुसरे की और देख रहे थे कौन है वास्तविक अपराधी ? मै ,पिता जी, बुआ जी या मेरे संस्कार या एक संयुक्त परिवार की इच्छा .......मेरा तीन वर्ष का बेटा मेरी तरफ देख रहा था जिसकी आँखों में एक प्रश्न था पापा मुझे क्या बनना है ...........
रहने की बात कह कर सबको सकते में ला दिया।फिर शुरू हुआ समझाने बुझाने का चक्र
लेकिन वह तो अपनी बात से टस से मस नहीं हुई ।उसके इस व्यहार से घर में भूचाल
ला दिया था । आखिर आज वह हम सबको छोड़ कर चली गयी ।परिवार के सब लोग एक
दुसरे की और देख रहे थे कौन है वास्तविक अपराधी ? मै ,पिता जी, बुआ जी या मेरे संस्कार या एक संयुक्त परिवार की इच्छा .......मेरा तीन वर्ष का बेटा मेरी तरफ देख रहा था जिसकी आँखों में एक प्रश्न था पापा मुझे क्या बनना है ...........
अक्सर ऐसी समस्याओं में कभी कुछ नहीं बदलता। मेरा मानना तो यह है ,कि यदि रोज़-रोज़ के लड़ाई झगड़े से अलग रहकर बचा जा सकता है, तो अलग रहकर कभी-कभी वार त्यौहार पर मिलकर खुश हो लेना ज्यादा अच्छा है।
जवाब देंहटाएंपरिवार में जैसे संस्कार बच्चे देखेगें और पायेगें,..वैसे ही बड़े होकर करेगें,....
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति,
MY NEW POST ...कामयाबी...
आज -कल की परिस्थिति में संयुक्त परिवार को कायम रखना एक बड़ी चुनौती एवं जिम्मेदारी है ..
जवाब देंहटाएंआज लोगो में बर्दाश्त का माद्दा नहीं है और संयुक्त परिवार में जहाँ एक साथ कई लोग रहते हैं, वहां ऐसा हो ही नहीं सकता कि सबकी दिमाग, पसंद-नापसंद एक जैसे हो... हर कोई अपने मन की चाहता है और इसी कारण आसान सा रास्ता नज़र आता है, अलग होना... हालाँकि स्थितियों में अलग होकर भी बहुत अधिक फर्क नहीं आता है... जहाँ संयुक्त परिवार में कुछ इच्छाएँ पूरी नहीं होती थी, वहीँ अकेले रहने के बाद भी संयुक्त परिवार की खूबियों से महरूम रह जाना पड़ता है..
जवाब देंहटाएंसंयुक्त परिवार का महत्व बहुत देर से समझते हैं लोग ...
जवाब देंहटाएंसंस्कार तो रिले रेस की तरह आगे बढ़ते हैं ..
जवाब देंहटाएंसब अपनी जगह ठीक है, अंजली के भी कुछ व्यक्तिगत सपने रहे होंगे, मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि संयुक्त परिवारों में ऐंसी समस्या अक्सर शादी के बाद बहु के घर आने पर ही उठती है ?
जवाब देंहटाएंमन दुखता है मगर आज हर जगह यही दृश्य है...
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना..
विचारोत्तेजक लघुकथा।
जवाब देंहटाएंमौजूदा दौर का कटु सत्य.... कहानी के रूप में।
जवाब देंहटाएंmarmik.....
जवाब देंहटाएंविचारणीय लघुकथा
जवाब देंहटाएंसमस्या को किसी न किसी तरह से सुलझाया जा सकता है..पर समस्या को छोड़ कर पलायन कर जाना गलत है.....
जवाब देंहटाएंसही है. पहिया हिला है तो चलेगा भी.
जवाब देंहटाएंपता नहीं बच्चे क्या सीख पायेंगे..यथासंभव संयुक्त रूप से रहना चाहिये..
जवाब देंहटाएंआखिर आज वह हम सबको छोड़ कर चली गयी ।परिवार के सब लोग एक
जवाब देंहटाएंदुसरे की और देख रहे थे कौन है वास्तविक अपराधी ? मै ,पिता जी, बुआ जी या मेरे संस्कार या एक संयुक्त परिवार की इच्छा .......मेरा तीन वर्ष का बेटा मेरी तरफ देख रहा था जिसकी आँखों में एक प्रश्न था पापा मुझे क्या बनना है ...........
कथ्य के स्तर पर बहतरीन संवेदना और मर्म को छूती आधुनिक बोध को रेखांकित करती कथा .यह द्वंद्व है परम्परा और आधुनिकता का .
आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा मंच-791:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
अच्छी प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबहुत से प्रश्न उटा रही है यह लघु-कथा .
जवाब देंहटाएंविचारोद्वेलक कथा... सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसादर.
samayik achchi laghu katha.
जवाब देंहटाएंसम्यक् दृष्ठियुक्त व्यक्ति बनने का लक्ष्य ही शेष रह जाता है।
जवाब देंहटाएंअच्छी लघुकथा.
जवाब देंहटाएंभौतिकता हावी हो रही है. आज के युग में आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी बड़ा मुश्किल हो गया है..
जवाब देंहटाएं"एक अच्छा इन्सान बनना बेटा"
जवाब देंहटाएंapnapn aur pyar pr bhautikta havi ho rhi hai......dil ko chuti lghu katha thanks.
जवाब देंहटाएंachchhi laghu katha...:)
जवाब देंहटाएंसवाल तो है।
जवाब देंहटाएंकई सवाल उठाती रचना...आज संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं, लेकिन एक दिन फिर लोग इसकी महत्ता को समझेंगे.
जवाब देंहटाएंअनीता जी ने सही फरमाया. कई घरों की कहानी - मर्म ढूढना ही पढ़ेगा - यथार्थ भाव.
जवाब देंहटाएंयक्ष प्रश्न खड़े करती बेहतरीन लघुकथा। सभी समस्याओं की जड़..लोभ और स्वार्थ ही है। छोटों को छोटा लोभ..बड़ों को बड़ा लोभ।
जवाब देंहटाएंक्या कहा जाए ? ऐसा भी होता है या ऐसा ही होता है..?
जवाब देंहटाएंबहुत मुश्किल है कहना कि कौन गलत था कौन सही...बदलते माहौल में आज यह घर घर की कहानी है..सार्थक प्रश्न उठाती बहुत मर्मस्पर्शी कहानी..
जवाब देंहटाएंकड़वी सच्चाई को लिखा है ... ये पता नहीं समय है या संस्कार या बदलता व्यवहार ...
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