बुधवार, नवंबर 09, 2011

यह सब क्या है ? ( चंद शेर )



कुछ लोग मरने मारने को तैयार हुए बैठे हैं|
और कुछ लोग अपने हांथों में तलवार लिए बैठे हैं, 

ना जानें किस  फ़ितरत के मालिक हैं वह,
जो इस आग में सेंकने को हाथ तैयार लिए बैठे हैं| 

ना जानें कौन से पढ़ी है किताब उन लोगों ने,
जो दहशतगर्दी को भी एक नया नाम दिए बैठे हैं|    

कहीं शर्मसार ना हो जाये यह इंसानियत अपनी ,
हम तो हर लाश के लिए कफ़न तैयार लिए बैठे हैं| 



30 टिप्‍पणियां:

  1. wah bahut khoob ....kaha
    sabhi ek se badhkar ek ........
    yeh bahut rasand aya
    ना जानें किस फ़ितरत के मालिक हैं वह,
    .जो इस आग में सेंकने को हाथ तैयार हुए बैठे हैं| . badhai .

    http/sapne-shashi.blogspot.com

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  2. उफ़ ...ये राजनेता और उनकी राजनीती चाले ......प्रभावशाली लेखनी

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  3. सुनील जी,..आज के हलात पर लाजबाब शेर लिखा ...बहुत खूब ...
    मेरे नए पोस्ट पर स्वागत है.....

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  4. ना जानें किस फ़ितरत के मालिक हैं वह,
    जो इस आग में सेंकने को हाथ तैयार हुए बैठे हैं|
    bahut badhiya sher ...

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  5. कहीं कफ़न तैयार है तो कभी किसी को कफ़न भी मयस्सर नहीं होता!१

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  6. सियासत नफरतों के घाव भरने ही नहीं देती,
    जहाँ भरने को आता है तो मट्ठा डाल देती है!!

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  7. कहीं शर्मसार ना हो जाये यह इंसानियत अपनी ,
    हम तो हर लाश के लिए कफ़न तैयार लिए बैठे हैं|

    बहुत खूब ... विचारणीय

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  8. दहशतग़र्दों के लिए भी कफ़न तैयार रखिएगा, यह इंसानियत का तकाज़ा है.

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  9. कहीं शर्मसार ना हो जाये यह इंसानियत अपनी ,
    हम तो हर लाश के लिए कफ़न तैयार लिए बैठे हैं|

    वाह वाह ! बहुत खूब आपने तो अपना फर्ज निभाने का पूरा पूरा इंतजाम कर लिया है...लेकिन यह मौका ही न आये और अमन फ़ैल जाये.

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  10. sunil bhai ,umda kavita ke liye badhaiya,accha likh rahe ho aap.aabhaar aapka jo nirantar meri rachnaye padhne ka samay nikalhi lete hai.sasneh
    dr.bhoopendra
    rewa

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  11. बहुत खूब ... सभी शेर बेहतरीन हैं ... एक से बढ़ के एक ...

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  12. तारीफ के लिए अल्फाज़ नहीं है....अत्यंत प्रभावी लेखन

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  13. सटीक लिखा है आपने ! एक से बढ़कर एक शेर है! लाजवाब प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.com/

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  14. शानदार और लाजबाब प्रस्तुति ...

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  15. कहीं शर्मसार ना हो जाये यह इंसानियत अपनी ,
    हम तो हर लाश के लिए कफ़न तैयार लिए बैठे हैं|
    bahut khoob

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  16. न जाने कौन सी पढ़ी है किताब उन ने ....बहुत बढ़िया

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  17. न जाने कौन सा जुनून है समझ नहीं आता।

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  18. ना जानें किस फ़ितरत के मालिक हैं वह,
    जो इस आग में सेंकने को हाथ तैयार लिए बैठे हैं|
    ऐसे अवसरवादियों से जान बचे!

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  19. aadarniy sunil ji
    bahut bahut hi vicharniy avam umda lagi aapki prstuti.

    कहीं शर्मसार ना हो जाये यह इंसानियत अपनी ,
    हम तो हर लाश के लिए कफ़न तैयार लिए बैठे हैं|
    bas isi baat ka dar hai-------
    poonam

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  20. ना जानें किस फ़ितरत के मालिक हैं वह,
    जो इस आग में सेंकने को हाथ तैयार लिए बैठे हैं|
    लाजबाब.

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  21. समकालीन समय पर सार्थक कविता

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  22. आदरणीय श्रीसुनीलकुमार जी


    कहीं शर्मसार ना हो जाये यह इंसानियत अपनी ,
    हम तो हर लाश के लिए कफ़न तैयार लिए बैठे हैं|

    आपको ढ़ेरों बधाई है,आपकी यह बहुत सुंदर रचना है।

    मेरा गीत आप के मन को भाया यह मेरा परम सौभाग्य है,धन्यवाद।

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