एक बार फिर चुनावों का बिगुल बज गया तरह तरह के वादों के साथ हमारे नेतागण
मैदान में आ गए |कोई स्विस बैंक से पैसा बापस ला रहा है तो कोई भ्रष्टाचार मिटा रहा
है |कोई देश को एक बार फिर स्वतंत्र कराने की बात कर रहा है तो कोई गढ़े मुर्दे उखाड़
कर, न्याय दिलाने की बात, कुल मिलकर बात ही बात ......
कभी कोई गंगा आरती करती हैं तो कभी कोई अजमेर शरीफ में चादर चढ़ाता है ...
कितना अच्छा लगता है यह सब देख कर कि यहाँ सब धर्म एक सामान हैं |
हमारे नेता हर आदमी को जागरूक कर रहे हैं तुम एक आदमी ही नहीं तुम हिदू हो ,सिख
हो मुसलमान हो या ईसाई |कुछ तो इसके आगे भी समझा रहे हैं | (जो मैं लिख नहीं सकता)कहने का अर्थ यह है एक आम आदमी इनके लिए बस एक वोट बन गया हैं |
क्यों लिए फिरता है वह मजहब के झंडे हाथ में,
क्या मालूम हो गया अपना मजहब उसको या फिर चुनाव आने वाला है |
क्यों सुनाई दे रहीं मस्जिदों से घंटियाँ और मंदिरों से अजान,
या तो कोई सिरफिरा गया है उधर या फिर चुनाव आने वाला है |
यह गुजरात और गोधरा फिर क्यों सुर्ख़ियों में हैं,
या तो अपनी गलतियों का अहसास हुआ है उन्हें या फिर चुनाव आने वाला है |
यह आज कौन बनके हमदर्द मेरे घर आया,
या तो वह शख्स इन्सान बना है अभी या फिर चुनाव आने वाला हैं |
मैदान में आ गए |कोई स्विस बैंक से पैसा बापस ला रहा है तो कोई भ्रष्टाचार मिटा रहा
है |कोई देश को एक बार फिर स्वतंत्र कराने की बात कर रहा है तो कोई गढ़े मुर्दे उखाड़
कर, न्याय दिलाने की बात, कुल मिलकर बात ही बात ......
कभी कोई गंगा आरती करती हैं तो कभी कोई अजमेर शरीफ में चादर चढ़ाता है ...
कितना अच्छा लगता है यह सब देख कर कि यहाँ सब धर्म एक सामान हैं |
हमारे नेता हर आदमी को जागरूक कर रहे हैं तुम एक आदमी ही नहीं तुम हिदू हो ,सिख
हो मुसलमान हो या ईसाई |कुछ तो इसके आगे भी समझा रहे हैं | (जो मैं लिख नहीं सकता)कहने का अर्थ यह है एक आम आदमी इनके लिए बस एक वोट बन गया हैं |
क्यों लिए फिरता है वह मजहब के झंडे हाथ में,
क्या मालूम हो गया अपना मजहब उसको या फिर चुनाव आने वाला है |
क्यों सुनाई दे रहीं मस्जिदों से घंटियाँ और मंदिरों से अजान,
या तो कोई सिरफिरा गया है उधर या फिर चुनाव आने वाला है |
यह गुजरात और गोधरा फिर क्यों सुर्ख़ियों में हैं,
या तो अपनी गलतियों का अहसास हुआ है उन्हें या फिर चुनाव आने वाला है |
यह आज कौन बनके हमदर्द मेरे घर आया,
या तो वह शख्स इन्सान बना है अभी या फिर चुनाव आने वाला हैं |
अच्छा लिखा है.हार्दिक शुभकामना .
जवाब देंहटाएंसबको अपनी कुर्सी प्यारी,
जवाब देंहटाएंफिर वादों की मारामारी।
चुनावी हालात की अच्छी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंसूबे में आ गए चुनाव
जवाब देंहटाएंहर गंगे
है हमाम में सब नंगे
हर गंगे
सटीक बात, हर गंगे
छाई चर्चामंच पर, प्रस्तुति यह उत्कृष्ट |
जवाब देंहटाएंसोमवार को बाचिये, पलटे आकर पृष्ट ||
charchamanch.blogspot.com
सिर्फ एक कुर्सी का सवाल है
जवाब देंहटाएंकिसी विशेष परिस्थिति से प्रभावित आचार विचार स्थायी कहाँ होते हैं!
जवाब देंहटाएंनिश्चित रूप से चुनाव ही आने वाला है. इसमें नेता सभी को उसका धर्म, जाति, जंगल, मोहल्ला, गली तक याद दिलाने लगते हैं. आपने जो नहीं कहा वह उतना ही सच है सुनील जी.
जवाब देंहटाएंसब कुर्सी की महिमा है ..
जवाब देंहटाएंहमने सुना था कि जब मुंडेर पर आकर कोई कौवा कांव -कांव करे तो मेहमान का आगमन हो सकता है ठीक उसी तरह जब गलियों और मुहल्लों में ये लोग आकर प्रलाप करने लगें तो समझिए कि चुनाव आने ही वाला है .
जवाब देंहटाएंयह तो आपने हिमखंड का उपरी हिस्सा बताया नीचे का हि्स्सा यह है कि कांग्रेस के भ्रष्टाचार और उसके बाद सीना जोरी से उन लोगो को मौका मिल गया है जो देश मे नफ़र्त की लहर पैदा करना चाह रहे थे अंजाम क्या होगा पता नही पर कामन सेंस प्रिवेल करेगा यही मै रो दुआ करता हूं।
जवाब देंहटाएंसब कुछ कुर्सी के लिए.....
जवाब देंहटाएंन जाने क्या क्या करने पडते हैं......
बहुत अच्छी प्रस्तुति... गहरा व्यंग्य।
Bahut hi badhiya! Congrats!
जवाब देंहटाएंक्यों सुनाई दे रहीं मस्जिदों से घंटियाँ और मंदिरों से अजान,
जवाब देंहटाएंया तो कोई सिरफिरा गया है उधर या फिर चुनाव आने वाला है |
बहुत सुन्दर कटाक्ष...
सादर बधाई...
वाह ! चुनाव ही आने वाला है जो चारों ओर अपनापन झलकता नजर आ रहा है.. सटीक वयंग्य !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा! सटीक व्यंग्य !
जवाब देंहटाएंमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
यह आज कौन बनके हमदर्द मेरे घर आया,
जवाब देंहटाएंया तो वह शख्स इन्सान बना है अभी या फिर चुनाव आने वाला हैं |
बहुत सटीक व्यंग....बहुत सुन्दर
यह आज कौन बनके हमदर्द मेरे घर आया,
जवाब देंहटाएंया तो वह शख्स इन्सान बना है अभी या फिर चुनाव आने वाला हैं |
bilkul sahi...badhiya prastuti
वाह बहुत खूबसूरत कटाक्ष बही रचना बिल्कुल सटीक निशाना |
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना |
यही तो होता है चुनाव में- कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना :)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिखा हुआ लेख, बिगाड नहीं सकता कोई कुछ इनका
जवाब देंहटाएंSuper like...
जवाब देंहटाएंu just nailed it right on their faces..
अबतो ना जाने क्या-क्या होगा... चुनाव जो आने वाला है...:)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति...
क्यों सुनाई दे रहीं मस्जिदों से घंटियाँ और मंदिरों से अजान,
जवाब देंहटाएंया तो कोई सिरफिरा गया है उधर या फिर चुनाव आने वाला है |
Khoob.... Aisa hi hota hai....
अभी तो चुनाव ही नज़दीक समझिए।
जवाब देंहटाएंयथार्थमय चित्रण ।
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति ।
प्रस्तुत कहानी पर अपनी महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ ।
भावना
बिलकुल सही निशाना साधा है ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंकुछ हाँथ से उसके फिसल गया,
जवाब देंहटाएंवह पलक झपक कर निकल गया.
फिर लाश बिछ गई लाखो की,
सब पलक झपक कर बदल गया,
जब रिश्ते राख में बदल गए,
इंसानों का दिल दहल गया,
में पूँछ पूँछ कर हार गया,
क्यों मेरा भारत बदल गया,
जय हिंद जय माँ भारती .
यह आज कौन बनके हमदर्द मेरे घर आया,
जवाब देंहटाएंया तो वह शख्स इन्सान बना है अभी या फिर चुनाव आने वाला हैं |
बहत खूब ...बधाई