आज अचानक किसी ओल्ड एज होम में जाने का विचार आया , केवल यह देखने के लिए
कैसे रहते हैं वह लोग जिनके अपने, उन्हें यहाँ छोड़ गए हैं |यह विचार कई बार मन में
आया ऐसी कौन सी मज़बूरी होती है जिन माँ बाप, जिहोने उन्हें पाला पोसा जीवन के
सारे सुख दिए| आज वह यहाँ मरने के दिन गिन रहे हैं |जैसे ही अन्दर गया वातावरण बिलकुल सामान्य लगा कुछ लोग पेपर पढ़ रहे थे कुछ टीवी देखने में व्यस्त थे |
कुछ बुढ़ी ओरतें पूजा पाठ में लगीं थीं तो कुछ बात करने में |कुल मिला का एक सामान्य
वातावरण की सारी शर्तें पूरी हो रहीं थीं |
उसी कमरे के एक कोने में बैठे हुए बूढ़े व्यक्ति से मैंने कहा " अंकल नमस्ते "उसने सर
उठा कर हाँ कहा और बोला आप किसी पत्रिका या अखवार से है जो हमारे जीवन पर कोई
कहानी लिख रहे हैं |लिख दीजिये हम यहाँ अपने हाल पर खुश हैं हमें किसी की दया नहीं
चाहिए | तभी उसने बोलना शुरू किया मेरा नाम सुरेन्द्र मोहन शर्मा है मैं एक निजी कंपनी
में हेड क्लर्क के पद से रिटायर हुआ मेरी शादी आज से तीस साल पहले हुई और दो
साल के बाद ही वह दूसरी शादी करके छोड़ कर चली गयी, कारण संस्कारों की दीवार थी |
छोड़ गयी एक बच्चा ....एक कहावत के अनुसार यदि माँ हुई दूसरी तो बाप हुए तीसरे
मैंने शादी नहीं की | दो साल पहले वह भी शादी करके अलग हो गया कारण था बदलता
वक्त ..... और फिर मैं यहाँ आ गया |यह कह कर उसने पीछे रखे टीन के बक्से में
से एक शादी का लाल जोड़ा और एक जोड़ी बचपन के छोटे कपडे निकाल कर दिखाए |
यही वह दो निशानी जब मैं खुश था | मैंने कहा अंकल कोई फोटो नहीं हैं ? वह बोला
थे मगर फाड़ दिए |क्योंकि उनकी फोटो देख कर जब मैं और लोगों को देखता था तो
उनकी शक्ल इस दुनिया के बहुत से लोगों से मिलती थी | जिसे देख कर मैं सहम जाता
था| वैसे मैं यह जानता हूँ कि सब लोग एक जैसे नहीं होते ........और मुस्करा कर
बोला "यह दुनिया बहुत खूबसूरत है" ..............
old age home sankaro ke maran ka dyotak hai
जवाब देंहटाएंटूटे परिवार की तस्वीरें इतनी पीड़ा देने वाली हैं कि उन्हें फाड़ देना ही अच्छा है. यह कहना अच्छा लगता है कि यह दुनिया बहुत खूबसूरत है परंतु किस के लिए. एकाकी बुढ़ापे के लिए तो कतई नहीं.
जवाब देंहटाएंवैसे मैं यह जानता हूँ कि सब लोग एक जैसे नहीं होते ........और मुस्करा कर
जवाब देंहटाएंबोला "यह दुनिया बहुत खूबसूरत है" .......
भावमय करती प्रस्तुति ।
ज़िन्दगी का सत्य है ये भी और एक दूसरा पहलू भी जिसे चाहे अनचाहे स्वीकारना ही पडता है आज्।
जवाब देंहटाएंजो घर ना देखा वो अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंदेखने का अंदाज़ निराला! सुंदर कहानी॥
जवाब देंहटाएंAah! Bahut sashakt rachana!
जवाब देंहटाएंसबसे अधिक कष्ट तब होता है जब आशायें पहली बार टूटती हैं।
जवाब देंहटाएं"क्योंकि उनकी फोटो देख कर जब मैं और लोगों को देखता था तो
जवाब देंहटाएंउनकी शक्ल इस दुनिया के बहुत से लोगों से मिलती थी"
इस एक वाक्य में सारी व्यथा समाई हुई है...मार्मिक पोस्ट.
नीरज
मर्मस्पर्शी लघुकथा!
जवाब देंहटाएंक्योंकि उनकी फोटो देख कर जब मैं और लोगों को देखता था तो
जवाब देंहटाएंउनकी शक्ल इस दुनिया के बहुत से लोगों से मिलती थी---
निर्मम सच्चाई । बुजुर्गों के प्रति हमारी संवेदनाएं कम होती जा रही हैं । जबकि सब जानते हैं , एक दिन सबको इसी राह से गुजरना है ।
वैसे मैं यह जानता हूँ कि सब लोग एक जैसे नहीं होते ........और मुस्करा कर बोला "यह दुनिया बहुत खूबसूरत है" .......
जवाब देंहटाएंबुत अच्छी प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
jano to kai chehre dard ke mare hain , per jeete hain - jeena jo hai
जवाब देंहटाएंचंद्रमौलेश्वर प्रसाद
जवाब देंहटाएंदेखने का अंदाज़ निराला! सुंदर कहानी॥
मर्मस्पर्शी......
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी लघुकथा!...
जवाब देंहटाएंभावभरी कहानी।
जवाब देंहटाएंmarmsparshi lekin katu saty darshati laghu katha.
जवाब देंहटाएंबहुत से मिलते जुलते चेहरे सामने आगये....
जवाब देंहटाएंअंतर्स्पर्शी कथा...
सादर
ओल्ड एज होम पर मैंने एक कहानी लिखी थी
लावा
हे इश्वर!इतनी पीड़ा और ऐसे पत्त्घर दिल लोग...दिल को छु गई कहानी
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हटाएंह्रदयस्पर्शी कहानी,कैसी मर्मान्तक पीड़ा से हर रोज गुजरते होंगे वृद्ध.
जवाब देंहटाएंये जीवन का कैसा सच ?
जवाब देंहटाएंये सच है की दुःख को लेकर बैठना ठीक नहीं होता .. और टूटे जा रहे परिवारों की समस्या खुद को ही सुलझानी होती है ... कभी कभी लगता है क्या विधि भी यही चाहती है ..
जवाब देंहटाएंदिल को छूती हुई मार्मिक कहानी
जवाब देंहटाएंअवाक करने वाली लघुकथा!!स्तब्ध हूँ!!और अंकल जी के बारे में ही सोच रहा हूँ!!
जवाब देंहटाएं"यह दुनिया बहुत खूबसूरत है" ..............
जवाब देंहटाएंसलाम है ऐसी सहनशक्ति वाले बुजुर्गों को।इतनी अच्छी प्रस्तुती के लिये सुनील जी आपको भी धन्यवाद।
सच्चाई को बयां करती मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर व संवेदनशील.
जवाब देंहटाएंप्रकृति न्याय करती है,ऐसा सुना है।
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक रचना है दिल को छु गई.. बधाई...
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट में स्वागत है
वृद्धाश्रम संवेदनशील ह्रदय को मथ कर रख देता है। आपने कथा लिखी। मैं भी लौटकर आया था कभी तो लिखी थी एक कविता। ब्लॉग में है। लिंक दे रहा हूँ पढ़िये आपको अच्छी लगेगी।
जवाब देंहटाएंhttp://devendra-bechainaatma.blogspot.com/2009/11/blog-post_15.html
बिलकुल सही लिखा है आपने...आज अधिक पैसे की लालसा, और झूठे सुख ने नयी पीढ़ी की बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है...लेकिन ऐसे लोग शायद भूल गए हैं की एक दिन वक़्त की चक्की में सब पिसता है.
जवाब देंहटाएंब्हुत कुछ सोचने को मजबूर करती मार्मिक कथा...
जवाब देंहटाएंमाता-पिता को अपनी संतानों की आलोचना करना-सुनना नहीं भाता।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील प्रस्तुति।
सुंदर कहानी हे |बहुत मार्मिक रचना है दिल को छु गई|
जवाब देंहटाएंalag taraha ki prastuti
जवाब देंहटाएंsudha
sansaro ki kami ho gaei hai.
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