बुधवार, नवंबर 16, 2011

ओल्ड एज होम ( लघुकथा)



आज अचानक किसी ओल्ड एज होम में जाने का विचार आया , केवल यह देखने के लिए
कैसे रहते हैं वह लोग जिनके अपने, उन्हें यहाँ छोड़ गए हैं |यह विचार कई बार मन में  
आया ऐसी कौन सी मज़बूरी होती है जिन माँ बाप, जिहोने उन्हें पाला पोसा जीवन के  
सारे सुख दिए| आज वह यहाँ मरने के दिन गिन रहे हैं |जैसे ही अन्दर गया वातावरण    बिलकुल सामान्य लगा कुछ लोग पेपर पढ़ रहे थे कुछ टीवी देखने में व्यस्त थे |
कुछ बुढ़ी ओरतें पूजा पाठ में लगीं थीं तो कुछ बात करने में |कुल मिला का एक सामान्य 
वातावरण की सारी शर्तें पूरी हो रहीं थीं |
उसी कमरे के एक कोने में बैठे हुए बूढ़े व्यक्ति से मैंने कहा " अंकल नमस्ते "उसने सर 
उठा कर हाँ कहा और बोला आप किसी पत्रिका या अखवार से है जो  हमारे जीवन पर कोई 
कहानी लिख रहे हैं |लिख दीजिये हम यहाँ अपने हाल पर खुश हैं हमें किसी की दया नहीं 
चाहिए | तभी उसने बोलना शुरू किया मेरा नाम सुरेन्द्र मोहन शर्मा है मैं एक निजी कंपनी 
में हेड क्लर्क के पद से रिटायर हुआ मेरी शादी आज से तीस साल पहले हुई और  दो   
साल के बाद ही वह दूसरी शादी करके छोड़ कर चली गयी, कारण संस्कारों की दीवार थी |
छोड़ गयी एक बच्चा ....एक कहावत के अनुसार यदि माँ हुई दूसरी तो बाप हुए तीसरे 
मैंने शादी नहीं की | दो साल पहले वह भी शादी करके अलग हो गया कारण था बदलता 
वक्त ..... और फिर मैं यहाँ  आ गया |यह कह कर उसने पीछे रखे टीन के बक्से में 
से एक शादी का लाल जोड़ा और एक जोड़ी बचपन के छोटे कपडे निकाल कर दिखाए |
यही वह दो निशानी जब मैं खुश था | मैंने कहा अंकल कोई फोटो नहीं हैं ? वह बोला 
थे मगर फाड़ दिए |क्योंकि उनकी फोटो देख कर जब मैं और लोगों को देखता था तो  
उनकी शक्ल इस दुनिया के बहुत से लोगों से मिलती थी | जिसे देख कर मैं सहम जाता  
था| वैसे मैं यह जानता हूँ कि सब लोग एक जैसे  नहीं होते ........और मुस्करा कर 
बोला "यह दुनिया बहुत खूबसूरत है" .............. 
  

43 टिप्‍पणियां:

  1. टूटे परिवार की तस्वीरें इतनी पीड़ा देने वाली हैं कि उन्हें फाड़ देना ही अच्छा है. यह कहना अच्छा लगता है कि यह दुनिया बहुत खूबसूरत है परंतु किस के लिए. एकाकी बुढ़ापे के लिए तो कतई नहीं.

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  2. वैसे मैं यह जानता हूँ कि सब लोग एक जैसे नहीं होते ........और मुस्करा कर
    बोला "यह दुनिया बहुत खूबसूरत है" .......
    भावमय करती प्रस्‍तुति ।

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  3. ज़िन्दगी का सत्य है ये भी और एक दूसरा पहलू भी जिसे चाहे अनचाहे स्वीकारना ही पडता है आज्।

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  4. जो घर ना देखा वो अच्छा लगता है।

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  5. देखने का अंदाज़ निराला! सुंदर कहानी॥

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  6. सबसे अधिक कष्ट तब होता है जब आशायें पहली बार टूटती हैं।

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  7. "क्योंकि उनकी फोटो देख कर जब मैं और लोगों को देखता था तो

    उनकी शक्ल इस दुनिया के बहुत से लोगों से मिलती थी"

    इस एक वाक्य में सारी व्यथा समाई हुई है...मार्मिक पोस्ट.

    नीरज

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  8. क्योंकि उनकी फोटो देख कर जब मैं और लोगों को देखता था तो
    उनकी शक्ल इस दुनिया के बहुत से लोगों से मिलती थी---

    निर्मम सच्चाई । बुजुर्गों के प्रति हमारी संवेदनाएं कम होती जा रही हैं । जबकि सब जानते हैं , एक दिन सबको इसी राह से गुजरना है ।

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  9. वैसे मैं यह जानता हूँ कि सब लोग एक जैसे नहीं होते ........और मुस्करा कर बोला "यह दुनिया बहुत खूबसूरत है" .......
    बुत अच्छी प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  10. चंद्रमौलेश्वर प्रसाद
    देखने का अंदाज़ निराला! सुंदर कहानी॥

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  11. बहुत से मिलते जुलते चेहरे सामने आगये....
    अंतर्स्पर्शी कथा...
    सादर
    ओल्ड एज होम पर मैंने एक कहानी लिखी थी
    लावा

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  12. हे इश्वर!इतनी पीड़ा और ऐसे पत्त्घर दिल लोग...दिल को छु गई कहानी

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  13. ह्रदयस्पर्शी कहानी,कैसी मर्मान्तक पीड़ा से हर रोज गुजरते होंगे वृद्ध.

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  14. ये सच है की दुःख को लेकर बैठना ठीक नहीं होता .. और टूटे जा रहे परिवारों की समस्या खुद को ही सुलझानी होती है ... कभी कभी लगता है क्या विधि भी यही चाहती है ..

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  15. दिल को छूती हुई मार्मिक कहानी

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  16. अवाक करने वाली लघुकथा!!स्तब्ध हूँ!!और अंकल जी के बारे में ही सोच रहा हूँ!!

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  17. "यह दुनिया बहुत खूबसूरत है" ..............

    सलाम है ऐसी सहनशक्ति वाले बुजुर्गों को।इतनी अच्छी प्रस्तुती के लिये सुनील जी आपको भी धन्यवाद।

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  18. सच्चाई को बयां करती मार्मिक रचना

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  19. प्रकृति न्याय करती है,ऐसा सुना है।

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  20. बहुत मार्मिक रचना है दिल को छु गई.. बधाई...
    मेरी पोस्ट में स्वागत है

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  21. वृद्धाश्रम संवेदनशील ह्रदय को मथ कर रख देता है। आपने कथा लिखी। मैं भी लौटकर आया था कभी तो लिखी थी एक कविता। ब्लॉग में है। लिंक दे रहा हूँ पढ़िये आपको अच्छी लगेगी।
    http://devendra-bechainaatma.blogspot.com/2009/11/blog-post_15.html

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  22. बिलकुल सही लिखा है आपने...आज अधिक पैसे की लालसा, और झूठे सुख ने नयी पीढ़ी की बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है...लेकिन ऐसे लोग शायद भूल गए हैं की एक दिन वक़्त की चक्की में सब पिसता है.

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  23. ब्हुत कुछ सोचने को मजबूर करती मार्मिक कथा...

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  24. माता-पिता को अपनी संतानों की आलोचना करना-सुनना नहीं भाता।
    संवेदनशील प्रस्तुति।

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  25. राकेश चंदर गुप्ता1 अक्तूबर 2012 को 2:59 pm बजे

    सुंदर कहानी हे |बहुत मार्मिक रचना है दिल को छु गई|

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