मेरे मन में अक्सर यह विचार आता है कि क्या व्यंग्यात्मक कविताएँ सन्देश देने में सक्षम है ?
क्योंकि व्यंग्य के माध्यम से हम गंभीर मुद्दों को आम जनता तक पहुँचाने का प्रयास करते है |
कहीं हमारा यह प्रयास व्यर्थ तो नहीं है या कहाँ तक हम सफल हुए |
आज प्रस्तुत एक पुन :सम्पादित रचना ! देखते है क्या ख्याल है आपका ! हम थे चार यार,
चारों थे बेरोजगार
घूम रहे थे इधर उधर
देखने पहुंचे चिड़ियाघर |
तभी सामने एक चिंपाजी आया
जिसे देख कर हमारा दोस्त चिल्लाया |
यही है हमारे पूर्वज महान
हम सब है इनकी संतान
इस पर चिंपाजी गुर्राया
क्यों हमको अपना पूर्वज बताते हो
क्यों हमारा मजाक उड़ाते हो
यदि तुम हमको नंगे देख कर
हमारी हँसी उड़ाते
पर तुम तो कपड़ों में भी,
हम से ज्यादा नंगे नज़र आते हो|
तभी हमने उसको अपने पास बुलाया
और प्यार से इस तथ्य की,
सत्यता को समझाया|
सभ्यता और विकास की दौड़ में,
हम थोड़ा आगे बढ गए
और आप थोड़ा पिछड़ गए |
इस पर उसने घूर कर हमको देखा
जैसे वह कर लेगा हमारा भक्षण
और वह जोर से चिल्लाया
अगर हम है पिछड़े
तो कहाँ है हमारा आरक्षण
प्रश्न उसका तलवार की तरह
हमारे ऊपर लटका हुआ था |
उत्तर सूखी डबल रोटी की तरह
हमारे गले अटका में हुआ था |
हमने उसे अपने पास,
प्यार से बुलाया और समझाया
आरक्षण का सपना ,
आप का उस दिन साकार होगा |
जिस दिन आप को ,
वोट डालने का अधिकार होगा |
व्यंग्य ज्यादा देर तक मस्तिष्क में ठहरता है। इसलिए वह ज्यादा सार्थक है।
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तांत्रिक शल्य चिकित्सा!
ये ब्लॉगिंग की ताकत है...।
व्यंग सीधे दिल में नस्तर चुभोता है हँसते हुए अशर तो होगा ही . बेहतरीन व्यंग सुनील जी
जवाब देंहटाएंbhut acchi prstuti...
जवाब देंहटाएंbilkul asar karta hai bandhu ||
जवाब देंहटाएंजी हाँ ब्यंग्य की धार सीधा वार करती है!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और अच्छा सन्देश
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया और शानदार प्रस्तुती! व्यंग्य तो सीधा दिल में उतर जाती है ! लाजवाब पोस्ट!
जवाब देंहटाएंमानवीय मूल्यों के हो रहे अनवरत क्षरण को बड़े चुटीले और सहज अंदाज़ में प्रस्तुत किया है आपने .....
जवाब देंहटाएंव्यंग निश्चित तौर पर अपना प्रभाव छोड़ता है....
व्यंग ज्यादा असर करता है ... बहुत अच्छी प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंरचनाएँ व्यंग्यात्मक हों , भावनात्मक हों, समतल या उत्तेजना से पूर्ण ... जिनके पास मन होता है, जिन्हें जानना होता है, वे सारे सन्देश को समझते हैं .... आपकी रचना बहुत कुछ कह गई है
जवाब देंहटाएंसुन्दर व्यंग आसानी से कर दिया है आपने.
जवाब देंहटाएं'आरक्षण' और 'वोट' की राजनीति का खुलासा करते हुए.
यदि'वोट बैंक ' न होता तो 'आरक्षण'भी न होता आज.
बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा. नई पोस्ट जारी की है.
kyaa baat hai.......!
जवाब देंहटाएंbehtareen......karara vyanga.......
hasya, vyangya aur saarthakta ka laajawaab taalmel......
शानदार प्रस्तुति . आजकल की परिस्थिति में व्यंगात्मक रचना एकदम सार्थक प्रतीत होती है.
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (4-7-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
व्यंग अधिक उद्वेलित करता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक व्यंग है...बढ़िया....
जवाब देंहटाएंव्यंग मन में विचार प्रवाह को जन्म देता है .... यक़ीनन
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंनिश्चित तौर पर व्यंग्य का गहरा असर होता है...
itna sunder vyang.....wah.
जवाब देंहटाएंदरअसल अभी तक समाज ने व्यंग्य और हास्य में विभेद करना नहीं सीखा है..इसलिए व्यंग्य से भरपूर कविता सुनकर (कवि सम्मेलनों में) कई लोग यह कहते हुए सुने जाते हैं कि फलां बहुत मजेदार कविता पढ़ रहा था..
जवाब देंहटाएंव्यंग्य बहुत ही परिपक्व मस्तिष्क की चीज़ है!!
वोट बैंक की राजनीति पर अच्छा कहा है. व्यंग्य की शैली बढ़िया लगी.
जवाब देंहटाएंव्यंग्य भी अपनी मार मारता ही है !
जवाब देंहटाएंबिल्कुल संभव हैं। दुर्भाग्य यह है कि 90 फीसदी से ज्यादा व्यंग्यात्मक कविताओं में तीसरे दर्जे के प्रहसन से ज्यादा कुछ होता नहीं।
जवाब देंहटाएंव्यंगात्मन रचनाएं जरूर अपना प्रभाव छोडती हैं ... जैसे की वोट की राजनीति पे लिखी ये रचना ..
जवाब देंहटाएंVyang rachnaon mein yatharth samayee rahti hain isliye we prabhv chhodne ke saksham hain..
जवाब देंहटाएंbahut badiya prastuti..
असरदार... बेहतरीन व्यंग सुनील जी........
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंव्यंग्य रचनाएं मन को गहराई तक प्रभावित करती हैं। जैसे आपकी यह रचना।
जवाब देंहटाएंवोट और आरक्षण के संबंध को उजागर करती यह कविता स्पष्ट संदेश दे रही है।
एक गीत कि पंक्तियाँ याद आ गई-
जवाब देंहटाएंकैसे तीरंदाज हो , सीधा तो कर लो तीर को
तिरछी नजर से देखिये मत , आशिनेदिलगीर को
तिरछी हो तो और भी बढ़ जाये असर में
तासीर ये है जब तेरी सीधी सी नजर में.
व्यंग्य का असर कुछ ज्यादा ही होता है
आपकी रचना अपना असर छोड़ने में पूर्णतया सक्षम है ... बधाई !
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग है सुनील जी ....और व्यंग हमेशा ही चोट करता है आप द्वन्द छोड़ कर लिखये !!
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