अक्सर हम यह कहावत सुनते है की गुरु गुड़ रह गया और चेला शक्कर बन गया | मगर यह वास्तविकता नहीं है |इसका प्रमाण मैं एक दन्त कथा के माध्यम से देना चाहता हूँ |किसी गाँव में एक पहलवान गुरु रहते थे | और अपने अखाड़े के सभी शिष्यों को कुश्ती की शिक्षा दिया करते थे | उनके चेलों ने भी उनकी शिक्षा का लाभ उठा कर दूर दूर तक अपने गुरु का नाम रोशन किया | एक दिन अचानक उनके एक शिष्य को किसी ने बरगला दिया | उससे कहा देखो तुम्हारे गुरु जी ने केवल पाँच गाँव को हराया था और तुमने तो दस गाँव के पहलवानों को हरा दिया | अब अगर तुम अपने गुरु को हरा दो तो तुम गुरु बन जाओगे| तुरंत ही चेला गुरु के पास गया और कुश्ती का प्रस्ताव रखा ,जिसे सुनकर गुरु सकते में आ गए उन्होंने उसे बहुत समझाया की कुश्ती दांव पेंच के साथ साथ शारीरिक बल का भी खेल है और मेरी उम्र सत्तर साल हो गयी है | मैं तुमसे कैसे कुश्ती लडूंगा ? मगर चेला नहीं माना बोला या अपनी पराजय स्वीकार कर लो और आज से मैं तुंहारा गुरु हूँ यह मान लो | जब गुरु ने देखा की चेला किसी तरह से भी समझने को तैयार नहीं है तो उन्होंने कहा आज से तुम अलग और मैं अलग रहूँगा क्योंकि तुमने गुरु शिष्य परम्परा का अपमान किया है | और मुझे तुम्हार प्रस्ताव स्वीकार है मगर हमारी कुश्ती में लाठियों का प्रयोग होगा | चेले ने इसे स्वीकार कर लिया | और दोनों अलग अलग रहने लगे | लेकिन चेले के मन मन एक डर समाया हुआ था इसलिए उसने अपने गुप्तचर लगा दिए ताकि गुरु की तैयारियों का पता चल सके गुप्तचर ने सूचना दी की गुरु दस फ़ुट की लाठी से अभ्यास कर रहे है |चेले ने तुरंत पंद्रह फ़ुटकी लाठी मंगा ली | कुछ दिनों बाद गुप्तचरों ने सूचना दी की गुरु जी लाठियों को तेल में डुबो रहें है |चेले ने भी लाठियों को घी में डुबोना शुरू कर दिया |नियत समय पर दोनों अपने अपने समूह के साथ अखाड़े के आमने सामने खड़े हो गए चेला अहंकार के स्वर में अपनी पंद्रह फ़ुट की लाठी को हवा में लहरा कर, लेकर गुरु को ललकार रहा था | थोड़ी देर के बाद गुरु जी शान्त मुद्रा में खाली हाँथ भीड़ से निकले और चेले से कहा तुमने तो गुरु शिष्य परम्परा का सम्मान नहीं किया लेकिन मैं तुम्हें विजयी होने का आशीर्वाद देकर अवश्य करूँगा |यह कह कर वह चेले के पास आये और अपने कंधें पर टंगे झोले में से एक ढाई फ़ुट का डंडा निकाल कर चेले पर बरसाने शुरू कर दिए जब तक चेला अपनी पंद्रह फ़ुट की लाठी को घुमाता तब तक गुरु जी दस पंद्रह डंडे उसको जड़ दिए | चेला घबरा कर मैदान छोड़ गया |फिर गुरु जी ने चेले को समझाया शारीरिक बल के साथ साथ दांव पेंच भी महत्व रखते है यह ढाई फ़ुट का डंडा मेरा दांव था जो आज चल गया ........................
इसलिए गुरु , गुरु ही है .............................
गुरु तो गुरु ही होता है .. अच्छी कथा
जवाब देंहटाएंमान गए गुरुजी :)
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रसंग।
जवाब देंहटाएंजी इसीलिये कांग्रेस ने बता दिया बाबा को :)लेकिन बहुत अच्छी कथा..
जवाब देंहटाएंBahut badhiya sandesh! Guru waqayi guru hote hain!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत , बधाई
जवाब देंहटाएंगुरु गुरु होता है।
जवाब देंहटाएंवाह! जी वाह! यह भी अच्छी रही.
जवाब देंहटाएंढाई फुट के डंडे से गुरू ने काम तमाम कर दिया चेले का.
शिष्य को गुप्तचर लगाना भारी पड़ गया.
गुरू की महिमा अपरम्पार है.
सुन्दर शिक्षाप्रद प्रस्तुति.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
गुरु और शिष्य के बीच अहंकार ही गुरु बनने नहीं देता है। गुरु तो हमेशा शिष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। अहंकारी शिष्य भूल जाता है कि गुड़ शक्कर तभी बनता है जब लतियाया जाता है। गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुर्साक्षात् परमब्रह्मः तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर ।
जवाब देंहटाएंसादर
सही कहा कि गुरु तो गुरु ही होता है ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति.
रोचक और शिक्षाप्रद दृष्टांत।
जवाब देंहटाएंसचमुच, गुरु आखिर गुरु ही है।
गुरु तो गुरु ही है . गुरु को प्रणाम
जवाब देंहटाएंभाई सुनील जी बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद पोस्ट बधाई
जवाब देंहटाएंकौन सा चेला आजतक गुरु का अपमान कर जीत पाया है, गुरु तो आखिर गुरु होते हैं..
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और प्रेरणादायक रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
हर गुरु चेले से एक न एक दांव छिपाकर रख्ाता ही है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग इस ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो हमारा भी प्रयास सफल होगा!
वाकई यह सच है और रहेगा भी !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ...
बहुत अच्छी कथा...
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरक कथा । इतनी अच्छी कहानी पढाने के लिेये बधाई ।
जवाब देंहटाएंguru aakhri dav apne pass rakhte hai
जवाब देंहटाएंप्रिय सुनील कुमार जी प्रेरनादायी प्रसंग गुरु जी का ढाई फुट का डंडा अब तो चेले को याद ही रहेगा और गुरु गुड ही रहे चेला शक्कर हो गया शायद भूल जाये --
जवाब देंहटाएंशुक्ल भ्रमर ५
प्रिय सुनील कुमार जी अभिवादन और हार्दिक अभिनन्दन आप का रस रंग -भ्रमर का में -
बेवफाई आप को भायी-और आप का समर्थन मिला -
आभार
शुक्ल भ्रमर ५
आदरणीय सुनील कुमार जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
बहुत बढ़िया गुरु तो गुरु ही होता है ...
......अच्छी कहानी पढाने के लिए बधाई ।
वाह, मान गए कि गुरु आखिर गुरु ही होता है... तब तो वह कहावत किसी गुरु ने ही अपने शिष्य की कामयाबी पर खुश होकर प्रेम से गढ़ दी होगी.
जवाब देंहटाएंइसीलिए तो बिल्ली को शेर की मौसी कहा जाता है जिसने सारे डाव शेर को सिखाये तब शेर उसे ही खाने दौड़ा ,बिल्ली पेड़ पर चढ़ गई .यही तो उसका गुरु दाव था .
जवाब देंहटाएंbahut khub....
जवाब देंहटाएंवाह गुरू वाह!!
जवाब देंहटाएंसही बात है गुरू गुरू ही होते हैं। रोचक बोध कथा\
जवाब देंहटाएंसुन्दर सन्देश देती हुई बहुत बढ़िया कथा ! प्रेरणादायक प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/