शनिवार, जुलाई 23, 2011

गुरु आख़िर गुरु है..................


अक्सर हम यह कहावत सुनते है की गुरु गुड़ रह गया और चेला शक्कर बन गया | मगर यह वास्तविकता नहीं है |इसका प्रमाण मैं एक दन्त कथा के माध्यम से देना चाहता हूँ |किसी गाँव में एक पहलवान गुरु रहते थे | और अपने अखाड़े के सभी शिष्यों को कुश्ती की शिक्षा दिया करते थे | उनके चेलों ने भी उनकी शिक्षा का लाभ उठा कर दूर दूर तक अपने गुरु  का नाम रोशन किया | एक दिन अचानक उनके एक शिष्य को किसी  ने  बरगला दिया | उससे कहा देखो तुम्हारे गुरु जी ने केवल पाँच गाँव को  हराया  था और तुमने तो दस गाँव के पहलवानों को हरा दिया | अब अगर तुम अपने गुरु को हरा दो तो  तुम गुरु बन जाओगे| तुरंत ही चेला गुरु के पास गया और कुश्ती का प्रस्ताव रखा ,जिसे सुनकर गुरु सकते में आ गए उन्होंने उसे बहुत समझाया की कुश्ती  दांव पेंच के साथ साथ शारीरिक बल का भी खेल है और मेरी उम्र सत्तर साल हो गयी है | मैं तुमसे कैसे कुश्ती लडूंगा ? मगर चेला नहीं माना बोला या  अपनी पराजय स्वीकार कर लो और आज से मैं तुंहारा गुरु हूँ यह मान लो | जब गुरु  ने देखा की चेला किसी तरह से भी समझने को तैयार नहीं है तो उन्होंने कहा आज से तुम अलग और मैं अलग रहूँगा  क्योंकि तुमने गुरु शिष्य परम्परा का अपमान किया है | और मुझे तुम्हार प्रस्ताव स्वीकार है मगर हमारी कुश्ती में लाठियों का प्रयोग होगा | चेले ने इसे स्वीकार कर लिया | और दोनों अलग अलग रहने लगे | लेकिन चेले के मन मन एक डर समाया हुआ था इसलिए उसने अपने गुप्तचर लगा दिए ताकि गुरु की तैयारियों का पता चल सके गुप्तचर ने सूचना दी की गुरु दस  फ़ुट की लाठी से अभ्यास कर रहे है |चेले ने तुरंत पंद्रह  फ़ुटकी लाठी मंगा ली | कुछ दिनों बाद गुप्तचरों ने सूचना दी की गुरु जी लाठियों को तेल में डुबो रहें है |चेले ने भी लाठियों को घी में डुबोना शुरू कर दिया |नियत  समय पर दोनों अपने अपने समूह के साथ  अखाड़े के आमने सामने खड़े हो गए चेला  अहंकार के स्वर में  अपनी पंद्रह फ़ुट की लाठी को हवा में लहरा कर, लेकर गुरु को ललकार रहा था | थोड़ी देर के बाद गुरु जी शान्त मुद्रा में  खाली हाँथ भीड़ से निकले और चेले से कहा तुमने  तो गुरु शिष्य परम्परा का सम्मान नहीं किया लेकिन मैं तुम्हें विजयी होने का आशीर्वाद देकर अवश्य करूँगा |यह कह कर वह चेले के पास आये और अपने कंधें पर टंगे झोले में से एक ढाई फ़ुट का डंडा निकाल कर चेले पर बरसाने शुरू कर दिए जब तक  चेला अपनी पंद्रह फ़ुट की लाठी को घुमाता तब तक गुरु जी दस पंद्रह डंडे उसको जड़ दिए | चेला घबरा कर मैदान छोड़ गया |फिर गुरु जी ने चेले को समझाया शारीरिक बल के साथ साथ दांव पेंच भी महत्व रखते है यह ढाई फ़ुट का डंडा मेरा दांव था जो आज चल गया ........................
इसलिए गुरु , गुरु ही है .............................



 

31 टिप्‍पणियां:

  1. जी इसीलिये कांग्रेस ने बता दिया बाबा को :)लेकिन बहुत अच्छी कथा..

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह! जी वाह! यह भी अच्छी रही.
    ढाई फुट के डंडे से गुरू ने काम तमाम कर दिया चेले का.
    शिष्य को गुप्तचर लगाना भारी पड़ गया.
    गुरू की महिमा अपरम्पार है.

    सुन्दर शिक्षाप्रद प्रस्तुति.
    आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

    जवाब देंहटाएं
  3. गुरु और शिष्य के बीच अहंकार ही गुरु बनने नहीं देता है। गुरु तो हमेशा शिष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। अहंकारी शिष्य भूल जाता है कि गुड़ शक्कर तभी बनता है जब लतियाया जाता है। गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुर्साक्षात् परमब्रह्मः तस्मै श्री गुरुवे नमः।।

    जवाब देंहटाएं
  4. सही कहा कि गुरु तो गुरु ही होता है ...
    बेहतरीन प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  5. रोचक और शिक्षाप्रद दृष्टांत।
    सचमुच, गुरु आखिर गुरु ही है।

    जवाब देंहटाएं
  6. गुरु तो गुरु ही है . गुरु को प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  7. भाई सुनील जी बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद पोस्ट बधाई

    जवाब देंहटाएं
  8. कौन सा चेला आजतक गुरु का अपमान कर जीत पाया है, गुरु तो आखिर गुरु होते हैं..

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर और प्रेरणादायक रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    जवाब देंहटाएं
  10. हर गुरु चेले से एक न एक दांव छिपाकर रख्‍ाता ही है।

    जवाब देंहटाएं
  11. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग इस ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो हमारा भी प्रयास सफल होगा!

    जवाब देंहटाएं
  12. वाकई यह सच है और रहेगा भी !
    शुभकामनायें ...

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत प्रेरक कथा । इतनी अच्छी कहानी पढाने के लिेये बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  14. प्रिय सुनील कुमार जी प्रेरनादायी प्रसंग गुरु जी का ढाई फुट का डंडा अब तो चेले को याद ही रहेगा और गुरु गुड ही रहे चेला शक्कर हो गया शायद भूल जाये --
    शुक्ल भ्रमर ५


    प्रिय सुनील कुमार जी अभिवादन और हार्दिक अभिनन्दन आप का रस रंग -भ्रमर का में -
    बेवफाई आप को भायी-और आप का समर्थन मिला -
    आभार
    शुक्ल भ्रमर ५

    जवाब देंहटाएं
  15. आदरणीय सुनील कुमार जी
    नमस्कार !
    बहुत बढ़िया गुरु तो गुरु ही होता है ...
    ......अच्छी कहानी पढाने के लिए बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  16. वाह, मान गए कि गुरु आखिर गुरु ही होता है... तब तो वह कहावत किसी गुरु ने ही अपने शिष्य की कामयाबी पर खुश होकर प्रेम से गढ़ दी होगी.

    जवाब देंहटाएं
  17. इसीलिए तो बिल्ली को शेर की मौसी कहा जाता है जिसने सारे डाव शेर को सिखाये तब शेर उसे ही खाने दौड़ा ,बिल्ली पेड़ पर चढ़ गई .यही तो उसका गुरु दाव था .

    जवाब देंहटाएं
  18. सही बात है गुरू गुरू ही होते हैं। रोचक बोध कथा\

    जवाब देंहटाएं
  19. सुन्दर सन्देश देती हुई बहुत बढ़िया कथा ! प्रेरणादायक प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं