तंगहाली का एक पत्थर जो आकर मेरे आँगन में गिरा ,
ख्वाहिशों को अपाहिज़ और ज़ज्बों को लंगड़ा कर गया |
जो तफ़्सील से सुना रहा था ज़माने की दास्ताँ ,
वह अपने दिल की बात बस इशारों में कह गया |
दो चार शेर क्या पढ़ दिए, मैंने उसकी शान में ,
रियाया समझ कर अपनी, वह मुझपे राज कर गया |
मुहब्बत क्या मिली उसको वह खुद को दौलतमंद समझ बैठा ,
एक दिन तो वह अमीर ए शहर को भी नज़र अंदाज़ कर गया |
ना जाने अपने कलाम में, मैंने ऐसा क्या पढ़ दिया ,
मुझे इतनी मिली दाद कि मै खुद हैरान रह गया |
bhut hi pyar i gazal hai...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंKamaal kaa likha hai!
जवाब देंहटाएंGazab ...likha hai sir! Gazal Bahut pasand aayee.
जवाब देंहटाएंपहली दो पंक्तिया ..पूरी ग़ज़ल की जान है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है खूब likha hai
bahut hi achchhi gazal ..bahut hi khoob likha hai aapne...
जवाब देंहटाएंशानदार दिल को छूती गज़ल्………और पहला शेर तो कमाल है।
जवाब देंहटाएंतंगहाली का पत्थर ख्वाहिशों को अपाहिज कर गया और एक और सपने पर ताला लगा गया ....
जवाब देंहटाएंशानदार गजल,
जवाब देंहटाएंसाभार-
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
जमाने की बात बडचढ कर बताई और अपनी बात इशारों में कह गया । बहुत सुन्दर । अच्छा ये भी बहुत बढिया कि उनकी शान में कुछ कह दिया तो मालिक ही बन गया । यह उसकी गलती न थी जब मोहब्बत मिलती है तो ऐसा ही होता है सौरी ऐसा ही होता होगा । अब आपके इस शेर पर मैं कितनी दाद दूं हैरान मत होइयेगा
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंखुबसुरत रचना। बधाई के पात्र है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी गजल कही है।
जवाब देंहटाएं---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत किसे है?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
बेहतरीन पंक्तियाँ ..
जवाब देंहटाएंना जाने अपने कलाम में, मैंने ऐसा क्या पढ़ दिया ,
जवाब देंहटाएंमुझे इतनी मिली दाद कि मै खुद हैरान रह गया |
bahut khoob .aabhar
बहुत बढ़िया ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंक्या सुनाई बदलते मुजाज़ की कविता
जवाब देंहटाएंदाद देने वाला भी दाद देते देते डर गया :)
Beautiful ghazal ! very thoughtful.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल. सुंदर विचार.
जवाब देंहटाएंगजल में भाव पूरी तन्मयता से अभिव्यक्त हुए हैं ...अंतिम शेर लाजबाब है ....आपका आभार
जवाब देंहटाएंसुनील जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी ग़ज़ल है।
हर शेर लाजवाब।
वाह वाह सुनील जी, कमाल की गजल रच डाली।
जवाब देंहटाएंआभार
वाह, क्या खूब !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंek bahut khubsoorat ghazal.........
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है ,सुनील जी,वाह
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी रचना है
जवाब देंहटाएंअच्छी और प्यारी गजल
जवाब देंहटाएंमुहब्बत क्या मिली उसको वो खुद को दौलतमंद समजने लगा ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ....
आभार
तृप्ती
बहुत खूब ... रियाया समझ कर राज कर गया .... ऐसा ही होता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !मुबारक भाई साहब ताज़ा ग़ज़ल .
जवाब देंहटाएंसी हैरान्गियाँ भी क्या खूब होती हैं -उम्दा अंदाजे बयां !
जवाब देंहटाएंहमारी भी दाद कबूल करें .....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहम बेखुदी में उनको पुकारे चले गए। शायद इसी बेखुदी में कुछ हैरान करने वाली बात लिख गए होंगे। अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंवाह ! क्या बात है! बेहद ख़ूबसूरत, शानदार और ज़बरदस्त ग़ज़ल लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम!
जवाब देंहटाएंना जाने अपने कलाम में, मैंने ऐसा क्या पढ़ दिया ,
जवाब देंहटाएंमुझे इतनी मिली दाद कि मै खुद हैरान रह गया |
वाह ... यह तो बहुत ही अच्छा लिखा है ।
achhi lagi gajal.....
जवाब देंहटाएंमुहब्बत क्या मिली----- वाह बहुत खूब। पूरी गज़ल अच्छी लगी। बधाई।
जवाब देंहटाएंsunil ji aapke prerak kavya sandesh bahut kuchh kah jate hain . bahut bahut abhar ji
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंदाज़
जवाब देंहटाएंsalt likit
जवाब देंहटाएंsalt likit
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