गुरुवार, जून 02, 2011

आशा और निराशा


जब जब दस्तक देती मेरे ,
मन के दरवाजे पर आशा |
खुलते पट जब दरवाजों के
मिलती सामने उसे निराशा |



नहीं किया निराश कभी मैंने ,
चौखट पर खड़ी हवाओं को
जला दिए है दीप अश्क के ,
बस उनके लिए बुझाने को |



26 टिप्‍पणियां:

  1. खुलते पट जब दरवाजे के
    मिलती सामने उसे निराशा !
    बिलकुल सही कहा है !
    achi rachna .......

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  2. आपकी आशावादी सोच को सलाम ........बहुत खूब

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  3. सकारात्मक सोच के साथ सुन्दर कविता.

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  4. खुबसुरत भावों से सजी बेहतरीन रचना। आभार।

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  5. सकारात्मक भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...बधाई.

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  6. आशा की आशा ही फिजूल है.. आगंतुक के लिए पट खोलें और आगत का स्वागत करें.. निराशा भी आशा में बदल जायेगी!!

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  7. आशावादी सोच को संचारित करते भाव.....सुंदर पंक्तियाँ

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  8. हम्म...अपनी सहज सकारात्मक्ता को नहीं छोड़ना चाहिये..उम्दा विचार ..बढ़िया रचना.

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  9. आशा का दामन कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए , अच्छी रचना बधाई

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  10. bhut ashavaadi apki panktiya... jivan me ek nayi asha bharti apki rachna... bhut khub..

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  11. सुंदर पंक्तियां है , बहुत खूबसूरत

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  12. बहुत सुन्दर रचना है ऐसे ही लिखते रहें

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  13. बहुत सुंदर प्रस्तुति जी धन्यवाद

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  14. दीप जलाए जा आशा का
    तम मिटेगा निराशा का :)

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  15. sunil bhai ji
    aaj subsh subsh aapki komal v aashhvaadita se bhat ati sunadar rachna padhne ko mili.
    sach! bahut hi suhdar bhavo ko samete hue hai aapki kacita
    ssadar naman
    vbadhai ke saath
    poonam

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  16. जला दिए हैं दीप अश्क के, उनके लिए बुझाने को ...

    बहुत खूब इस लय में आनंद आ गया ! शुभकामनायें आपको !

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  17. सुनील भाई, दूसरा कता बहुत प्‍यारा बन पडा है, मजा आ गया पढकर।

    एक छोटी सी सलाह देना चाहूंगा, कॉमा और फुलस्‍टाप के पहले स्‍पेस न छोडा करें, बहुत भद्दा लगता है देखने में।

    ---------
    कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
    ब्‍लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।

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  18. नहीं किया निराश कभी मैंने ,
    चौखट पर कड़ी हवाओं को ,
    बेहतरीन शब्द प्रयोग ,सुन्दर भाव ,रागों का विस्तार .बधाई , साभार .

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