मौज मे लिख गया नाराज न होना भाई..ऐसे दृश्य मैं यहां रोज देखता हूँ। हालांकि सत्य तो यही है कि दारू पी कर सड़क पर लोटने वाला भी दर्द से कराह रहा होता है। नशे में खुद को भुला रहा होता है।
यह शख्स जो प्यास से, बेहोश हो कर गिर पड़ा है| उसने तो अपने आँखों में, समुन्दर छिपा के रखा है| बेहद सशक्त रचना ..सुनील कुमार जी अच्छे बिम्ब ला रहें हैं जीवन जगत सुर आम आदमी के खाब के .
दारू पी कर तो नहीं लेटा है कवि जी..?
जवाब देंहटाएंमौज मे लिख गया नाराज न होना भाई..ऐसे दृश्य मैं यहां रोज देखता हूँ। हालांकि सत्य तो यही है कि दारू पी कर सड़क पर लोटने वाला भी दर्द से कराह रहा होता है। नशे में खुद को भुला रहा होता है।
जवाब देंहटाएंBehtreen Panktiyan ...
जवाब देंहटाएंयह शख्स जो प्यास से,
जवाब देंहटाएंबेहोश हो कर गिर पड़ा है|
उसने तो अपने आँखों में.
समुन्दर छिपा के रखा है |
बेहद मार्मिक ... सीधे मन पर चोट करती हुई पंक्तियाँ
कवि का ह्रदय दारू पीकर पड़े हुए व्यक्ति में भी अभिव्यक्ति खोज लेता है... मार्मिक!!
जवाब देंहटाएंइन बेघरोबार लोगों की तकलीफ का क्या कहना.
जवाब देंहटाएंगहन संवेदना। ओढ रखा है की बजाय ‘ओढा है’ शायद अधिक उपयुक्त होता। [डिस्क्लेमर् : मैं कोई कवि नहीं हूं:)]
जवाब देंहटाएंइस तरह की तस्वीरें आम हैं।
जवाब देंहटाएंहर शहर में ऐसे लोग दिख जाते हैं....
आपने इसे कैमरे में कैद कर इसकी तकलीफों को आवाज दी... आभार
हृदयस्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंअच्छी पंक्तिया लिखी है बधाई
जवाब देंहटाएंनीचे धरती, ऊपर आसमान,
जवाब देंहटाएंशेष स्वयं करना संधान।
बहुत खूबसूरत क्षणिका सीधे दिल को छूती.
जवाब देंहटाएंआपकी दृष्टि घटनाओं के मर्म तक पहुंचती है, यह कविता इसका प्रमाण है।
जवाब देंहटाएंश्री चन्द्रमौलेश्वर प्रसाद जी ,आपके आदेश का पालन कर लिया है| भविष्य में भी स्नेह बनाये रखिये| आभार.......
जवाब देंहटाएंअधिकांश जनता की यही कहानी है और कोई उपाय भी नही दिखाई देता, बहुत ही मार्मिक दॄष्य.
जवाब देंहटाएंरामराम
आपकी संवेदना अपनी जगह सही है ।
जवाब देंहटाएंदिल्ली के फुटपाथों पर पड़े इस तरह के चरसी आम बात है ।
लेकिन जिम्मेदार कौन है ? सोचने की बात है ।
http://premchand-sahitya.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंयदि आप को प्रेमचन्द की कहानियाँ पसन्द हैं तो यह ब्लॉग आप के ही लिये है |
यदि यह प्रयास अच्छा लगे तो कृपया फालोअर बनकर उत्साहवर्धन करें तथा अपनी बहुमूल्य राय से अवगत करायें |
बहुत खूबसूरत भाव सुन्दर पँक्तियाँ......
जवाब देंहटाएंबहुत ही कम शब्दों में मार्मिक लेख प्रस्तुत किया है आपने
जवाब देंहटाएं..........बधाई .....
मत कहो कि यह शख्स ,
जवाब देंहटाएंसड़क पर नंगा पड़ा है |
धरती बिछौना है इसका ,
इसने तो आसमान ओढ़ा है|
बहुत मार्मिक पंक्तियां...सटीक चित्र...
मत कहो कि यह शख्स ,
जवाब देंहटाएंसड़क पर नंगा पड़ा है |
धरती बिछौना है इसका ,
इसने तो आसमान ओढ़ा है|
ek marmik taswwer ubhaarti rachna
मार्मिक पंक्तिया....
जवाब देंहटाएंसंवेदना से भरपूर कविता भाई सुनील जी बधाई
जवाब देंहटाएंohh gud one Sunil ji..... bahaut deep..
जवाब देंहटाएंसच्चाई है हर उस शख्स की जो फुटपाथ को घर बना कर रहता है..
जवाब देंहटाएंचंद पंक्तियों में पूरी बात कही है आपने..
आभार
तेरे-मेरे बीच पर आपके विचारों का इंतज़ार है...
गहन भावमय करते शब्द ।
जवाब देंहटाएंयह शख्स जो प्यास से,
जवाब देंहटाएंबेहोश हो कर गिर पड़ा है|
उसने तो अपने आँखों में,
समुन्दर छिपा के रखा है|
बेहद सशक्त रचना ..सुनील कुमार जी अच्छे बिम्ब ला रहें हैं जीवन जगत सुर आम आदमी के खाब के .
सुन्दर कविता !
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली पोस्ट ! संवेदनशील अंतर की गहराई से निकले शब्द !
जवाब देंहटाएंमत कहो कि यह शख्स ,
जवाब देंहटाएंसड़क पर नंगा पड़ा है |
धरती बिछौना है इसका ,
इसने तो आसमान ओढ़ा है|
वाह,बहुत संवेदनात्मक अभिव्यक्ति.
यह शख्स जो प्यास से,
जवाब देंहटाएंबेहोश हो कर गिर पड़ा है|
उसने तो अपने आँखों में,
समुन्दर छिपा के रखा है
....बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति..
क्या बात है सर जी ! बेहद मार्मिक और हर्दयस्पर्शी रचना!
जवाब देंहटाएंप्यास और समुंदर - इन दो शब्दों ने निस्सार जीवन की सार बात कह दी.
जवाब देंहटाएंबहुत पहले पढ़ा था ,
जवाब देंहटाएंवियोगी होगा पहले कवी, आह से उपजा होगा गान
आपके इसे मार्मिक कविता को पढ़ के वो पंक्तिया बिलकुल सटीक लगाती हैं
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मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है
ड्रैकुला को खून चाहिए, कृपया डोनेट करिये! पार्ट-1
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यह शख्स जो प्यास से,
जवाब देंहटाएंबेहोश हो कर गिर पड़ा है|
बेहद मार्मिक और हर्दयस्पर्शी रचना!
वाह रे फ़कीर भाई। सोते रहो ऐसे ही…क्योंकि यही जगह है सही
जवाब देंहटाएंउसने तो अपने आँखों में,
जवाब देंहटाएंसमुन्दर छिपा के रखा है|
bhut acha.
हृदयस्पर्शी रचना।
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