कोहरे की बिछी चादर अब सिमटने लगी है | क्योंकि सूरज की किरणें , अब विखरने लगी है | मुंदी हुई अपनी आँखों को खोलो , और खोजो , अपना गंतव्य क्योंकि दे रही है दस्तक एक नई सुबह...आशावाद के पंख खोलती ,आश्वश्त करती कल को रचना .
एक नयी सुबह हमेशा साथ लाती है नयी उम्मीद एवं आशायें बहुत अच्छी रचना।मेरे ब्लाँग पर आने और सुझाव देने के लिये धन्यवाद सुनिल जी। मेरी कविता तुम्हारी बारी जो मई में लिखी है उसे अवश्य पढिये आपको अच्छी लगेगी।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है! यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
सुनील जी कविताये कभी पुराणी नहीं होती, विषय पुराने हो सकते है , कविता में आपकी वही ताजगी है बधाई
जवाब देंहटाएंसुनील जी !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ||
साधना में लगे रहो ||
बधाई ||
सुबह की प्रतीक्षा है, हर रात को।
जवाब देंहटाएंपुरानी रचना है पर आज भी वही ताजगी है रचना में
जवाब देंहटाएंnai ummeeden jagati rachna
जवाब देंहटाएंबहुत संक्षिप्त मगर अच्छी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंक्या बात है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकोहरे की बिछी चादर अब सिमटने लगी है
जवाब देंहटाएंक्योंकि सूरज की किरणें, अब विखरने लगी है ...
बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति...
आशा की किरण जगाती हैं आपकी यह पंक्तियां ... आभार
जवाब देंहटाएंउठो! जागो!! एक अद्भुत दृश्य!!
जवाब देंहटाएंक्योंकि दे रही है
जवाब देंहटाएंदस्तक
एक नई सुबह...umeedo ke sath.... very nice panktiya...
बेहद उत्कृष्ट रचना ...
जवाब देंहटाएंBahut,bahut sundar rachana!
जवाब देंहटाएंकोहरे की बिछी चादर
जवाब देंहटाएंअब सिमटने लगी है |
क्योंकि सूरज की किरणें ,
अब विखरने लगी है |
मुंदी हुई अपनी
आँखों को खोलो ,
और खोजो ,
अपना गंतव्य
क्योंकि दे रही है
दस्तक
एक नई सुबह...आशावाद के पंख खोलती ,आश्वश्त करती कल को रचना .
आज भी वही ताजगी है इस पुरानी रचना में .....
जवाब देंहटाएंआशा की नई किरण जगाती सुंदर कविता॥
जवाब देंहटाएंएक नयी सुबह हमेशा साथ लाती है नयी उम्मीद एवं आशायें
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना।मेरे ब्लाँग पर आने और सुझाव देने के लिये
धन्यवाद सुनिल जी। मेरी कविता तुम्हारी बारी जो मई में लिखी है
उसे अवश्य पढिये आपको अच्छी लगेगी।
आशा का संदेसा देती एक सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
कल 12/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
sundar rachna.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ही पुनर्प्रस्तुत हो सकती है.बेशक बहुत ही उम्दा रचना है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..अति सुन्दर सन्देश ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना है| पुरानी है तो क्या
जवाब देंहटाएंआशा
ओल्ड इस गोल्ड।
जवाब देंहटाएं------
क्यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
गंतव्य - वही तो ढूंढ रहे हैं सभी - हाहाहाह
जवाब देंहटाएंहकीकत बयान करती यह पोस्ट अच्छी लगी...शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही बढि़या ।
जवाब देंहटाएंsundar sandesh deti badhiya rachana.
जवाब देंहटाएंसार्थक और यथार्थ ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचना है......सुन्दर....
जवाब देंहटाएंमुंदी हुई अपनी
जवाब देंहटाएंआँखों को खोलो ,
और खोजो ,
अपना गंतव्य
prenarthak prastuti ke lie aapka abhar.
ये अहसास तो बना रहना चाहिए ....
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