बस स्टेंड के पास एक चाय की छोटी सी दुकान जिसमें केवल चाय और बिस्कुट के
सिवा कुछ भी नहीं इसके अतिरिक्त दो बेंच और अलग अलग भाषाओँ के तीन अख़बार
इन सब का मालिक है शंकर हँसमुख| नाम तो केवल शंकर था हँसमुख तो उसके व्यवहार
को देख कर इस महानगर के लोगो ने लगा दिया था | शंकर की इंट्री बीस साल पहले इस
शहर में छोटू यानि होटल में काम करने वाले बच्चों के रूप में हुई थी | आज वह एक तेरह
साल के लड़के का बाप है| जिसे ड्रेस पहन कर और टाई लगा कर स्कुल जाते देख उसकी
ख़ुशी छिपाए नहीं छिपती | एक पाँच रुपये का सिक्का शंकर के जेब में हर सुबह रहता बेटे
की जेबखर्च के लिए या यूँ कहें ज़रूरत के लिए ........
सुबह छ बजे से लेकर नौ बजे तक का पीक आवरऔर उसके बाद शुरू होता घर के बूढ़े लोगों
का आना जो कोई सामान खरीदने के नाम से निकलते और एक कट चाय जिसका नाम
सीनियर सिटिजन स्पेशल रखा था , पी कर, बतियाकर और सभी अख़बारों को
आराम से पढ़ कर जाते थे | इस बीच में शंकर भी उनसे हाल - चाल पूछ लेता था |
शंकर ने गुप्ता जी से पूछा " साब आजकल शर्मा जी नहीं आ रहे हैं तबियत तो ठीक है ना "
गुप्ता जी ने कहा ऐसी कोई बात नहीं है मै तो रोज उन्हें छत पर अकेले बैठे हुए देखता हूँ |
अचानक एक दिन शर्मा जी दुकान के सामने से निकले तो शंकर ने पूछ ही लिया "क्या बात
तबियत तो ठीक है सुगर उगर तो नहीं बढ़ा , चाय क्यों बंद कर दी?
शर्मा जी ने जबरदस्ती की मुस्कराहट चेहरे पर लाते हुए कहा भाई मंहगाई बढ़ गयी और
बेटे ने जेबखर्च बंद कर दिया है |
यह सुनते ही शंकर ने अपनी जेब में पड़े हुए पाँच के सिक्के को जो उसने अपने बटे के जेबखर्च
के लिए रखा था कस कर भींच लिया ...............
ek anjana bhay !!!
जवाब देंहटाएंस्तब्ध करने वाली घटना!!
जवाब देंहटाएंकटु सत्य...
जवाब देंहटाएंशाद आज की यही हकीकत है बढ़िया एवं सार्थक कहानी ...
जवाब देंहटाएंसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
सार्थक और प्रासंगिक आलेख ....
जवाब देंहटाएंये कहानी तो राजेश खन्ना की फिल्म अवतार और अमिताभ की बागवान की याद दिलाती है पर शायद ये जिन्द्गी की हकीकत है कहानी अच्छी लगी,
जवाब देंहटाएंइक कहानी हमारी भी है कभी मन कर तो आईयेगा जरुर
http://mirchinamak.blogspot.com/2011/09/blog-post_3297.html
बढ़िया एवं सार्थक कहानी ...
जवाब देंहटाएंकैसे भूल जाते हैं लोंग कि उन्होंने किस तरह पाला पोसा हमें !
जवाब देंहटाएंprabhavshali laghukatha ek sandesh bhi deti hai.
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश और भयभीत करता भविष्य. प्रासंगिक आलेख.
जवाब देंहटाएंओह! क्या बुढ़ापा बच्चो के लिए अभिशाप है.
जवाब देंहटाएंमार्मिक,भावुक करती इस प्रस्तुति के लिए आभार,सुनील जी.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.
मन को गहरे तक छू गई यह लघुकथा....
जवाब देंहटाएंजमाने का कड़वा सत्य है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक और दिल को छु लेनेवाली अनोखी लघु कथा /कभी भी कोई किसी पर आश्रित नहीं होना चाहिए खासकर बुढ़ापे में /अपने भविष्य के लिए बचा कर रखे भावुकता में ना आयें /क्योंकि आज के जमाने में पैसा ही भगवान् है /
जवाब देंहटाएंplease visit my blog
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मार्मिक ....ऐसा भी होता है ...कभी देखा नहीं ....पर सुना बहुत है
जवाब देंहटाएंअंतर्मन को उद्देलित करती लघुकथा....
जवाब देंहटाएंbahut sashakt aur maarmik kahaani. waqt kis roop mein saamne aaye kaun jaanta hai? saarthak rachna ke liye shubhkaamnaayen.
जवाब देंहटाएंदुखद स्थिति। आज का सच्चा चित्रण। बधाई सुनिल भाई॥
जवाब देंहटाएंमार्मिकता से भरी कहानी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंझंकझोंरती कथा।
हकीकत से पूर्ण मन को झकझोरती बेहतरीन लघुकथा ....
जवाब देंहटाएं.
पुरवईया : आपन देश के बयार
Sunil jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
जवाब देंहटाएंआप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए...
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जवाब देंहटाएंab us daur me pahuchane hee walaa hoo.
बेटे के ज़ेब ख़र्च को केंद्र में रख कर बुनी गई प्रभावशाली लघुकथा
जवाब देंहटाएंअपनी वही ज़ुबान जो कि है हिन्दुस्तानी
सीनीयर सिटिज़न स्पेशल एक मार्मिक अपने समय के यथार्थ के डंठल कुरेदती व्यथा है .
जवाब देंहटाएंसीनीयर सिटिज़न स्पेशल एक मार्मिक अपने समय के यथार्थ के डंठल कुरेदती व्यथा है .
जवाब देंहटाएंअफवाह फैलाना नहीं है वकील का काम .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/09/blog-post_13.html
बहुत ही मार्मिक...आज के हालात पर करा्री चोट....
जवाब देंहटाएंऐसा ही होता है... हमारी स्मृति इतनी अल्पकालीन है कि माता-पिता के त्याग को भुला देती है...और ऐसा करते वक्त हम यह भी भूल जाते हैं कि कल हमें भी बूढा होना है...
जवाब देंहटाएंआपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
जवाब देंहटाएंशर्मा जी ने जबरदस्ती की मुस्कराहट चेहरे पर लाते हुए कहा भाई मंहगाई बढ़ गयी और
जवाब देंहटाएंबेटे ने जेबखर्च बंद कर दिया है |
बहुत शशक्त लेखन है आपका ,लेख और काव्य दोनों
आपका ब्लॉग पर आना और हौसला_अफजाई करना यक़ीनन मेरी खुशकिस्मती है
समय का बदलाव क्या क्या दिखाता और करवाता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रभावी कहानी ...
bahut -bahut hi prerak v yatharth ka aaina dikhane wali aapki is prastuti ne man ko bhaik kar diya aur sath-sath ek sawal bhi chod gaya.
जवाब देंहटाएंbahut hi sashakt laghu katha
hardik badhai
poonam
कटु सत्य.....
जवाब देंहटाएंaaj ka katu yatharth jise jaan kar, delh kar dil lahuluhan ho jaata hai, Prabhu sabko sadbudhdhi dein ke sab apne mata-pita ke tyag ko yaad rakh sakein.
जवाब देंहटाएंachha likha hai
shubhkamnayen
बेहद नाज़ुक और असरदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंरंग बदलती जिंदगी..
जवाब देंहटाएंBhai ji,vichalit kardene wali sacchai hai ye,aaj ke pragatisheel yug ka aadarsh
जवाब देंहटाएंsader,
dr.bhoopendra